युनूस ख़ान-
जाने-माने गीतकार देव कोहली नहीं रहे। अफ़सोस, बहुत सारे गीतकारों को हम उनके गानों के ज़रिए नहीं पहचानते। इसलिए मुझे ये लिखना पड़ रहा है कि ये वही देव कोहली हैं जिन्होंने लिखा था—‘दीदी तेरा देवर दीवाना/ हाय राम चिडियों को डाले दाना’ और हम दीवानों की तरह इस गाने को गुनगुनाते या सुनते नहीं थकते थे।
देव कोहली का हक़ है कि उन्हें हम उनके उन गानों के ज़रिए पहचानें जिन्हें हमने ख़ूब सराहा है और जिन्होंने ज़िंदगी के बड़े हसीन लम्हे साझा किये हैं। नब्बे के दशक में कौन होगा जिसने ‘आते-जाते हंसते गाते, सोचा था मैंने कई बार’ नहीं गाया होगा। भला कौन होगा जिसने नाइंटीज़ में सलमान भाई का ‘पहला पहला प्यार है/पहली-पहली बार है’ गाकर किसी को यक़ीन ना दिलाया होगा कि सचमुच उस जैसा दीवाना कोई नहीं है। प्यारे दोस्त सुनील करमेले जैसे लोगों की तो ज़िंदगी बन गयी थी देव कोहली के गाने ‘दीदी तेरा देवर दीवाना’ से। हम गवाह हैं इस बात के। उन्होंने ‘माई नी माई मुंडेर पे तेरी बोल रहा है कागा’ भी लिखा जिस पर जाने कितनी लड़कियां कॉलेज के एनुअल डे के दिन मेंडोलिन की तरंग पर थिरकीं और इस गाने की आगे की लाइन ‘चन माहिया मेरे डोल सिपाहिया’ पर उन्होंने तालियां बटोरीं।
यही देव कोहली चुपके से चले गये।
बता दूं कि ‘वादा रहा सनम’ (खिलाड़ी), ‘ये काली काली आंखें’ (बाज़ीगर) और ‘जब तक रहेगा समोसे में आलू’ (मिस्टर एंड मिसेज खिलाड़ी) भी देव साहब लिखते रहे। पर उन्होंने हंसराज हंस वाला ‘देस नूं चलो’ (23 मार्च 1931 शहीद भगत सिंह) भी लिखा।
भूलना नहीं चाहिए कि 1971 में आई फ़िल्म ‘लाल पत्थर’ का गाना ‘गीत गाता हूं मैं गुनगुनाता हूं मैं’ भी देव कोहली की कलम का कमाल था। उनकी शान के लिए ये एक गीत ही काफी है… गीत गाता हूं मैं गुनगुनाता हूं मैं…
फिर भी नाइंटीज़ को लालों!!!!
देव कोहली को नमन करना बनता है भाई। वो बड़े गीतकार थे।