तीसरी आँख धुंधली हो गई,
चौथा स्तम्भ हिलने लगा है।
आजादी का हुआ ऐसा हाल,
शहीदों के आंसू भी बहने लगे हैं।
वो कलमकार जाने कहाँ खो गए,
रियल-चिटफंडिया मीडिया हाउस हो गए।
पत्रकार अब स्ट्रिंगर हो गए,
पैरवीकार राष्ट्र के सौदागर हो गए।
गाँव की खबरें एफटीपी में सड़ती हैं,
हॉट ग्लैमर की खबरें तो लाइव बिकती है।
सरहदों पर जवान खून बहाते है,
सेलीब्रिटी की शादी यहाँ लाइव चलाते है।
धमाको में आम इंसान जान गंवाते हैं,
नेताजी सुरक्षा में झंडा फहराते है।
नेता-मीडिया कार्पोरेट हो गया,
पानी महंगा, सस्ता खून हो गया।
बच्चा कहीं भूखा सो गया,
बेरोजगार कही नक्सली हो गया।
विकास मीडिया प्रचार में नजर आता है,
पूरा होते-होते इलेक्शन आ जाता है।
ढूंढो आजादी कहा खो गई है,
बापूजी के दिल में रो रही है।
कवि सूर्य प्रकाश तिवारी मूलतः पत्रकार हैं और हैदराबाद में पिछले 17 साल से सक्रिय हैं। उनसे journalistsurya@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।