विश्व दीपक-
पहली बात कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा की जिम्मेदारी SPG की होती है. SPG एक्ट 1988 पोस्ट में संलग्न है. पढ़िएगा. राज्य की पुलिस या दूसरी एजेंसियां की भूमिका सेकंड्री होती है. सवाल यह है कि मोदी की सुरक्षा का जो भी SPG इंचार्ज था — क्या उसके पास कोई प्लान था? मोदी जी ने खुद उस रास्ते से जाने का फैसला क्यूं किया ? क्या इसलिए ताकि ड्रामा क्रिएट किया जा सके?
दूसरी बात, सोर्स के हवाले से सबसे मोदी का बयान किसने सबसे पहले जारी किया ? ANI नाम की न्यूज़ एजेंसी ने. यही एजेंसी और ज़ी न्यूज़ थे जिसने 2016 में सबसे पहले हवा बनाई की जेएनयू में पाकिस्तान की शह पर एंटी नेशनल प्रोटेस्ट हुआ. तब के गृहमंत्री रजनाथ सिंह ने तपाक से किसी आतंकवादी संगठन का नाम भी ले लिया था. यह सब याद है ना?
कई दिनों तक तमाशा देखने के बाद ही मैंने तब रिज़ाइन किया था ज़ी न्यूज़ से.
तीसरी बात, क्या बीजेपी ने कहा कि मोदी ने एयरपोर्ट पर तैनात सुरक्षा अधिकारी को जिंदा लौटने वाली बात कही है? क्या गृह मंत्रालय ने ऐसा कहा ? यहां तक कि स्मृति ईरानी ने भी नहीं कहा. फिर ANI और चाटुकार मीडिया क्यों, किसलिए और किस आधार पर यह दावा रहे हैं? क्या यह बात विश्वसनीय लगती है कि प्रधानमंत्री एयरपोर्ट के सुरक्षा अधिकारी को कोने में ले जाकर ऐसी बात करेगा?
बहकावे में मत आइए. इस टीवी मीडिया को मैं अन्दर से जनता हूं. 2016 से यह सब प्रोपगंडा चल रहा है. हर साल कोई ना कोई इस आदमी को (जो पहले मुख्यमंत्री था अब प्रधानमंत्री है) मारने की कोशिश करता है. इसकी प्रतिक्रिया में जाने कितने लोग मार दिए गए या ख़तम कर दिए गए. यह खेल पिछले 20 साल पहले से चल रहा है.
इसको रोकना होगा अब. नहीं तो हम सब मारे जाएंगे. सिर्फ यही, इसके दलाल और भक्त बचेंगे.
यह सब बिल्कुल उसी तरह और उसी अंदाज़ में हो रहा है जैसे हिटलर के वक्त जर्मनी में हुआ करता था. रशिया, चीन, तुर्की आदि में अभी भी हो रहा है. इस मुल्क को सीरिया, सोमालिया बनाया जा रहा है (बल्कि बना दिया गया है). रोकिए इसको.
आज का ड्रामा हुआ और मुस्लिम महिलाओं को बेचने वाले बुल्ली ऐप की बहस पीछे चली गई. मीडिया स्टडीज में इसको Diversionary tactics कहा जाता है. जागरूक नागरिक बनिए भक्त नहीं. इंसान बनिए. सोचिए कि क्या सही हो सकता है और क्या ग़लत.
सब तय किया हुआ था. पहले से ही. किसी घटिया थ्रिलर की स्क्रिप्ट जैसा लगता है सब कुछ. अब सबको बोलना होगा. खामोशी या बीच का रास्ता नहीं बचा है.
अगर आप अंध-भक्त नहीं हैं तो कुछ सवाल आपके भी दिमाग में आएंगे. मसलन
प्रोटोकॉल के मुताबिक हर वीआईपी की कर के आगे एक पायलट कार होती है. वह कहां है इस तस्वीर में?
तस्वीर देखकर लगता है कि फोटो नज़दीक से शूट किया गया था. क्या एसपीजी ने कैमरापर्सन या न्यूज़ चैनल को इसकी इजाज़त दी थी? इतना नजदीक जाने की?
मान लेते हैं की साज़िश थी पीएम के ख़िलाफ़. लेकिन पीएम की कार के सामने कोई सुरक्षा कर्मी क्यूं नहीं दिख रहे? खतरे की स्थिति में क्या उन्हें सामने से कार को नहीं घेर लेना चाहिए था?
अगर ऐसा नहीं हुआ तो इसकी इजाजत किसने —क्या पीएम ने या एसपीजी ने या बीजेपी हाई कमांड ने दी. किसने?
प्रोटोकॉल के ही मुताबिक, वीआईपी खासतौर से पीएम का काफिला तो काफी बड़ा होता है. पहली सुरक्षा वाद आमतौर से 4-5 किलोमीटर आगे चलती है. इस केस में ऐसा क्यूं नहीं हुआ? क्या वह कार नहीं थी. अगर नहीं एसपीजी पीएम को लेकर आगे कैसे बढ़ गई?
विकास ऋषि-
आप ज़िंदा लौट आये लेकिन ये कभी भी वापस नहीं लौट पायेंगे!
अगर आप साहब के कल के मेलोड्रामा से थोड़ा ज़्यादा ही टची फील कर रहे हैं तो इन तस्वीरों में मौजूद महिलाओं, वृद्ध महिलाओं, बच्चों के हाथों में मौजूद उनके पति,पिता, बेटे, भाई या बाकी रिश्तेदारों की तस्वीरें देख लीजिये।
शायद आपको मौत और ज़िंदगी के बीच का अंतर सही मायने में समझ आ जायेगा। ये वो अभागे किसान हैं जिन्होंने किसान आंदोलन के दौरान साहब के दरवाजे पर अपनी शहादत दर्ज करवाई है। वो भी उस काल कानून के कारण जिसकी मांग उन्होंने कभी की ही नहीं थी। लेकिन बिना उनकी जानकारी, सहमति के उस काले कानून को बनाकर उनपर थोपा जा रहा था।
जबकि दूसरी तरफ सरकार के हर नुमाइंदे ने उस काले कानून को किसानों के लिए सर्वोत्तम परिवर्तन बताया। कई तरह के दांवे किये और अंत में 700 किसानों की जीवन लीला समाप्त करने के बाद, मॉफी मांगकर वापस ले लिया गया। साहब बताये कि किसानो के ये परिवार उनको थैंक्यू बोले या फिर उनकी आरती उतारे ?
Jeelani khan Alig
January 6, 2022 at 12:59 pm
Right
Dharmendra Malviya
January 6, 2022 at 10:21 pm
Dramatic Modi