हिंदुस्तान अखबार में छपी प्रशात झा की इस रिपोर्ट में दो अखबारों के बीच लड़ाई में एचटी ग्रुप का पक्ष देखा जा सकता है. ईटी ने जो कुछ अपने यहां एचटी के खिलाफ छापा है, उसे बिलकुल नीचे दिए गए शीर्षक पर क्लिक करके पढ़ा जा सकता है. -एडिटर, भड़ास4मीडिया
आंकड़े अपने पक्ष में न देख खारिज की रिपोर्ट
नई दिल्ली, प्रशांत झा
इस समय जबकि समाचार पत्र उद्योग की आंतरिक व्यवस्था रीडरशिप स्टडीज काउंसिल ऑफ इंडिया (आरएससीआई) के तहत इंडियन रीडरशिप सर्वे 2013 के परिणाम को सत्यापित करने में लगी है, एक समाचार पत्र समूह ने नया विवाद खड़ा करने की कोशिश की है। यह एक सामान्य और स्वीकार्य विचारधारा वाली व्यवस्था बनाने की प्रक्रिया को पटरी से उतारने का प्रयास है। टाइम्स समूह के बिजनेस अखबार इकोनॉमिक टाइम्स ने शुक्रवार को आईआरएस के परिणामों पर एक खबर प्रकाशित की है जो अशुद्धियों से भरी हुई है। मीडिया रिसर्च यूजर काउंसिल और ऑडिट ब्यूरो ऑफ सरकुलेशन के संयुक्त उपक्रम आरएससीआई ने टाइम्स के इस कदम को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। खबर में ये आरोप लगाया गया है कि जब ज्यादातर समाचार पत्रों की रीडरशिप में कमी आ रही थी, एचटी मीडिया एकमात्र समूह था जो ऊंचाई की ओर बढ़ रहा था। यह न सिर्फ वास्तविकता से परे है बल्कि यह टाइम्स के प्रकाशनों के उन दावों के भी उलट है जो उन्होंने आईआरएस के आंकड़े आने के बाद किए थे।
असंगति का खुलासा करते हुए फर्स्टपोस्ट डॉट काम ने शुक्रवार को ही एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इसमें कहा गया है कि टाइम्स ऑफ इंडिया ने 29 जनवरी को पहले पेज पर एक खबर प्रकाशित की थी, जिसके मुताबिक महाराष्ट्र में उनकी रीडरशिप में जबरदस्त इजाफा हुआ है।
..पक्ष में न देख खारिज की रिपोर्ट
आईआरएस के आंकड़ों के आधार पर कहा गया था कि टीओआई की रीडरशिप में 30 फीसदी की वृद्धि हुई है। राज्य में इसकी संयुक्त रीडरशिप 26.72 लाख है। यह कहा गया कि उनके प्रकाशन मुंबई मिरर की रीडरशिप में 32.4 फीसदी का इजाफा हुआ है। अंग्रेजी दैनिकों में यह नंबर 7 से बढ़कर नंबर 4 पर आ गया है। ईटी ने उसी सुबह एक खबर प्रकाशित कर पाठकों को धन्यवाद देते हुए लिखा- आपके समाचार पत्र की रीडरशिप में इजाफा हुआ है और यह छठा सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला अंग्रेजी दैनिक बन गया है।
जहां हिन्दुस्तान टाइम्स ने समग्र रूप से मजबूत वृद्धि दर्ज की, वहीं यह भी सच है कि टाइम्स की रीडरशिप मुंबई में 34 फीसदी और बेंगलुरु में 22 फीसदी बढ़ी है। एचटी की रीडरशिप दिल्ली में 12 फीसदी और पंजाब में 31 फीसदी कम होना होना ऐसा आंकड़ा है जिसे ईटी ने जानबूझकर उभारा। पत्रिका समूह के निदेशक सिद्धार्थ कोठारी भी ईटी के दावों से असहमत हैं। उन्होंने कहा, राजस्थान पत्रिका समेत कई दूसरे समाचार पत्रों ने रीडरशिप में वास्तविक वृद्धि दर्ज की है जो हकीकत में दिखाई दे रही है।
ईटी की ताजा खबर ये भी दावा करती है कि एचटी की रीडरशिप प्रति कॉपी (आरपीसी) असामान्य रूप से ऊंची है। आंकड़ों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करने पर पता चलता है कि ईटी ने रीडरशिप के आंकड़े एक अवधि से तो सरकुलेशन के आंकड़े दूसरी अवधि से लिए हैं जिससे विकृत परिणाम आए हैं। एचटी की आरपीसी खबर में किए गए दावों से कम है। ईटी की खबर ये भी दावा करती है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने आंकड़ों को जारी करने पर रोक लगा रखी है, जबकि एचटी ने जांच में पाया है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने ऐसा कोई आदेश नहीं जारी किया है।
टाइम्स न सिर्फ आंकड़ों के प्रति बल्कि नए आईआरएस सर्वे के प्रति असम्मान दिखाता है। टाइम्स समूह समेत समाचार पत्र उद्योग रीडरशिप सर्वे करने के तरीके और एजेंसी के कामकाज से नाखुश था। 2013 में प्रतिष्ठित वैश्विक एजेंसी एसी नील्सन को आईआरएस सर्वे के लिए अनुबंध दिया गया। चार बड़े बदलाव के साथ नई प्रक्रिया अपनाई गई। कागज कलम पद्धति में जब आधे से एक घंटे के साक्षात्कार लिए जाते थे और उत्तर देने वाला तंग हो जाता था, उसकी जगह साक्षात्कार के लिए मजबूत सुरक्षा इंतजाम के साथ डबल स्क्रीन वाली कंप्यूटरीकृत व्यवस्था लागू की गई। ज्यादा वास्तविक ट्रेंड जानने के लिए पाठकों से ये पूछा गया कि पिछले महीनों में उन्होंने क्या पढ़ा।
पिछले आईआरएस सर्वे 2001 की जनगणना पर आधारित थे जबकि इस बार के सर्वे में 2011 के जनगणना आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया। सैंपल साइज को ज्यादा वास्तविक बनाने के लिए छोटे शहरों को भी शामिल किया गया। इस प्रकार आंकड़ों के संग्रह में वैश्विक मानकों का पालन किया गया। इन बदलावों के कारण उद्योग संचालकों ने तय किया कि नए आंकड़ों की पुराने आंकड़ों से तुलना करना सही नहीं होगा। आईआरएस 2013 एक नई शुरुआत है। आंकड़े जारी होने पर 29 जनवरी 2014 को बेनेट कोलमैन कंपनी लिमिटेड के कार्यकारी अध्यक्ष राहुल कंसल ने मिंट से बातचीत में कहा, नई प्रक्रिया पहले से ज्यादा पुष्ट है। इसने पूरे सर्वे को ज्यादा सुरक्षित और त्रुटिरहित बनाया है। लेकिन लगता है कि इसके एक हफ्ते बाद ही फरवरी में टाइम्स ने अपने विचार बदल लिए और कुछ समाचार पत्रों के साथ साझेदारी कर आईआरएस के आंकड़ों का विरोध करना शुरू कर दिया।
आपत्तियों पर ध्यान देते हुए आरएससीआई ने आईआरएस के आंकड़ों के पुर्नवैधीकरण के लिए गहराई से अध्ययन कराने का फैसला लिया। फिलहाल एक तीसरे पक्ष की ओर से अंकेक्षण जारी है। ऐसा प्रतीत होता है कि ईटी की खबर इस प्रक्रिया को प्रभावित करने के लिए प्रकाशित की गई है। हालांकि आरएससीआई के चेयरमैन हारमोसजी एन कामा ने एचटी से कहा, कोई व्यक्ति या कोई रिपोर्ट इस प्रक्रिया को प्रभावित नहीं कर सकता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि टाइम्स और दैनिक जागरण जैसे समूह इस तरह का व्यवहार कर रहे हैं। रीडरशिप सर्वे के आंकड़े महत्वपूर्ण होते हैं। ये समाचार पत्रों के फैसले, विज्ञापनदाताओं, विज्ञापन एजेंसियों और मीडिया प्लानरों को प्रभावित करते हैं।
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