भाई सिद्दार्थ कलहंस,
अपनी लेखनी से परोक्ष तौर पर ही सही आप (भास्कर) दुबे को चौबे बनने में जुटे है| वह (भास्कर) कभी पत्रकार रहा ही नहीं तो अब क्या ख़ाक लिख पायेगा? भास्कर दुबे के बारे में जानकारी करने पर मालूम चला की ये फैजाबाद लखनऊ नॉएडा एवं अन्य जगह के पुलिस थानों में काफ़ी चर्चित व्यक्ति है| इनके ऊपर हत्या, लूट, अपहरण जैसे गंभीर आरोप लगे है| फैजाबाद जिले से तो ये तड़ीपार तक किये जा चुके हैं| बड़ा आश्चर्य हुआ, आप जैसे वरिष्ठ पत्रकार को ऐसे अपराधियों के नाम से जवाब दिलवाना पड़ रहा है| शायद आपके परम मित्र हेमंत तिवारी का असर आप पर प्रभावी है|
बड़ा दुख होता है आपकी इस गिरावट पर| आपने मुझे हलवाई बताया तो अपमानजनक क्या है| भ्रातहन्ता तो नहीं हूँ (हत्यारा), टीवी के मार्फ़त उगाही तो नहीं करता हूँ| आपने कहा कि श्री परमानन्द पाण्डेय जनसत्ता के मुख्य उप संपादक थे| आपकी जानकारी अधूरी है| वे जनसत्ता के मुख्य उप संपादक ज़रूर थे परन्तु वे वहां से अपने कृत्यों के कारण निकाल दिये गये थे| वह कृत्य मालूम है आपको? चलिये मैं बताता हूँ, श्री परमानन्द पाण्डेय पर आरोप था कि उन्होंने अपने संपादक स्वर्गीय श्री प्रभाष जोशी पर acid से हमला किया था, किसी मामूली विवाद पर| प्रभाष जी दयालु थे, क्षमा कर दिया| जेल भेजना चाहिये था 10 वर्षों के लिये|
पिछले 30 वर्षों से परमानन्द पाण्डेय का भारण पोषण IFWJ के रहमो करम से हुआ है| उनकी वकालत में 90% प्रतिशत योगदान संगठन का है, शायद इसी कारण वे निकाले जाने के बावजूद संगठन से चिपके रहना चाहते हैं| रेलवे दफ्तर शिवगोपाल मिश्रा जी ने कामरेड के विक्रम राव को दिया था| अपना प्राइवेट चैम्बर बना डाला पाण्डेय जी ने| शिकायत हुई और हम सबको खाली करना पड़ा|
बुनियादी बात ये है भैया कि उच्चतम न्यायालय का वकील कैसे श्रमजीवी पत्रकार हो सकता है| सबसे बड़ा फ्रॉड तो पाण्डेय जी ने किया| वह जालिया है, फ्राडिया है, फर्जी पत्रकार है| अब IFWJ का कोढ़ दूर हो गया| वस्तुतः IFWJ श्रमजीवी पत्रकार संगठन बन गया| कलहंस साहब, आप, हेमंत और परमानन्द पाण्डेय जी इतना गिर जायेंगे कि अपने साथी की लाश पर राजनीती करेंगे, ये उम्मीद नहीं थी | अत्यंत दुःख होता है स्मरण कर के, कि हम सब कभी साथ थे| चेत जायें और अपराधियों और फ्राडों का साथ छोड़ दें वरना जो थोडा बहुत बचा है वो भी खत्म हो जायेगा| आप सभी की जाल्सजियाँ बहुत जल्द ख़त्म होंगी|
संतोष चतुर्वेदी
9720777778
[email protected]
IFWJ
प्रिय श्री संतोष जी,
भाई कलहंस के नाम आपका लिखा पत्र पढ़ा अभी तक तो हमने आपका कभी नाम तक नहीं सुना था ये भी नहीं मालूम की आप पत्रकार है या कुछ और काम करते है। अभी अभी किसी ने बताया कि आप किसी हलवाई की दुकान पर कचौड़ियां तलते थे। ये चमत्कार विक्रम राव जैसा आदमी ही कर सकता है की आप जैसा व्यक्ति परमानन्द पांडेय, हेमंत तिवारी और सिद्धार्थ कलहंस जैसे लोगो पर टिप्पणियां कर सके, आपको तो नहीं लेकिन परम आदरणीय विक्रम राव जी को तो यह पता ही होगा की श्री परमानन्द पांडेय जनसत्ता की प्रक्रिया में शीर्ष स्थान प्राप्त कर मुख्य उप सम्पादक बने थे। अब आप उन्हें फ़र्ज़ी कह रहे है तो यह टिपण्णी आप उनपर नहीं बल्की अपने और अपने नेता और उनके चेले चपटो पर की है। ठीक ही तो कहते है पीलिया के रोगी को सब पीला ही नज़र आता है, आपके मुंह से संविधान की बात ऐसी लगती है जैसे अँधा प्रकृति की छटाओं का वर्णन कर रहा हो इसलिए निवेदन है की आप अपने नेता से कह दे की संविधान को फिर से पढ़ लें।
रेलवे यूनियन के दफ्तर के बारे मैं तो आपके नेता ने मथुरा से मंच से कहा था की IFWJ का दफ्तर न्यूयॉर्क और लंदन से भी महंगी जगह पर है फिर क्यों खाली कर के भागना पड़ा और मयूर विहार में किसी के घर का पता दे रखा है ये भी एक धोखाधड़ी है रिहायशी जगह पर दफ्तर कैसे खोल सकते है? खैर छोडिए आप आपने पुराने पेशे मैं फिर लौट जाइये उसमे बहुत फायदा है और आपके नेता शीघ्र उपयुक्त स्थान पर पहुँच जायेंगे। हां आपने जालसाजी खत्म करने जैसा नारा दिया अपने पत्र में स्व. हिमांशु जी का जिक्र करते हुए आपने यह बात लिखी है। निश्चित आप तक उनका वह स्लोगन पहुंचा होगा जो उन्होंने आईएफडब्लूजे की दिल्ली एनसीआर बैठक में २८ फरवरी २०१६ को दिया था। नारा था आईएफडब्लूजे को जालसाजों से मुक्त करो।
मथुरा निवासी, आईएफडब्लूजे आगरा मंडल के संयोजक संवाददाता कहलाने वाले और राजधानी लखनऊ का पता देकर छायाकार की राज्य मुख्यालय की मान्यता लेने जैसी जालसाजी खत्म होनी चाहिए। लखनऊ से दिल्ली तक की यात्रा कर सरकार से ४८००० रुपये का बिल लगा कर जालसाजी करने वाले और फिर विजिलेंस की जांच झेलने जैसे जालसाज भी खत्म होने चाहिए। धोखे से आईएफडब्लूजे के खाते से पैसे निकालने और फिर जालसाजी के लिए रिकवरी नोटिस पाने वाले व खाता सीज हो जाने की नौबत लाने वाले की जालसाजी जरुर खत्म होनी चाहिए।
इंटरनेशनल आर्गनाइजेशन आफ जर्नलिस्ट (आईओजे) से पत्रकारों की भलाई के लिए मिली प्रिटिंग मशीन को डकार कर अपने निजी घर (जो सरकार से रियायती दामों पर मिला है) में सेंटर फार मीडिया एंड प्रेस नाम की दुकान खोल कर करोड़ों का माल बनाने जैसी जालसाजी भी खत्म होनी चाहिए।
जालसाजी की फेहरिस्त लंबी है, छायाकार महोदय!
कामरेड भास्कर दूबे
8400333894
[email protected]
kalhans
April 28, 2016 at 9:58 am
भाई संतोष चतर्वेदी जी
हमारे आपके बीच दोस्ती तो नही पर जान पहचान जरुर रही है और वह भी आईएफडब्लूजे के चलते। जाहिर है आप मेरे लिखे से वाकिफ होंगे एसा मेरा मानना है। भास्कर जी का आपको लिखा जवाब देखा है मैने। कम से कम इससे कहीं ज्यादा धारदार और सटीक तो लिखने की क्षमता मैं रखता हूं। यह मैं नही मेरे विरोधी भी कहते हैं।
भास्कर दुबे जो आपके कथनानुसार पत्रकार ही नही हैं जरुर पूर्व जन्म में फराखदिली के साथ कर्ज बांटने का काम करते रहे होंगे जो जीटीवी, सहारा, स्वतंत्र भारत, जनसत्ता एक्सप्रेस सहित दर्जनों मीडिया संस्थानों ने उन्हें दशकों तक नौकरी पर रखा और उनकी खबरें छापते दिखाते रहे। दरअसल गलती आपकी नहीं है संगत की है। चारो ओर चीनी विक्रेता, सायकिल स्टैंड संचालक, खाद्य पदार्थों की दुकान चलाने वाले, दान में मिली मशीन हड़प बैनर, परचे, पोस्टर छापने वाले कथित पत्रकार का जामा ओढ़े लोगों की संगत में कैसे कर पाएंगे आप सही पत्रकार की पहचान।
आपने भास्कर भाई को भ्रात हंता लिखा है। गलती आप की नही है। मसि कागद छुऔ नहि, कलम गहै नहि हाथ वाले कथित पत्रकारों से मिली जानकारी के आधार पर लिख मारेंगे तो यही होगा न
भास्कर जी के भाई की गांव के विवाद में हत्या कर दी गयी थी। भाई के हत्यारों को मारने का आरोप भास्कर भाई पर लगा। मुकदमा चला और कोर्ट आफ ला ने उन्हें दोषी नही पाया। बाइज्जत बरी कर दिया। कम से कम किसी मासूम को कुचल कर मार डालने के बाद राज्यपाल से जनहित के नाम पर केस खत्म करवावे जैसा गुनाह-ए-अजीम तो नही किया भास्कर जी ने।
आपने भास्कर भाई को फैजाबाद से तड़ीपार लिखा है। भास्कर जी के फैजाबार वाले घर दशकों से अब तक सैकड़ों पत्रकार घरेलू समारोहों में शामिल होते रहे और एक तो अभी चंद रोज पहले ही हुआ था। क्या उत्तर प्रदेश में तड़ीपार उसी जिले में अपने घर में शान से समारोह आयोजित कर सकता है और नेता, अधिकारी सहित सैकड़ों पत्रकारों को न्यौत सकता है।
आपने परमानंद पांडे को जनसत्ता का मुख्य उपसंपादक तो मान ही लिया है। उनकी जनसत्ता से रुखसती किन वजहों से हुई ये गुलिस्तां कालोनी में रहने वाले जनसत्ता के अंबरीष कुमार से जान लें। बेहतर रहेगा।
और हां लालबाग में ईस्टर्न बुक डिपो में वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट आसानी से उपलब्ध है। हासिल करे और पढ़े। श्रमजीली पत्रकार की परिभाषा पता चल जाएगी। वह जिसकी जीविका अथवा उपजीलिका (ध्यान से पढ़ें) पत्रकारिता हो वह श्रमजीवी पत्रकार कहलाता है। कुछ अरसा पहले वकील पद्म कीर्ति को प्रेस क्लब का चुनाव अधिकारी बनाने पर मुदित माथुर द्वाराआपत्ति करने पर आईएफडब्लूजे के पूर्व अध्यक्ष विक्रम राव ने एक्ट की इसी धारा का हवाला देते हुए पदम भाई को श्रमजीवी पत्रकार ठहराया था। वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट में हाल फिलहाल कोई तबदीली हुयी हो तो मुझे क्षमा कीजिएगा।
हां परमानंद पांडे पत्रकारों के साथ ही मजदूरों के केस लड़ते रहे हैं जिनमें रेलवे भी शामिल है। पांडे जी के आप लोगों से किनारा कसते ही कथित लोगों को कनाट प्लेस के दफ्तर से बाहर फेंक दिया गया।
हैरत की बात है कि भास्कर जी के पत्र में उल्लिखित जालसाजियों पर आप मौन हैं। कुछ जवाब उन पर भी आ जाता। आईओजे से मिली मशीन डकार सेंटर फार प्रेस एंड मीडिया चला छपाई के काम से करोड़ों अंदर करने जैसी जालसाजी, फरजी पता दर्शा छायाकार की मान्यता लेने जैसी जालसाजी, फरजी यात्रा बिल लगा सरकारी पैसा हड़पने जैसी जालसाजी। आईएफडब्लूजे के खाते से धोखाधड़ी कर पैसा निकाल रिकवरी नोटिस पाने वालों की जालसाजी।
दरअसल भास्कर जी नें लंबे समय बाद संगठन की गतिविधियों में रुचि लेना शुरु किया है सो बहुत ज्यादा जालसाजियों के बारे में खुलासा नही कर पाए हैं।
जालसाजियों पर जल्दी ही एक श्वेतपत्र जारी होगा।
इंतजार करें।
सिद्धार्थ कलहंस
Vishwadev
May 2, 2016 at 8:21 pm
बहुत ख़ूब
बधाइयाँ चेलों को
Siddarth भाई आप को कई बार बोला है रात 8 बजे के बाद बोला/लिखा ना करें
अरे भाई श्रमजीवी होता है “श्रमजीली पत्रकार” नहीं
भास्कर दुबे का इतिहास क्या है इस पर श्वेत पत्र भी दें (record सहित)
हत्या लूट और अपहरण के मुक़दमे अक्सर दुबारा खुल जाया करते है…..ना यक़ीन हो तो example दूँ