Jaishankar Gupta : दुखद सूचनाओं का सिला टूटता क्यों नहीं। आज सुबह अपने और अपने पिता जी के भी मित्र.राजनाथ शर्मा जी के आमंत्रण पर बाराबंकी में आयोजित होनेवाले गांधी जयंती समारोह मे शामिल होने के लिए लखनऊ पहुंचा। डालीबाग स्थित वीआईपी गेस्ट हाऊस में पुराने परिचित मित्र पत्रकार हेमंत तिवारी, सुरेश बहादुर एवं कुछ और पत्रकार मित्र मिल गए। बताया गया कि हमारे हर दिल अजीज, पटना प्रवास और फिर इंडिया टुडे के दिनों के हमारे अभिन्न मित्र, बड़े भाई फरजंद अहमद का आज सुबह इंतकाल हो गया। असह्य वेदना से जूझ रहा हूं। हम उनसे मिलनेवाले थे लेकिन किस्मत में शायद उनका अंतिम दर्शन ही वदा था। उनके निवास पर ही हूं। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी आने वाले हैं। बेटे नैयर का इंतजार है। फिर हमारे और हम सबके अजीज फरजंद भाई को यहीं ऐश बाग के पास सिपुर्द ए खाक कर दिया जाएगा। फरजंद भाई और उनसे जुड़ी स्मृतियों को एक बड़े आखिरी सलाम के साथ विनम्र श्रद्धांजलि।
Satyanand Nirupam : फरजंद साहेब नहीं रहे! हम टीवी चैनलों की बकबक के साथ नहीं बड़े हुए। अब खैर मनाते हैं कि अच्छा हुआ, नहीं हुए। कुछ अच्छे लोगों को नियमित पढ़ते-गुनते बड़े हुए। उनमें एक इंडिया टुडे के फरजंद अहमद साहेब भी थे। इनको पढ़ने में मेरा विशेष चाव रहता था। मेरे पापा जी भी इनको बड़े मन से पढ़ते। कभी पहले पढ़ लेते तो पत्रिका का अंक हाथ में देते हुए इनके लिखे की खास बात का जिक्र जरूर कर देते। मैं निजी तौर पर फरजंद अहमद पत्रकार को नहीं जानता। मैं उनके लिखे के असर में रहा। इसे कोरी भावुकता भी कहा जा सकता है। लेकिन अपने कस्बानुमा शहर और शहरनुमा गाँव में रहते हुए हम देश-दुनिया को जैसे देख रहे थे, उसकी एक बड़ी सचाई यह भी है। आज मैं इसे बड़ी नेमत समझता हूँ। शब्दों में आस्था बने रह जाने की नेमत। अभी भाई निराला की पोस्ट से जानकारी मिली कि फरजंद साहेब नहीं रहे! जिनसे साक्षात नहीं मिला, लेकिन जिनके लिखे का खूब इंतजार किया, उन्हें अंतिम प्रणाम!
Amarendra Kishore : अब वह ख़्वाबों में नहीं, हर घटना के साथ याद आएंगे… शब्दों की जादूगरी कहिये या लेखन की एक सुदीर्घ परंपरा– इन दोनों को साथ लेकर चलनेवाला आज की पत्रकारिता में दुर्लभ मानुष कहा जायेगा। ऐसे ही थे फरजंद साहब– जी हाँ जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार फरजंद अहमद। आज लखनऊ में फरजंद साहब लंबी बीमारी से जूझते हुए हमें अलविदा कह गए। पारिवारिक सूत्रों के मुताबिक अहमद पिछले दो साल से कैंसर से पीड़ित थे। फरजंद साहब से मेरा रोज-रोज का वास्ता नहीं था और न ही एक दूसरे से कुशल क्षेम पूछने जैसा कोई सम्बन्ध और सरोकार था। साल २००४ में इंडिया टुडे के लिए ओडिशा की अनब्याही माताओं पर केंद्रित कवर स्टोरी लिखने के सिलसिले में फरजंद सर से भुबनेश्वर में मुलाक़ात हुई थी– लंबी और विस्तृत बातचीत हुई। उन्ही दिनों मैंने भी अनब्याही माताओं की वास्तविकता जानने के मक़सद से कालाहाण्डी और फूलबनी में काम शुरू किया था– फरजंद साहब कालाहांडी तो नहीं आये मगर बिनब्याही माताओं की पीड़ा को अपने पौने दो हजार शब्दों से जड़े रिपोर्ट में उड़ेल कर रख दिया । अपनी रपट में उन्होंने मेरे काम का जिक्र भी किया था। रिपोर्टिंग में समाजशास्त्रीय पहलुओं को छूकर उन्होंने इस रिपोर्ट के बहाने पत्रकारिता के कितने अध्यायों को बिना कक्षा लिए पढ़ा डाला। कुल जमा दो मुलाक़ातों में फ़रज़न्द रिपोर्टिंग के कई गुर बिना बताये दे गए। एकलव्य भाव में मैंने जो भी उनसे सीखा, उसकी कोई कीमत नहीं। सादर नमन।
Utkarsh Sinha : अलविदा फ़रज़न्द सर। हर स्टोरी लिखते वक्त आपकी सलाह का ध्यान रहा है और आइन्दा भी रखूँगा ये वादा है। आप नहीं होंगे गलतिया बताने को या शाबाशी देने के लिए, मगर जो बुनियादी उसूल आपने बताये हैं वो हमेशा मेरे लिए मार्गदर्शन करते रहेंगे।
सौजन्य : फेसबुक
Rakesh Ranjan
October 3, 2016 at 7:19 am
श्रेष्ठ और वरिष्ठ पत्रकार फरजंद अहमद नहीं रहे जानकर दुख हुआ। मैंने उन्हें लंबे अरसे तक पढ़ा है। खासकर इंडिया टुडे में उनके काॅलम को मैं पढ़ा करता था। राजनीति के साथ ही समसामयिक विषयों की उनकी गहर समझ (युवा पत्रकारों को) प्रेरित करने वाली थी। हम उन्हें कभी भूल नहीं पाएंगे।