नोएडा : नेशनल दुनिया के नोएडा कार्यालय में आजकल अखबार के मुख्य महाप्रबंधक मनीष अवस्थी की कार्यशैली को लेकर व्यापक रोष व्याप्त है । पिछले कई माह से कर्मचारियों को वेतन नहीं मिला है. अपने चाटुकार कर्मचारियों को गुपचुप वेतन दिलवाया जा रहा है । मनीष के इस सौतेले रवैये से सम्पादकीय व अन्य विभाग के कर्मचारियों में रोष है।
पिछले साल मेरठ कार्यालय में बकाया वेतन के मुद्दे को लेकर वहां के सम्पादक सुभाष सिंह की नाराज कर्मचारियों ने धुनाई कर दी थी। इस प्रकार की अनहोनी मनीष अवस्थी के साथ भी होने का अंदेशा जताया जा रहा है । मनीष से जब कोई वेतन का तकादा करता है तो उसे हटाने की धमकी देकर जलील करता है । अखबार के प्रधान सम्पादक शैलेंद्र भदौरिया नोएडा बहुत कम आते हैं और मुख्य महाप्रबंधक इसी का फायदा उठाकर कर्मचारियों का शोषण कर रहे हैं ।
इसके अलावा बाहर से बकाया भुगतान के लिए जो पार्टी आती हैं, उनके साथ भी अवस्थी दुर्व्यवहार और गाली गलौज करते हैं। इसी बर्ताव के कारण पिछले सप्ताह एक व्यक्ति ने इस महानुभाव का कालर तक खींच लिया था । कर्मचारियों का कहना है कि मनीष अवस्थी प्रधान सम्पादक भदौरिया को वस्तु स्थिति से अवगत नहीं कराते हैं। उन्हे यह कहकर बर्गला दिया जाता है कि नेशनल दुनिया में सब नियंत्रण में है।
बताते हैं कि मनीष अवस्थी को नेशनल दुनिया में जागरण से इस भरोसे पर लाया गया था कि वह अखबार की अव्यवस्थाओं को ठीक कर देंगे। जब से अवस्थी आये हैं संस्थान की हालत और खराब हो गयी । अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए इस व्यक्ति ने जागरण के रिटायर और नाकारा कर्मचारियों कों मोटी सेलरी पर रख लिया है। कई अपने रिश्तेदारों को भी मोटी सेलरी पर विज्ञापन और अन्य विभागों में रखा है और इन रिश्तेदारों की संस्थान के विकास में कोई भूमिका नहीं है । दीमक की तरह ये लोग संस्थान को चाट रहे हैं । मुख्यमहाप्रबंधक का ध्यान अखबार की तरफ कम और भदौरिया के पारिवारिक कार्यक्रमों के इवेंट मैनेजमैंट में ज्यादा रहता है ।
पिछले दिनो भदौरिया के परिवार में शादी थी। उसके आयोजन को सफल बनाने में अवस्थी ने अपनी पूरी ताकत लगा दी । इसी तरह पिछले दिनो भदौरिया के परिवार में एक केजुएलटी हो गयी तो यह महाशय पूरे एक पखवाडा वहां की तीमारदारी में लगे रहे। यदि महाप्रबंधक अपना समय भदौरिया की चापलूसी में न लगाकर अखबार के विकास में लगायें तो संस्थान का तीव्र गति से विकास हो सकता है । कर्मचारियों का कहना है कि यदि कर्मचारियों की सम्पादक शैलेंद्र भदौरिया ने नहीं सुनी तो उन्हे श्रम विभाग और प्रधानमंत्री कार्यालय का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा।
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित