Sanjaya Kumar Singh-
हे ईश्वर, उसे माफ कर दो, वह अच्छी तरह जानता है कि क्या कर रहा है…
दैवीय हस्तक्षेप : कोई व्यक्ति चाहे जितनी धार्मिक पुस्तकें पढ़ ले, जब तक वह मानवता के कल्याण की नहीं सोचता है, सब बेकार है।
(नरेन्द्र मोदी जब गुरद्वारा में थे तो पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब का यह अंश पढ़ा जा रहा था)
पहली खबर का शीर्षक : मोदी ने गुरद्वारा में शीश नवाया किसान एक तरफ छोड़ दिए गए।
दूसरी खबर का शीर्षक : किसानों ने उसी शैली में जवाब दिया।
पहली फोटो का कैप्शन : प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो द्वारा जारी तस्वीर में (प्रधान मंत्री नरेन्द्र) मोदी रविवार को नई दिल्ली के गरद्वारा रकाब गंज साहिब में …. (पीटीआई – यानी अखबार ने यह फोटो पीटीआई की ली है, पीआईबी ने संभवतः द टेलीग्राफ को नहीं भेजी हो या उसे न मिली हो।)
दूसरी फोटो का कैप्शन : नई दिल्ली के पास गाजीपुर सीमा पर एक किसान रविवार को विरोध प्रदर्शन के दौरान मौत के शिकार हुए किसानों को श्रद्धांजलि देते हुए। तस्वीर प्रेम सिंह की।
अंग्रेजी के इस अखबार के पहले पन्ने की खास बातें हिन्दी में पेश करने का उद्देश्य पाठकों को यह बताना है कि संपादकीय आजादी का मतलब यह भी है कि आप कौन सी खबर पहले पन्ने पर या किसके साथ या किस शीर्षक के साथ छापेंगे – यह आप खुद तय कर सकते हैं। आप चाहें तो इसमें विरोध देख सकते हैं। पर है यह सूचनाओं की प्रस्तुति ही और इससे लगता है कि इस अखबार का कोई संपादक है जो खबरों के आधार पर निर्णय लेता है निर्देश नहीं पाता है।
इस बीच, बता चुका हूं कि किसान, आंदोलन की खबरों के लिए अपना अखबार निकाल रहे हैं, यू ट्यूब चैनल शुरू कर चुके हैं और गोदी मीडिया के लोगों का पर्याप्त विरोध कर चुके हैं। दूसरी तरफ, किसान नेताओं के खिलाफ सरकारी कार्रवाई की खबरें आ रही हैं और बताया जा रहा है कि विदेश से आए (किसान पुत्रों के दान भी) के भुगतान के लिए दस्तावेज मांग जा रहे हैं।
आप जानते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था चौपट करने की दिशा में जो काम हुए हैं उनमें तमाम गैर सरकारी संस्थानों को बंद कराना, विदेश से धन प्राप्त करना मुश्किल बनाया जाना, शामिल है। सरकार गोदी मीडिया को भरपूर विज्ञापन देकर अपने पक्ष में करने के साथ-साथ विरोधियों की कमाई बंद और बाधित करने के तमाम उपाय कर रही है। फिर भी (यह) आंदोलन चल रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की एफबी वॉल से.