धूम-धाम से लागू और सफल घोषित जीएसटी के तहत अभी तक पेट्रोल और डीजल को नहीं लाया जा सका है। “एक देश, एक टैक्स” और “गुड एंड सिम्पल टैक्स” बताया जाने वाला जीएसटी देश के लिए बहुत जरूरी बताकर आधी-अधूरी तैयारी के साथ पिछले साल लागू कर दिया गया।
एक साल पूरा होने से पहले ही अपने, “मन की बात” कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे सफल भी घोषित कर दिया। इस पर एक जुलाई को जश्न भी मनाया जाना है। इस सारी जबरदस्ती के बीच जीएसटी का पूरा कानून अंग्रेजी में ही है और छोटे कारोबारी को भी (20 लाख तक के कारोबार को जीएसटी से मुक्त रहने की छूट के बावजूद) कई मामलों में पंजीकरण कराना जरूरी कर दिया गया है।
उदाहरण के लिए एनसीआर का कोई भी कारोबारी दिल्ली के साथ गाजियाबाद, नोएडा, फरीदाबाद और गुड़गांव में भी कारोबार करता है। ऐसे कारोबारी के लिए यही बाजार है। पुरानी व्यवस्था में ये अलग थे और जीएसटी में भी अलग हैं जबकि दावा “एक देश, एक टैक्स” का है पर एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) एक नहीं हो पाया।
दावा पूरे देश को एक करने का है। दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग भाजपा ही करती रही है। अब वह इसपर चुप है। वह भी तब जब दिल्ली पर आबादी के बढ़ते बोझ को कम करने के लिए एनसीआर का विकास जरूरी है और आवाजाही की सहूलियत से लेकर तमाम दूसरी सुविधाओं का विकास किया जा रहा है। मेट्रो इनमें प्रमुख है। अब एनसीआर के लिए टैक्सी, ऑटो के परमिट दिए जाते हैं इसलिए एनसीआर में ऑटो टैक्सी से भी चलना संभव हुआ है। पर कारोबार नहीं। जीएसटी के बावजूद।
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एनसीआर में पेट्रोल डीजल की कीमत शुरू में एक नहीं होती थी। गाड़ियों के मामले में तो बहुत आसान है जहां सस्ता होता है लोग वहीं से भरवाते हैं। पर दिल्ली के अलावा गाजियाबाद, गुड़गांव और फरीदाबाद में बिजली की कमी और बहुमंजिली इमारतों के उदय के बाद डीजल जेनरेटर की मांग काफी है और एक राज्य से दूसरे राज्य में तस्करी आसान होने के कारण सीमा के पेट्रोल पंपों की बिक्री प्रभावित होती रही है।
अरविन्द केजरीवाल ने मुख्यमंत्री बनने के बाद पड़ोसी राज्यों से इस पर बात करके इस समस्या को हल करने की कोशिश की थी। उम्मीद की जा रही थी ये पदार्थ जब जीएसटी के तहत आ जाएंगे तो यह समस्या खत्म हो जाएगी। पर अभी तक ऐसा नहीं हुआ है।
आइए, देखें क्यों? आप जानते हैं कि पिछली सरकार की कोशिशों के कारण पेट्रोल / डीजल की कीमत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तय होती है और पिछले दिनों अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत काफी कम होने के बावजूद देश में पेट्रोल / डीजल की कीमत कम नहीं हुई और सरकार उसके बदले टैक्स वसूली करके अपना खजाना भरती रही। अब बताया जा रहा है कि पेट्रोल / डीजल को अगर जीएसटी के तहत लाया गया तो टैक्स दर अधिकतम 28 प्रतिशत ही रखी जाएगी। और राजस्व के नुकसान से बचने के लिए राज्यों को इसपर अतिरिक्त लेवी लगाने का अधिकार रहेगा। इस समय पेट्रोल / डीजल पर केंद्र सरकार 19.48 रुपए प्रति लीटर की दर से उत्पाद शुल्क लगाती है (जीएसटी के बाद यह सब खत्म हो जाना था)। डीजल पर यह 15.33 रुपए प्रति लीटर है।
यही नहीं, इसके ऊपर राज्य वैल्यू ऐडेड टैक्स (वैट) भी वसूल रहे हैं। इस तरह, पेट्रोल पर कुल टैक्स 45-50 प्रतिशत बैठता है और डीजल पर यह 35-40 प्रतिशत है। कहने की जरूरत नहीं है कि यह जीएसटी की अधिकतम दर 28 प्रतिशत से बहुत ज्यादा है। इसलिए पेट्रोल / डीजल को जीएसटी के तहत लाने से राज्य और केंद्र सरकार को राजस्व का भारी नुकसान होगा। पेट्रोल / डीजल पर उत्पाद शुल्क में वृद्धि से पिछले चार वर्षों में एकत्र राशि 2014-15 के 99184 करोड़ रुपए के मुकाबले 2017-18 में 229019 करोड़ रुपए हो गई है। सरकार का पेट अभी भी नहीं बढ़ा है। क्यों वही जाने पर इसके बावजूद जीएसटी सफल कैसे है यह तो मुझे नहीं समझ आ रहा है।
(द टेलीग्राफ में प्रकाशित खबर, ‘फुएल कैच अंडर जीएसटी’ से इनपुट के आधार पर। अनुवाद और लेखन कार्य किया है वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह ने.)