Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

हमारे यहां सिरिल अलमिडा और आयशा सिद्दीका जैसे निर्भीक पाकिस्तानी पत्रकार नहीं हैं : शेखर गुप्ता

पाकिस्तानी पत्रकार और टिप्पणीकार प्राय: कहते हैं कि जब विदेश और सैन्य नीतियों की बात आती है तो भारतीय मीडिया उनके मीडिया की तुलना में सत्ता के सुर में अधिक सुर मिलाता है। कड़वा सच तो यह है कि कुछ पाकिस्तानी पत्रकार (ज्यादातर अंगरेज़ी के) साहसपूर्वक सत्ता प्रतिष्ठानों की नीतियों व दावों पर सवाल उठाते रहे हैं। इनमें कश्मीर नीति में खामी बताना तथा अातंकी गुटों को बढ़ावा देने जैसे मुद्‌दे शामिल हैं। इसके कारण कुछ को निर्वासित होना पड़ा (रज़ा रूमी, हुसैन हक्कानी) या जेल जाना पड़ा (नजम सेठी)।

<p>पाकिस्तानी पत्रकार और टिप्पणीकार प्राय: कहते हैं कि जब विदेश और सैन्य नीतियों की बात आती है तो भारतीय मीडिया उनके मीडिया की तुलना में सत्ता के सुर में अधिक सुर मिलाता है। कड़वा सच तो यह है कि कुछ पाकिस्तानी पत्रकार (ज्यादातर अंगरेज़ी के) साहसपूर्वक सत्ता प्रतिष्ठानों की नीतियों व दावों पर सवाल उठाते रहे हैं। इनमें कश्मीर नीति में खामी बताना तथा अातंकी गुटों को बढ़ावा देने जैसे मुद्‌दे शामिल हैं। इसके कारण कुछ को निर्वासित होना पड़ा (रज़ा रूमी, हुसैन हक्कानी) या जेल जाना पड़ा (नजम सेठी)।</p>

पाकिस्तानी पत्रकार और टिप्पणीकार प्राय: कहते हैं कि जब विदेश और सैन्य नीतियों की बात आती है तो भारतीय मीडिया उनके मीडिया की तुलना में सत्ता के सुर में अधिक सुर मिलाता है। कड़वा सच तो यह है कि कुछ पाकिस्तानी पत्रकार (ज्यादातर अंगरेज़ी के) साहसपूर्वक सत्ता प्रतिष्ठानों की नीतियों व दावों पर सवाल उठाते रहे हैं। इनमें कश्मीर नीति में खामी बताना तथा अातंकी गुटों को बढ़ावा देने जैसे मुद्‌दे शामिल हैं। इसके कारण कुछ को निर्वासित होना पड़ा (रज़ा रूमी, हुसैन हक्कानी) या जेल जाना पड़ा (नजम सेठी)।

… युवा अफसरों व सैनिकों की वीरता की खबरें देकर हमने ठीक ही किया, लेकिन राजनीतिक व सैन्य प्रतिष्ठानों को अपना कर्तव्य निभाने में लापरवाही चाहे न भी कहें, बहुत बड़ी अक्षमता के साथ बच निकलने देकर ठीक नहीं किया। सैन्य कमांडरों की नाकामी से बढ़कर खतरनाक कोई नाकामी नहीं होती और यही वजह है कि परम्परागत सेना जवाबदेही पर इतना जोर देती है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इस बीच भारतीय मीडिया को ताकत बढ़ाने वाले तत्व (फोर्स मल्टीप्लायर) के रूप में सराहना मिल रही थी। हम उस पल में डूब गए, लेकिन गलत छाप भी छोड़ गए : पत्रकार देश के युद्ध प्रयासों के आवश्यक अंग हैं, उसकी सेना की शक्ति बढ़ाने वाले कारक। वे दोनों हो सकते हैं, लेकिन सच खोजने की चाह दिखाकर, सेवानिवृत्त पाकिस्तानी जनरलों पर चीखकर या चंदमामा शैली के सैंड मॉडल के साथ स्टुडियो को वॉर रूम में बदलकर नहीं।

कोई आश्चर्य नहीं कि हमारे यहां (निर्भीक पाकिस्तानी पत्रकार) सिरिल अलमिडा और आयशा सिद्दीका नहीं हैं, जो ‘शत्रु’ के प्रवक्ता क़रार दिए जाने का जोखिम मोल लेकर कड़वा सच बोलने को तैयार हों। भारतीय न्यूज टीवी सितारों (मोटतौर पर) का बड़ा हिस्सा स्वेच्छा से प्रोपेगैंडिस्ट बनकर रह गया है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

… पत्रकारिता महाविद्यालय में जाने वाले हर युवा को सिखाया जाता है कि सरकार छिपाती है और पत्रकार को खोजना होता है। यहां हमारे सामने संदेहवादी खेमे में सबसे उदार, श्रेष्ठतम शिक्षा पाए, प्रतिष्ठित, ख्यात सेलेब्रिटी पत्रकार हैं, वे धमाकेदार खबर खोजते नहीं, बल्कि प्रेस कॉन्फ्रेंस की मांग करते हैं। …

अब यह न पूछें कि मैं क्यों कह रहा हूं कि भारतीय पत्रकारिता आत्म-विनाश के पथ पर है। जब यह नारा लगाने को कहें: ‘प्रेम से बोलो, जय भारत माता की’ तो कौन भारतीय इसमें दिल से शामिल नहीं होना चाहेगा? लेकिन यदि आप आपकी सरकार को ही मातृभूमि और राष्ट्र मान लें तो आप पत्रकार नहीं, भीड़ में शामिल एक और आवाज भर हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

(वरिष्ठ पत्रकार और इंडियन एक्सप्रेस के पूर्व संपादक शेखर गुप्ता के आज ‘भास्कर’ में छपे एक लेख का अंश)

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement