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हरियाणा

हरियाणा के रिटायर्ड डेस्‍क जर्नलिस्‍टों की मांग- ‘हरियाणा सरकार हमें भी दे पेंशन!’

-भूपेंद्र प्रतिबद्ध-

वह पीड़ा पीछा छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही जो उस दिन एक रिटायर्ड पत्रकार साथी ने एक समारोह में अपने संबोधन के दौरान व्‍यक्‍त किए थे। उनका कहना था कि जिन्‍दगी का ताकत और ताजगी वाला वक्‍त तो कठोर श्रम से जीविका कमाने, अखबार को नई-नई, अलग तरह की, सबके पक्ष की, सबकी रुचियों की स्‍टोरियों से सजाने-संवारने में गुजार दिए। तब इलहाम ही नहीं था कि एक वक्‍त वह भी आएगा जब रिटारमेंट हो जाएगी। संगी सहकर्मी फेयरवेल पार्टी दे देंगे और मैनेजमेंट हिसाब-किताब करके अपने रजिस्‍टर से मेरा नाम उड़ा देगा। ि‍फर सताएगी शेष जीवन की गाड़ी को चलाने की चिंता। जीना कब तक है यह कोई नहीं जानता, लेकिन सांस चलाने-चलते रहने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है जो भोजन से मिलती है। इस भोजन का प्रबंध करने के लिए ही पेंशन की दरकार होती है, जो पत्रकारों को आम तौर पर उपलब्‍ध नहीं होती। जिन थोड़े लोगों को उपलब्‍ध होती भी है तो वह ऊंट के मुंह में जीरे से भी कम होती है।

<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({ google_ad_client: "ca-pub-7095147807319647", enable_page_level_ads: true }); </script><p style="text-align: center;"><strong>-भूपेंद्र प्रतिबद्ध-</strong></p> <p>वह पीड़ा पीछा छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही जो उस दिन एक रिटायर्ड पत्रकार साथी ने एक समारोह में अपने संबोधन के दौरान व्‍यक्‍त किए थे। उनका कहना था कि जिन्‍दगी का ताकत और ताजगी वाला वक्‍त तो कठोर श्रम से जीविका कमाने, अखबार को नई-नई, अलग तरह की, सबके पक्ष की, सबकी रुचियों की स्‍टोरियों से सजाने-संवारने में गुजार दिए। तब इलहाम ही नहीं था कि एक वक्‍त वह भी आएगा जब रिटारमेंट हो जाएगी। संगी सहकर्मी फेयरवेल पार्टी दे देंगे और मैनेजमेंट हिसाब-किताब करके अपने रजिस्‍टर से मेरा नाम उड़ा देगा। ि‍फर सताएगी शेष जीवन की गाड़ी को चलाने की चिंता। जीना कब तक है यह कोई नहीं जानता, लेकिन सांस चलाने-चलते रहने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है जो भोजन से मिलती है। इस भोजन का प्रबंध करने के लिए ही पेंशन की दरकार होती है, जो पत्रकारों को आम तौर पर उपलब्‍ध नहीं होती। जिन थोड़े लोगों को उपलब्‍ध होती भी है तो वह ऊंट के मुंह में जीरे से भी कम होती है।</p>

-भूपेंद्र प्रतिबद्ध-

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वह पीड़ा पीछा छोड़ने का नाम ही नहीं ले रही जो उस दिन एक रिटायर्ड पत्रकार साथी ने एक समारोह में अपने संबोधन के दौरान व्‍यक्‍त किए थे। उनका कहना था कि जिन्‍दगी का ताकत और ताजगी वाला वक्‍त तो कठोर श्रम से जीविका कमाने, अखबार को नई-नई, अलग तरह की, सबके पक्ष की, सबकी रुचियों की स्‍टोरियों से सजाने-संवारने में गुजार दिए। तब इलहाम ही नहीं था कि एक वक्‍त वह भी आएगा जब रिटारमेंट हो जाएगी। संगी सहकर्मी फेयरवेल पार्टी दे देंगे और मैनेजमेंट हिसाब-किताब करके अपने रजिस्‍टर से मेरा नाम उड़ा देगा। ि‍फर सताएगी शेष जीवन की गाड़ी को चलाने की चिंता। जीना कब तक है यह कोई नहीं जानता, लेकिन सांस चलाने-चलते रहने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है जो भोजन से मिलती है। इस भोजन का प्रबंध करने के लिए ही पेंशन की दरकार होती है, जो पत्रकारों को आम तौर पर उपलब्‍ध नहीं होती। जिन थोड़े लोगों को उपलब्‍ध होती भी है तो वह ऊंट के मुंह में जीरे से भी कम होती है।

मेरे सरीखे तमाम पत्रकार हैं जो उम्र की उस दहलीज पर हैं जहां से जीविकोपार्जन की ढलान शुरू होती है। जीविका कमाने की अनेक शर्तों को पूरा करने की क्षमता जवाब देने को उतावली हो गई है। किसी पर आश्रितता बढ़ती जा रही है। जीवन की गारंटी देने वाली इनकम ने बॉय-बॉय कर दिया है। स्‍वालंबन परिहास करने लगा है। अपनी सीमित जरूरतें पूरी करने के लिए किसी के आगे हाथ फैलाना पड़ने लगा है। जो किसी अपराध से कम नहीं लगता है। इससे मुक्ति के लिए पेंशन ही सबसे प्रभावी, कारगर जरिया है। पेंशन ही वह एकमुश्‍त धनराशि है जिससे भोजन के अलावा दूसरे दुख-संकट-समस्‍या के निदान में मदद मिलती है।

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उत्‍तर भारत में हरियाणा एकमात्र राज्‍य है जहां की सरकार ने पत्रकारों के लिए पेंशन स्‍कीम शुरू की है। चंद दिनों पहले आरंभ हुई इस योजना के तहत उन रिटायर्ड पत्रकारों को 10 हजार रुपए मासिक पेंशन मिलेगी जो राज्‍य सरकार में मान्‍यता प्राप्‍त हैं या कम से कम पांच साल तक मान्‍यता प्राप्‍त रहे हैं। इसके लिए उम्र सीमा 60 वर्ष और इससे ऊपर है। साथ ही एलिजबल पत्रकारों को अपने प्रोफेशन में 20 साल पूरा कर लिया होना चाहिए। इसके अलावा ऐसे पत्रकारों को 10 लाख रुपए का इंश्‍योरेंस कवर, 5 लाख रुपए कैशलेस मेडिक्‍लेम पॉलिसी भी मुहैया होगी।

हरियाणा सरकार की यह स्‍कीम बेहद सराहनीय है। इससे उम्रदराज पत्रकारों को बहुत सहारा मिलेगा। इस पेंशन धनराशि से जीवन की गाड़ी आराम से चलती रहेगी और शारीरिक कष्‍ट के उपचार के लिए मेडिक्‍लेम रामबाण साबित होगा। लेकिन इस स्‍कीम में केवल मान्‍यता प्राप्‍त पत्रकारों, या कहें रिपोर्टरों को ही शामिल किया गया है और उन पत्रकारों को नहीं जिन्‍हें सरकार से मान्‍यता नहीं मिली है। ऐसे पत्रकारों में रिपोर्टर तो हैं ही, बहुत बड़ी तादाद में ऐसे भी हैं जो सार्वजनिक रहे बगैर अखबार को निकालने, उसको पठनीय, सम्‍प्रेषणीय बनाने में अनुपम भूमिका निभाते हैं। इन पत्रकारों को डेस्‍क का पत्रकार कहा जाता है, जिनके समक्ष रिपोर्टर अपनी संग्रहीत सामग्री-खबरों का ढेर लगा देते हैं। उन खबरों को छपने-प्रकाशन लायक बनाने का महती काम डेस्‍क के पत्रकार ही करते हैं। इन पत्रकारों का भी कार्य- विभाजन होता है और उनको दी गई जिम्‍मेदारी के हिसाब से उनका डेजिग्‍नेशन होता है। ये पत्रकार एक तरह से गुमनामी में रहते हैं। अखबार कार्यालय से बाहर उनकी पहचान न के बराबर होती है, पर अखबार को आकार देने में उनका योगदान नीले गगन से भी ऊंचा-ज्‍यादा होता है।

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ऐसे में सरकार से इनकी भी अपेक्षा होती है कि सरकार उन्‍हें भी मान्‍यता प्राप्‍त पत्रकारों को मिलने वाली, प्रदान की जानी वाली सुविधाओं के दायरे में लाए। उन्‍हें भी रिटायरमेंट के बाद पेंशन, इंश्‍योरेंस, मेडिक्‍लेम आदि की सुविधा प्रदान करे जिससे बढ़ती उम्र में गुजर-बसर करने का एक सहारा मिल जाए। हरियाणा सरकार की ताजा घोषित स्‍कीम ने डेस्‍क के पत्रकारों की उम्‍मीदों को पंख लगा दिए हैं। वे भी हरियाणा सरकार की ओर हसरत भरी निगाहों से देखने लगे हैं। वे भी चाहते हैं कि हरियाणा सरकार उनके प्रति भी दयावान हो, उदार हो। ढेरों रिटायर्ड डेस्‍क जर्नलिस्‍ट ने हरियाणा सरकार से गुजारिश की है कि सरकार उन पर भी मेहरबान हो, उन्‍हें भी पेंशन की सुविधा मुहैया कराने का कष्‍ट करे जिससे कष्‍टों भरा उनका जीवन थोड़ा सहज हो सके। 

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बता दें कि देश के कई प्रदेशों मसलन केरल, कर्नाटक, बिहार, उत्‍तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, गोवा, अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश आदि में पत्रकारों के लिए पेंशन स्‍कीम लागू की गई। पर पेंच वही है कि इस योजना का लाभ केवल मान्‍यता प्राप्‍त पत्रकारों को मुहैया होती है। पत्रकारों को पेंशन देने की मांग केंद्र सरकार के समक्ष भी उठाई गई है। द प्रेस एसोसिएशन ऑफ इंडिया और इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्‍ट ने अतीत में केंद्र सरकार से मांग की थी कि मान्‍यता प्राप्‍त पत्रकारों को पेंशन देने की पॉलिसी बनाई जाए। साफ है, इन नेशनल पत्रकार संगठनों ने भी डेस्‍क के पत्रकारों को इस मांग के दायरे में नहीं रखा। समय आ गया है कि देश भर के डेस्‍क जर्नलिस्‍ट आगे आएं और अवकाश प्राप्ति के बाद पेंशन के लिए अपनी मांगों को बुलंद करें। 

भूपेंद्र प्रतिबद्ध
चंडीगढ़
फोन- 9417556066
मेल- [email protected]

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0 Comments

  1. Shiv Lal

    October 31, 2017 at 12:05 pm

    प्रतिबद्ध जी ने सचमुच दिल का दर्द बयां कर दिया है। वास्तव में हो यह रहा है कि मान्यता प्राप्त पत्रकार केवल अपने को पत्रकार मानकर डेस्क पर काम करने वाले साथियोें को, जो खबरों को सज्जा-संवारने में अपना सारा जीवन बिता देते हैं, पिछड़ा समझते हैं अौर उनके दर्द को डेस्क से बाहर नहीं अाने देना चाहते, जबकि उनकी मेहनत के बिना खबर अधूरी ही रहती है। सरकार को उनके दर्द को समझते हुए उन्हें भी पेंशन का हकदार बनाना चाहिए।

  2. usha patial

    November 1, 2017 at 1:35 pm

    i appreciate your idea Mr pratibadh ji…..this is very unfortunate that desk journalists are being ignored…they are equally important in the news paper industry…i support haryana government decesion to provide pension to retired journalists but desk journalists should also be included in the scheme without any delay…this is shocking that no body in the haryana government is aware about the desk journalists ?

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