संजय कुमार सिंह
आज के अखबारों में खबरों की भरमार है। कई तरह की खबरें हैं और मोटे तौर पर इनसे सरकार या सरकारी पार्टी के चाल, चरित्र और चेहरे का पता चलता है। अखबारों में इनकी प्रस्तुति संपादकीय स्वतंत्रता का मामला है और अलग अखबार में इन्हें अलग प्रमुखता मिली है। यह संपादकीय नीति का मामला है पर उसे रेखांकित तो किया ही जा सकता है। खासतौर से इसलिए कि कल हरियाणा में मतदान है, भाजपा की हालत खराब बताई जा रही है और वोट पाने की उसकी कोशिशें स्पष्ट हैं। ठीक है कि हरियाणा के मतदाताओं पर स्थानीय अखबारों का असर होगा पर जो खबरें हैं उनकी प्रस्तुति ही तो हेडलाइन मैनेजमेंट है जो भाजापा या सरकार करवाये या अखबार स्वयं करें। सभी खबरें हेडलाइन मैंनेजमेंट नहीं हो सकती हैं लेकिन आज हैं तो इसलिए भी कि उसका ध्यान नहीं रखा गया। कारण चाहे जो हो, मामला चाल, चरित्र और चेहरे का है। मैं उसी को स्पष्ट करने की कोशिश करता हूं और इसलिए सबसे पहले द हिन्दू की आज की लीड की बात करता हूं।
यह खबर हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर लीड है। पर वह महत्वपूर्ण नहीं है। आज है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी है। हिन्दुस्तान टाइम्स का शीर्षक है, जेलों में जातीय पूर्वग्रह को बढ़ावा देने वाले नियम खारिज किये गये। इस नियम के तहत जेल में कैदियों को जाति के आधार पर काम दिये जाते थे। सुप्रीम कोर्ट ने जो कहा है और जो खबर है वह अपनी जगह। मुद्दा यह है कि कांग्रेस ने 70 साल कुछ नहीं किया और 10 साल के अच्छे दिन के बाद भी ये नियम जारी थे और सुप्रीम कोर्ट को रद्द करना पड़ा। मेरा मानना है कि यह सरकार का काम है और पुराने नियम सरकार ही बदलती है। जनहित में स्वयं बदल दिये जाने चाहिये या फिर जन प्रतिनिधियों की मांग पर यह सब खत्म हो जाना चाहिये था लेकिन जैसा मेरा मानना है, जनहित के काम सुप्रीम कोर्ट ही करती रही है। सरकार सत्ता भोगती है। नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस की जितनी और जैसी आलोचना की थी उस कारण उनसे अपेक्षाएं भी हैं लेकिन जातिवाद को खत्म करने के लिए उन्होंने अपनी ओर से काम किया होता तो आज शायद यह खबर नहीं होती। पार्टी के सांसद विधायक की तो अब वो हैसियत ही नहीं है।
बात इतनी ही नहीं है। जातिवाद राहुल गांधी के विरोध के बावजूद जारी है और इस कारण अगर वे आरक्षण को जारी रखने या उसके पक्ष में हैं तो भाजपा ने जो किया वह सबको पता है और राहुल गांधी ने जबसे इसे और इसके लिए जातिवार जनगणना को मुद्दा बनाया है प्रधानमंत्री और सरकार ने जो किया है और कर रही है वह भी सबके सामने है। कुल मिलाकर, जातिवाद खत्म किया जाना बेहद जरूरी है और चूंकि यह अभी तक चल रहा है और सरकारी स्तर पर जेलों में जारी था (और कहां है, मैं नहीं जानता) उससे जाहिर है सरकार ने अपना काम नहीं किया। जो किया है वह अपनी जगह है और अगर वोट मिलने लायक कुछ किया होता तो सरकार, भाजपा के लोग और प्रधानमंत्री उसे बताते और उसपर वोट मांगते। लेकिन चुनाव प्रचार में वह नजर नहीं आ रहा है। दूसरी ओर, मतदाताओं को बेवकूफ बनाने के लिए या अच्छा भाषण देने की अपनी योग्यता के कारण लोकलुभावन बातें करने में लगे रहते हैं। आपको याद होगा प्रधानमंत्री ने कुछ समय पहले कहा था कि देश में चार ही जातियां हैं, ‘गरीब, युवा, महिला और किसान…’। तब उन्होंने ये भी कहा था कि मैं इनके विकास के लिए काम कर रहा हूं। काम उन्होंने जो भी किये हों, किये गये हों या नहीं, आज की खबर से पता चल रहा है कि वर्षों से चली आ रही, सामाजिक बुराई जेलों में ही और भी जारी थी। समाज कितना बेहतर हुआ है और चार नई (या ही) जातियों के लिये कितना काम हुआ है उसका पता बेरोजगारी, मुफ्त राशन पाने वालों की संख्या और किसानों के आंदोलन से चलता है।
चर्चा करने योग्य आज की दूसरी बड़ी खबर टाइम्स ऑफ इंडिया में लीड है। इंडियन एक्सप्रेस में यह सिंगल कॉलम में है और हिन्दुस्तान टाइम्स में सेकेंड लीड है और भी अखबारों में है। खबर यह है कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि वह मैरिटल रेप को अपराध कहने के खिलाफ है। पत्नी की इजाजत के बिना पति द्वारा जबरन शारीरिक संबंध बनाने को मैरिटल रेप कहा जाता है। टाइम्स ऑफ इंडिया का शीर्षक हिन्दी में कुछ इस तरह होगा, विवाह की संस्था की रक्षा के लिए मैरिटल रेप को आईपीसी से अलग रखा जाये : सरकार। यही नहीं, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि ये कानूनी नहीं सामाजिक मुद्दा है, आपके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है। मुझे पता है कि समाज कानून से ही चलता है और समाज को वेश्यावृत्ति की जरूरत है इसीलिए कानूनन प्रतिबंधित होने पर खुले आम चल रहा है और इसी वेश्यावृत्ति को रोकने के लिए सरकार ने अलग कानून बनाये हैं और इसका उपयोग लोगों को परेशान करने के लिए किया जाता है। वह भी तब जब सेक्स मनुष्य की जरूरत है और शादी इसीलिए की जाती है। फिर भी, पत्नी सेक्स करने से मना करे तो कायदे से जबरदस्ती नहीं होनी चाहिये और सरकार अगर इस जबरदस्ती को जायज बनाना चाहती है तो क्यों नहीं वेश्यावृत्ति को भी जायज बनाने पर विचार किया जाये? इसके बिना जो व्यवस्था बनेगी उसमें व्यक्ति घर में पत्नी द्वारा सताया जायेगा और बाहर पुलिस या वेश्याओं द्वारा। सेक्स की जरूरत कहीं पूरी नहीं होगी और सरकार कहती है कि इस संबंध में कानून बनाना सुप्रीम कोर्ट का अधिकार नहीं है। और समाज की चिन्ता भी करनी है।
मुझे लगता है कि शादी करके सेक्स नहीं करना या करने देना कम आपराधिक नहीं है। जबरदस्ती तो प्यार भरा चुंबन नहीं लिया जाना चाहिये सेक्स तो बहुत बड़ी बात है। फिर यह अपराध क्यों न हो? यह सरकार कैसे तय कर सकती है या क्यों कर रही है। उसे बहुमत इस मामले में फैसले के लिए नहीं मिला है। और इस मामले में फैसला बहुमत के आधार पर तो नहीं ही होना चाहिये। क्योंकि व्यक्ति की जरूरत अलग हो सकती है। अगर सेक्स करना या नहीं करना या जबरदस्ती करना अपराध या मुद्दा है तो विवाह तोड़ने के मामले में कारण यह हो तो क्या होगा। मुस्लिम विवाह के बारे में जो मैंने पढ़ा है, वह आसान है तय रकम दीजिये अलग हो जाइये। रकम नहीं देने को कारण बनाना चाहें तो बनाइये। हिन्दुओं में ऐसा नहीं है। एक बार फंसे तो जीवन भर झेलिये या हर्जाना दीजिये। और वह कमाने वाली या ज्यादा कमाने वाली पत्नी को भी देना पड़ता है। फिर भी, नये बने भारतीय न्याय संहिता की धारा 63 (बलात्कार) के अपवाद 2 के मुताबिक मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना गया है। (भास्कर डॉट कॉम के अनुसार)
यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात करने वाली सरकार ऐसे मामले में अपनी ऐसी राय कैसे सब पर लागू कर सकती है। बुनियादी तौर पर यह मुझे किसी भी तरह की जबरदस्ती का समर्थन लगता है। चाहे वह किसानों को दिल्ली पहुंचने से रोकने के लिए सड़कों पर कील लगाना हो या ऐन चुनाव (मतदान) से पहले किसानों के लिए एक लाख करोड़ की योजना की घोषणा करना। कुल मिलाकर आज की ये दो खबरें इस सरकार का चाल चरित्र और चेहरा उजागर कर रही हैं। किसानों के मामले में आप इस सरकार के काम, विचार और रुख को जानते हैं। देश में सक्षम और संपन्न किसानों और किसान परिवार की आबादी पंजाब के बाद हरियाणा में ही है और संभव है इस चुनाव में किसान भाजपा को इसका मजा चखायें। पर भाजपा सरकार में है और किसानों के पक्ष में योजनाएं बना सकती है। किसान इसकी मांग भी कर रहे थे और सरकार को यह सब करना भी था। पर किया (कम से कम घोषणा) ऐसे समय में की कि अखबारों में इसकी सूचना मतदान से एक दिन पहले छपी है ताकि चर्चा हो औऱ व्हाट्सऐप्प से पन्ना प्रमुख होते हुए हर मतदाता तक पहुंचाई जा सके।
अमर उजाला की आज की लीड का शीर्षक है, किसानों की आय बढ़ाने व खाद्य सुरक्षा के लिए एक लाख करोड़। उपशीर्षक है, केंद्रीय कैबिनेट ने दो अहम योजनाओं को मंजूरी दी। कृषि के लिए 69088.89 करोड़ रुपये। खबर के अनुसार केंद्रीय कैबिनेट ने प्रधानमंत्री राष्ट्रीय कृषि विकास योजना और कृषोन्नति योजना को मंजूरी दी है। इन योजनाओं पर कुल 1,01,321.61 करोड़ रुपये खर्च होंगे। इसे एक लाख करोड़ रुपये या एक लाख करोड़ से ज्यादा खर्च होंगे लिखा जा सकता है। यही शीर्षक है। लेकिन उपशीर्षक में लिखा है कृषि के लिए 69088.98 करोड़ रुपये। इसमें दो करोड़ रुपये और होते तो यह राशि 69089 करोड़ रुपये होती। दशमलव के नियम से भी इसे 69089 करोड़ लिखा जा सकता है। पढ़ने की आसानी और याद रखने के लिए इसे 69 करोड़ कहना आसान होगा लेकिन विज्ञप्ति को खबर बनाया जाये तो ऐसा हो सकता है और यह देखने में ज्यादा लगता है। आज यह खबर नवोदय टाइम्स में भी लीड है। एक लाख करोड़ से लहलहायेगी खेती। मुझे 2015 के बिहार चुनाव के समय घोषित एक लाख 25 हजार करोड़ रुपये के पैकेज की याद आती है। इसका क्या हुआ कुछ पता नहीं है और यह इसलिए महत्वपूर्ण है कि बिहार में सत्तारूढ़ पार्टी के समर्थन से केंद्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार चल रही है। यह 2014 से पहले किये गये उस वादे की तरह नहीं है कि स्विस बैंक में भारतीयों का इतना काला धन है कि वापस आ जाये तो हर किसी को 15 लाख मिलेंगे।
राष्ट्रपिता बनाम देश के लाल
चुनाव जीतने के लिए इस तरह की चाल को गलत नहीं मानना सही हो सकता है। आप जिसके समर्थक हैं उसका ऐसा कहना-करना गलत नहीं लगे, यह संभव है। लेकिन कोई बार-बार यही तरीका अपनाये और वह कामयाब होता जाये तो यह उसकी राजनीति की खासियत भी है और इसे रेखांकित किया जाना चाहिये। यह मीडिया और दूसरे प्रचारकों का काम है कि वे ऐसा करें पर इससे पहले उन्हें इसे समझना होगा। अगर वे इसे सरकार या प्रधानमंत्री या सत्तारूढ़ पार्टी का अधिकार या विवेक मानेंगे तो वही होगा जो 10 साल से हो रहा है। पर वह अलग मुद्दा है। हरियाणा चुनाव से पहले किसानों को प्रभावित करने के लिए इस बार भाजपा समर्थकों ने 2 अक्तूबर को राष्ट्रपिता बनाम देश के लाल का मुद्दा भी बनाया। प्रचारक जो सब कर सकते थे किया पर वह खबर नहीं है। खबर आज द टेलीग्राफ में सिंगल कॉलम में छपी है। खबर के अनुसार भाजपा सांसद और फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत ने अपने इंस्टाग्राम पेज पर लिखा था, देश के पिता नहीं, देश के तो लाल होते हैं। खबर के अनुसार कंगना ने महात्मा गांधी को सीधे तौर पर श्रद्धांजलि नहीं दी पर बाद की एक पोस्ट में महात्मा गांधी का उल्लेख प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ में किया। देश भर में सफाई की गांधी की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने मोदी की सराहना की। कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने पूछा है, … क्या मोदी जी अपनी पार्टी की नई गोड्से भक्त को माफ करेंगे।
बांग्लादेश के हिन्दुओं से ही मतलब है?
बांग्लादेश का मामला यहां पहले पन्ने पर तभी तक रहा जब तक वहां के हिन्दुओं की चिन्ता थी। तख्ता पलट के बाद शेख हसीना के भारत आने, यहां शरण मिलने के बीच वहां के हिन्दुओं की चिन्ता जताई जाती रही और उन्हें सताने की खबरें भी आती रहीं पर नए या अंतरिम निजाम ने भारत में तैनात अपने राजदूत को वापस बुला लिया है। किसी दूसरे या पड़ोसी देश में तख्ता पलट के बाद वहां के नागरिकों के एक वर्ग के साथ क्या हो रहा है यह यहां के अखबारों के लिए खबर थी तो राजदूत को बुलाये जाने की खबर उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है। आज द टेलीग्राफ में यह तीन कॉलम में छपी है। दूसरे किसी अखबार में मुझे नहीं दिखी। खबर के अनुसार, कैनबरा, ब्रसेल्स, लिस्बन और संयुक्त राष्ट्र में बांग्लादेश के राजनयिक मिशनों के प्रमुखों को इसी तरह के निर्देश जारी किए गए हैं। सभी पांचों को तुरंत ढाका लौटने के लिए कहा गया। बांग्लादेश में अंतरिम सरकार के प्रमुख, दूतों मुहम्मद यूनुस को वापस बुलाया गया। एक अधिकारी ने कहा, (रॉयटर्स फ़ाइल चित्र) घरेलू प्रशासन के साथ-साथ राजनयिक सेवा में फेरबदल के दूसरे चरण का प्रतीक है। अगस्त में कार्यभार संभालने के तुरंत बाद, अंतरिम सरकार ने अमेरिका, रूस, जापान, जर्मनी, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और मालदीव में बांग्लादेश के शीर्ष दूतों को वापस लौटने के लिए कहा था। विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के हवाले से रॉयटर्स ने ढाका से खबर दी है कि वापस बुलाए गए सभी राजनयिक दिसंबर में सेवानिवृत्ति के बाद छुट्टी पर जाने वाले थे।
शेयर बाजार के हाल भी लीड है
इन खबरों के अलावा आज इंडियन एक्सप्रेस की लीड भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। फ्लैग शीर्षक के अनुसार, फॉरेन पोर्टफोलियो इनवेस्टर (एफपीआई) या विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक ने पूंजी बाजार से 15,243 करोड़ रुपये निकाल लिये हैं। नए एफएंडओ और पश्चिम एशिया (युद्ध) के कारण सेनसेक्स और निफ्टी दो प्रतिशत से ज्यादा गिरा। एक दिन में निवेशकों के 9.78 लाख करोड़ रुपये चले गय़े। सरकारी जबरदस्ती और मनमानी की एक और खबर आज इंडियान एक्सप्रेस में है। कहने की जरूरत नहीं है कि इंडियन एक्सप्रेस में ऐसी या एक्सक्लूसिव खबरें अक्सर होती है और जाहिर है इनकी वजह से इसके पहले पन्ने पर आम खबरें नहीं होती हैं और नियमित पाठक के रूप में मैं भी उनकी परवाह नहीं करता लेकिन जो खबरें पहले पन्ने पर होती हैं उनकी बात अलग है। आज की खबर के अनुसार ईडी का गुरुग्राम कार्यालय एक ऐसे फार्म हाउस से चल रहा है जिसे उसने ‘जब्त’ किया है। ढाई एकड़ के इस, ‘जब्त’ फार्म हाउस में जब्त महंगी गाड़ियां भी रखी जाती हैं और स्विमिंग पूल में फर्नीचर रखे हुए हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि सरकार और पार्टी के एक महत्वपूर्ण विभाग और शाखा के रूप में काम कर रहे ईडी का यह हाल और काम सामान्य नहीं है। पर यही अच्छे दिन हैं।
इंटर्नशिप योजना और उसका प्रचार
सरकार के प्रचार और हेडलाइन मैनेजमेंट वाली आज की एक और खबर है, इंटर्नशिप योजना शुरू, प्रतिमाह मिलेंगे 5000 रुपये। यह अग्निवीर जैसी योजना है जो सिर्फ कार्यकर्ता और निजी सेना तैयार करने के काम आयेगी। सरकार को इससे न सिर्फ जनता के लाभ की उम्मीद है, वोट के फायदे की भी उम्मीद होगी और इसीलिए बहुप्रचारित इस योजना में कुछ खास नहीं है फिर भी आज यह खबर छपी है। कुछ दिन पहले खबर थी कि पांच सौ कंपनियां इसके लिए तैयार हो गई हैं। तब मैंने लिखा था कि कैसे इसमें कुछ नया और खास नहीं है तथा मुझे इससे कोई उम्मीद नहीं है। प्रधानमंत्री की योजना है इसलिए कंपनियों की मजबूरी है। अमर उजाला में आज यह टॉप पर चार कॉलम में है और बताया गया है कि इसके लिए पंजीकरण विजयादशमी से (हरियाणा में मतदान के बाद) शुरू होगा और इंटर्नशिप दो दिसंबर से है। खबर में बताया गया है कि योजना में भाग लेने वालों को 5,000 रुपये (ज्वाइन करने पर 6,000) मिलेंगे। यहां यह बता दूं कि पीआईबी की विज्ञप्ति के अनुसार ए श्रेणी के शहरों में अकुशल मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी रोज 783 रुपये और महीने के 20,358 रुपये है। नियमानुसार इससे कम देना गैरकानूनी है, अपराध है।
यहां सिर्फ 6,000 रुपये मिलेंगे, क्योंकि वह मुफ्त प्रशिक्षण तथाकथित इंटर्नशिप योजना का भाग होगा। प्रशिक्षु काम तो करेगा ही, उत्पादन में सहयोग भी रहेगा फिर भी झाड़ू लगाने जैसे अकुशल और अशिक्षित काम की तुलना में उसे कम से कम 15,000 रुपये कम मिलेंगे। दावा यह कि योजना निशुल्क है, इससे कल्याण होगा। काम सीखने या सीखाने के पांच या छह हजार रुपये मिलेंगे। कहने की जरूरत नहीं है कि असंगठित क्षेत्र में इस तरह का प्रशिक्षण हर पंक्चर लगाने वाला या गैराज में मिलता है। बाल मजदूरी पर प्रतिबंध के बाद काम सीखते बच्चे कम दिखते हैं और पंक्चर लगाने का काम कम हुआ तथा तकनीक भी बदल गया है। इसलिए यह अब कम है लेकिन हर काम का प्रशिक्षण (हेल्पर या खलासी के रूप में) जारी है (कॉरपोरेट में जहां जरूरी है वहां तो है ही)। यह नई योजना काम करवाने वाले के लिए लगभग मुफ्त है और काम सीखने वाले के लिए पहले की असंगठित क्षेत्र की व्यवस्था से कत्तई बेहतर नहीं है। प्रचार और प्रचारकों की राय व समाज को उनकी सेवा अपनी जगह।
भगदड़ में मौत के बाद चार्जशीट
आप जानते हैं कि हाथरस में भोले बाबा के सत्संग में भगदड़ मचने से 121 लोगों की मौत के मामले में हाल में दायर की गई चार्जशीट में बाबा का नाम नहीं है। द हिन्दू में तीन कॉलम में छपी खबर के अनुसार बसपा नेता मायावती ने इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार की खिंचाई की है। बसपा नेता ने कहा है कि इसका मतलब बाबा उर्फ सूरजपाल सिंह को राज्य सरकार का संरक्षण हासिल है। उत्तर प्रदेश डबल इंजन वाला राज्य है। खबर के अनुसार, एक्स पर अपनी पोस्ट में मायावती ने पूछा है कि सरकार का रुख ऐसा रहेगा तो क्या भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है।
मणिपुर में थाने से हथियार लूटे गये
टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर छपी खबर के अनुसार मणिपुर के थाने से भीड़ ने हथियार और गोला-बारूद लूट लिया। अखबारों में खबर है कि दो अपहृत मैतेई छोड़ दिये गये हैं। लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर है, 11 कुकी के बदले दो मैतेई छोड़े गये। यही शीर्षक हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर का है। कुछ दिन पहले दो कुकी युवकों के अपहरण की खबर आई थी अब पता चल रहा है कि यह 11 मैतेइयों के बदले किया गया था। खबरों के अनुसार 11 कुकी जेल से छोड़े गये हैं। ऐसे में आप स्थिति का अंदाजा लगा सकते हैं। आप जानते हैं कि वहां डेढ़ साल से हिंसा चल रही है। प्रधानमंत्री ने वहां जाना तो दूर, शांति या कानून व्यवस्था बनाये रखने की अपील भी ढंग से नहीं की है। लेकिन कुर्सी नहीं छोड़नी।
हरियाणा में चुनाव प्रचार
दि एशियन एज में हरियाणा चुनाव प्रचार की खबर लीड है। फ्लैग शीर्षक के दो बिन्दु हैं – 1) हरियाणा में कल मतदान 2) भाजपा नेता वापस कांग्रेस में। मुख्य शीर्षक है, रिश्वत के लिए प्रधानमंत्री ने कांग्रेस पर निशाना साधा; राहुल ने रोजगार को लेकर मोदी को खींचा। इस मुख्य खबर के साथ पहले पन्ने पर एक फोटो है। इसका कैप्शन है, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, पूर्व भाजपा नेता अशोक तंवर के साथ। महेन्द्रगढ़ में एक जनसभा के दौरान तवंर कांग्रेस में शामिल हो गये। इस खबर से साफ है कि भाजपा के पास ना अपने पक्ष या प्रचार में कहने के लिए कुछ है और ना मुख्य विपक्षी राहुल गांधी के खिलाफ कुछ है। पत्रकार और चैनल मालिक रजत शर्मा ने एक्स पर एख वीडियो डाल कर आरोप लगाया है कि राहुल गांधी ने नशे की खेप पकड़े जाने के मामले में पार्टी के पूर्व नेता (जिसकी फोटो एक मौजूदा नेता के साथ सार्वजनिक है) के संबंधों पर कुछ नहीं कहा। मैंने लिखा है कि कहा होता तो चोर की दाढ़ी में तिनका बना दिया जाता। पर मूल मुद्दे का जवाब ना सरकार दे रही है ना रजत शर्मा। कहने की जरूरत नहीं है कि सरकार को कांग्रेस नेता के खिलाफ कार्रवाई से किसी ने नहीं रोका है पर रजत शर्मा प्रचार का मौका नहीं चूके।
अंत में व्यवस्था और कानून-व्यवस्था
हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर खबर है, कालकाजी मंदिर में करंट लगने से युवक की मौत। खबर के अनुसार, नवरात्र के पहले दिन मंदिर में भीड़ थी और भगदड़ में छह लोग घायल हो गये। नवरात्र पर विशेष रोशनी के लिए जो लाइट लगी थी उसकी तार टूट गई और रेलिंग के संपर्क में आने से उसमें भी करंट आ गई। हादसा इस कारण हुआ। इसके लिए दिल्ली सरकार जिम्मेदार हो या केंद्र सरकार – हादसा मंदिर में हुआ और मरने वाले का नाम मयंक शर्मा है।
टाइम्स ऑफ इंडिया ने पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर खबर छापी है, दो अवयस्कों ने अस्पताल के अंदर यूनानी डॉक्टर को गोली मारी। यह देश की राजधानी में कानून व्यवस्था की स्थिति है और अस्पताल में (या कार्यस्थल पर) डॉक्टर की हत्या का मामला है। पर कोलकाता में आरजी कर अस्पताल के मामले की तरह नहीं है तो शायद इसलिए कि मारा गया डॉक्टर पुरुष है और उसके साथ बलात्कार नहीं हुआ है। नवोदय टाइम्स में आज ही खबर है कि कोलकाता के मामले की जांच कर रही सीबीआई ने भ्रष्टाचार मामले में टीएमसी के नेता आशीष पांडे को गिरफ्तार किया है। बलात्कार, हत्या के मामले में सीबीआई जांच में क्या प्रगति हुई है यह खबर मेरे आठ अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है। मुझे लगता है कि तृणमूल नेता की गिरफ्तारी के कारण ही यह दिल्ली में पहले पन्ने पर है। वरना हिन्दुओं की रक्षा को जरूरी और मुसलमानों (घुसपैठियों) की बढ़ती आबादी से परेशान सरकर के जमाने में किसी आशीष पांडे की भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तारी और पहले पन्ने की खबर … बात जमती नहीं है।