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हिन्दुस्तान अखबार के गोरखपुर संस्करण को अब मिला आरएनआई नंबर, कोई तो आरटीआई लगाए

गोरखपुर। वर्षों से ‘अप्लायड फार’ लिखकर काम चला रहे हिन्दुस्तान अखबार के गोरखपुर संस्करण को आरएनआई नंबर अब जाकर मिला है. हिन्दुस्तान गोरखपुर को यूपीएचआइएन /2014/58965 नंबर मिला है. वहीं सवाल ये भी है कि क्या सिर्फ ‘अप्लाइड फार’ लिखकर कई वर्षों तक अखबार निकाला जा सकता है. जब तक आरएनआई से रजिस्ट्रेशन नंबर न मिल जाए, तब तक मैग्जीन अखबार निकालना गैर-कानूनी होता है.

<p>गोरखपुर। वर्षों से 'अप्लायड फार' लिखकर काम चला रहे हिन्दुस्तान अखबार के गोरखपुर संस्करण को आरएनआई नंबर अब जाकर मिला है. हिन्दुस्तान गोरखपुर को यूपीएचआइएन /2014/58965 नंबर मिला है. वहीं सवाल ये भी है कि क्या सिर्फ 'अप्लाइड फार' लिखकर कई वर्षों तक अखबार निकाला जा सकता है. जब तक आरएनआई से रजिस्ट्रेशन नंबर न मिल जाए, तब तक मैग्जीन अखबार निकालना गैर-कानूनी होता है.</p>

गोरखपुर। वर्षों से ‘अप्लायड फार’ लिखकर काम चला रहे हिन्दुस्तान अखबार के गोरखपुर संस्करण को आरएनआई नंबर अब जाकर मिला है. हिन्दुस्तान गोरखपुर को यूपीएचआइएन /2014/58965 नंबर मिला है. वहीं सवाल ये भी है कि क्या सिर्फ ‘अप्लाइड फार’ लिखकर कई वर्षों तक अखबार निकाला जा सकता है. जब तक आरएनआई से रजिस्ट्रेशन नंबर न मिल जाए, तब तक मैग्जीन अखबार निकालना गैर-कानूनी होता है.

या ‘अप्लाइड फार’ लिखकर छापने की भी एक समय-सीमा होती होगी. लेकिन ये बड़े घराने के अखबार तो जैसे कानूनों की धज्जियां उड़ाने को बैठे रहते हैं. बिहार में बिना रजिस्ट्रेशन नंबर लिए अखबार निकालने और सरकारी विज्ञापन छापने के एक मामले में हिंदुस्तान की मालकिन और इसके कई संपादक मैनेजर लोग बुरी तरह कोर्ट कानून के चक्कर में फंसे हुए हैं. अगर कोई गोरखपुर का व्यक्ति भी इस मामले में आरटीआई लगाकर डिटेल निकलवाए और हिंदुस्तान अखबार पर मुकदमा ठोंक दे तो इन्हें लेने के देने पड़ जाएंगे.

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