विभु मिश्रा-
हेडिंग पढ़ते ही आपके माथे पर जरूर पसीना आ गया होगा। आना भी चाहिए क्योंकि पुरानी नोटबन्दी की पीड़ा और लंबी-लंबी लाइनों को आप भूले नहीं होंगे। खासतौर पर देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 90 वर्षीय मां को चार हजार रुपये के लिए लाइन में लगा देखना। राहुल गांधी को लाइन में लगा देखना। अब एक बार फिर इंडिया ‘सॉरी’ भारत उन्ही लाइनों में लगता दिख रहा है।
चलिए आपको बताता हूँ कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ। दरअसल पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के सर्वों से डरी मोदी सरकार की ‘नाटक कम्पनी’ ने दो दिनों से एक नया शिगूफा छेड़ दिया है। और ये है ‘इंडिया’ का नाम जोकि पहले से ही भारत है उसे कागजी तौर पर भी ‘भारत’ करने का। जल्दबाजी इतनी की राष्ट्रपति के एक इनविटेशन पर ‘प्रेजिडेंट ऑफ भारत’ भी लिख डाला।
अरे ये सब नाटकबाजी करने से पहले अपनी पार्टी का कुछ साल पहले का ही इतिहास उठा कर देख लिया होता। 2004 में यूपी सरकार के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने इसी मांग को उठाया था जिसका भाजपा ने पुरजोर विरोध किया था। उसके बाद केंद्र में सरकार बनाने के बाद भी इसी भाजपा सरकार के गृह मंत्रालय ने अपनी ही उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की मांग पर कहा था कि देश का नाम बदलने की जरूरत नहीं है। तोएबा ऐसी क्या आफत आई कि एकाएक मोदी सरकार ने ये फैसला ले लिया।
अब सबसे महत्वपूर्ण ये हो जाता है कि अगर मोदी सरकार ने देश का नाम इंडिया से बदलकर भारत रख दिया तो उसकी खुद की महत्वकांक्षी ‘स्किल इंडिया’, ‘स्टार्टअप इंडिया’ जैसी योजनाओं का क्या होगा? क्या उनका भी नाम बदला जाएगा? ‘गेटवे ऑफ इंडिया’ और ‘इंडिया गेट’ का ऐतिहासिक नाम भी बदलेगी ये सरकार। इन सबसे इतर ‘रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया’ और नोटों पर लिखे ‘रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया’ का क्या करेगी ये जुमलेबाजी हठधर्मी सरकार? क्या दोबारा नोट छापेगी मोदी सरकार? मतलब क्या देश मे फिर से नोटबन्दी करेगी सरकार? इन तमाम सवालों का जवाब भी दे देती ये सरकार……