कुमुद सिंह-
भारत में 50 लाख से अधिक लोग मर चुके हैं… सरकारी आंकड़ों और जमीनी पड़ताल के बीच बस इतने का अंतर है. कश्मीर से कन्याकुमारी तक यही हो रहा है. मध्यप्रदेश की राजधानी में जब इतनी लाशें छुपायी जा सकती है तो सोचिए गांव कस्बों का क्या हाल होगा..
देश में शहरों की ही संख्या कितनी है. अस्पतालों में कितनी मौतें हो रही हैं. आप कहेंगे डराइये नहीं. हम कहते हैं कि आप डरते क्यों नहीं हैं, यह डरने का समय है.. मोदी मोदी न समर्थन में करें और न विरोध में..
मोदी को जो करना था उसने कर दिया.. अब कोरोना जो करना है कोरोना को करना है, क्योंकि आपके पास न अस्पताल है, न दवा है और न ही ऑक्सीजन.. एक वोट था आपके पास जो आपने बिना सोचे समझे मोदी को दे दिया है… आपको अग्रिम श्रद्धांजलि.
आप एक माह पहले ऑक्सीजन निर्यात कर रहे थे मोदी जी. आज राज्य एक दूसरे से छीना झपटी कर रहे हैं. चीन आपको जहाज नहीं दे रहा है. UNO को आप पर भरोसा नहीं है. पडोसी देशों से आयात करने लायक आपके पास टेंकर नहीं है.. आप की दूरदर्शिता, विदेश नीति और 56 इंच का सीना सब बेकार गया. लोग मरेंगे.
जब सरकारें निकम्मी हो जाती है, तो समाज सरकार के भरोसे मरेगी तो नहीं..यह रजवारे के समय कम होता था, लेकिन उस वक्त भी समाज राजा के भरोसे जिंदा नहीं था, अपना कुछ न कुछ जुगाड़ कर लेता था. राजा किसी भी व्यवस्था में हो, समाज उसके लिए केवल लगान वसूली का साधन नहीं होता है. सरकार से जब समाज नामुम्मीद हो जाती है तो यही सब करती है. यह खबर उसी हालात को दिखा रही है.
अविनाश प्रधान-
महामारी गांवों को अपनी चपेट में ले चुकी है।कुछ लोग कोरोना से संक्रमित हो प्राण गंवा रहे हैं तो कुछ लोग महामारी से उत्पन्न चिकित्सकीय अराजकता से।सरकारी आंकड़ों में ये मौतें दर्ज नहीं हो रही हैं। मेरे गांव के सामने गंगा के तट पर एक श्मशान घाट है। यहां दाह संस्कार की बढ़ी रफ्तार ने लोगों को चौंका दिया है।
पूर्व ब्लाक प्रमुख मित्रसेन प्रधान अंत्येष्टि स्थल की देखरेख करने वालों के अनुसार सामान्य दिनों में यहां पांच से दस तक प्रतिदिन अंतिम संस्कार होते हैं।लेकिन 20 से 30 अप्रैल के बीच 11दिनों में 421 शवों के अंतिम संस्कार हुए हैं। यह संख्या केवल दिन और संध्या समय हुए अंतिम संस्कारों का है। यहां के डोमराज आशिक के अनुसार रात में भी प्रतिदिन पांच से दस अंतिम संस्कार हो रहे हैं,जो यहां के रिकॉर्ड में भी नहीं है।
मौतें हर उम्र वर्ग की हो रही हैं।घाट पर हम लोग भी अत्यंत सावधानी से रह रहे हैं।लोग स्वेच्छा से देते हैं वही ले लेते हैं।अब आग्रह कर मांगने का भी मन नहीं करता। तब अत्यंत सावधानी और भगवान भरोसे ही हम बच सकते हैं इस महामारी के दौर में।व्यवस्था ने लोगों को छोड़ दिया है आत्मनिर्भर बना कर।अब हम खुद तय करें हमारे साथ क्या हुआ है और हो रहा है।