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उत्तराखण्ड से लगी चीनी सीमा पर हमें चौकन्ना रहने की ज़रूरत है

चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने एक बार फिर भारतीय सीमा के अंदर हेलीकाप्टर उड़ाकर हवाई सीमा का उल्लंघन किया है। यह पहली बार नहीं हुआ है। इससे पहले भी कई बार इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं। लेकिन इस बार जो नया है वह यह कि पीएलए ने शांत माने जाने बाले उत्तराखंड के चमोली जनपद के इलाके को चुना। हालांकि पूर्व में भी यहां चीनी सैनिक सीमा पार कर भारतीय क्षेत्र में आते रहे हैं लेकिन किसी भी बड़ी घटना को अंजाम नहीं दिया गया। इस साल दो माह के अन्तराल में पीएलए के हैलीकाप्टर ने एक बार नहीं दो बार हवाई क्षेत्र का उल्लंघन किया है।

<p><strong>चीन </strong>की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने एक बार फिर भारतीय सीमा के अंदर हेलीकाप्टर उड़ाकर हवाई सीमा का उल्लंघन किया है। यह पहली बार नहीं हुआ है। इससे पहले भी कई बार इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं। लेकिन इस बार जो नया है वह यह कि पीएलए ने शांत माने जाने बाले उत्तराखंड के चमोली जनपद के इलाके को चुना। हालांकि पूर्व में भी यहां चीनी सैनिक सीमा पार कर भारतीय क्षेत्र में आते रहे हैं लेकिन किसी भी बड़ी घटना को अंजाम नहीं दिया गया। इस साल दो माह के अन्तराल में पीएलए के हैलीकाप्टर ने एक बार नहीं दो बार हवाई क्षेत्र का उल्लंघन किया है।</p>

चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने एक बार फिर भारतीय सीमा के अंदर हेलीकाप्टर उड़ाकर हवाई सीमा का उल्लंघन किया है। यह पहली बार नहीं हुआ है। इससे पहले भी कई बार इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं। लेकिन इस बार जो नया है वह यह कि पीएलए ने शांत माने जाने बाले उत्तराखंड के चमोली जनपद के इलाके को चुना। हालांकि पूर्व में भी यहां चीनी सैनिक सीमा पार कर भारतीय क्षेत्र में आते रहे हैं लेकिन किसी भी बड़ी घटना को अंजाम नहीं दिया गया। इस साल दो माह के अन्तराल में पीएलए के हैलीकाप्टर ने एक बार नहीं दो बार हवाई क्षेत्र का उल्लंघन किया है।

इस बार की घुसपैठ 13 जून को हुई बताई जा रही है। यह बाराहोता के रिमखिम सेक्टर में हुई है। यहां भारतीय तिब्बत सीमा की चैक पोस्ट है। यहां सैनिक मूवमेन्ट अन्य सीमाओं की अपेक्षा कम है। कुछ समय पहले भारत व चीन के बीच सहमति बनी थी कि इस सीमा पर दोनो देश सैनिक नहीं रखेंगे। यही कारण है कि भारत के सैनिक सीमा से लगभग सौ किमी दूर जोशीमठ तक ही सीमित हैं। जहां पर भारतीय सेना के माउन्टेन ब्रिगेड का मुख्यालय है। यह सीमा भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस के नियंत्रण में है। पिछले कुछ सालों में अन्य सीमाओं पर घुसपैठ की घटना हुई थी लेकिन इस सीमा पर स्थिति सामान्य ही रही। लेकिन जिस तरह से पीएलए ने हवाई सीमा का उल्लंघन किया है, वह चिन्तनीय अवश्य है।

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यदि भारत व चीन की सीमाओं पर स्थिति की तुलना करें तो चीन बेहतर स्थिति में है। वह सरहद पर चारों ओर से सीमा विस्तार में लगा है। दक्षिण-पूर्व की अपनी सागरी सीमा में विस्तार वो कुछ साल पहले ही कर चुका है। भारतीय सीमा पर भी उसकी घुसपैठ बदस्तूर जारी है। भले ही चीनी सैनिकों की इस हरकत को भारत सरकार हल्के में ले, लेकिन देश की संप्रभुता को बचाए रखने के लिए चैकन्ना होने की जरूरत है। खासतौर से उन सीमाओं पर सतर्क होना आवश्यक है जहां चीन इस तरह की घटनाओं की शुरूआत कर रहा है। इसमें उत्तखंड राज्य से लगी सीमाएं बेहद महत्वपूर्ण हैं। हालांकि सरकार की ज्यादा चिन्ता सैंट्रल सेक्टर को लेकर है।

सीमा पर चीन की स्थिति का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि वहां सन् 1954 से ही सड़को का जाल बिछना शुरू हो गया था। वर्तमान में संसाधनों के मामले में वो हमसे कहीं आगे है। सिनच्यांग राज्य से ल्हासा तक 1800 किलोमीटर राजमार्ग बन चुका है। पेंचिंग से ल्हासा रेल मार्ग द्वारा आठ साल पहले ही जुड़ चुका है। इन दोनों शहरों के बीच 4,040 किलोमीटर की दूरी को 48 घंटे में तय किया जा सकता है। इस रेल लाइन को बिछाने में चीनियों ने सराहनीय कार्य किया। विषम परिस्थितियां भी चीनियों के हौसले नहीं डिगा पाई।

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यहां हमें अपने और चीनियों के काम करने के ढंग और जज्बे को समझना होगा। जहां चीनियों ने विपरीत परिस्थितियों में भी रेल मार्ग को पूरी प्राथतिकता दी वहीं हम प्रकृति पर निर्भर है। बर्फबारी के चलते हमारी सीमाओं पर चार पांच महीने काम नहीं होता है, लेकिन चीनी कामगारों ने रात का तापमान शून्य से 43 डिग्री सेंटिगे्रड कम होने के बावजूद काम जारी रखा। चीन ने रिकार्ड पांच सालों में चार हजार किमी रेल लाइन बिछा दी और हम पांच सालों मं चालीस किलोमीटर तक सड़क नहीं बना पाये हैं। इसमें भी भारी अनियमितताएं हैं।

यदि हम चीन से सरहद पर अपनी स्थिति की तुलना करें तो हमारी स्थिति चिंताजनक है। चीन अपनी राजधानी से सीमा पर दो दिन में पहुंच सकता है, जबकि दिल्ली से इस सीमा पर आने में हमें पांच से छह दिन का वक्त लगेगा। गौर करने वाली बात यह है कि उत्तराखण्ड राज्य से लगी सरहद पर पिछले छह साल से सड़कों के निर्माण का कार्य चल रहा है, लेकिन अभी ये सड़कें पूरी नहीं बन पाई हैं। शीतकाल के बाद जब भारतीय सैनिक सीमा पर जाते हैं तो उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अस्थाई पुलों के ध्वस्त होने के चलते उन्हें रस्सियों के सहारे नदी नालों को पार करना पड़ता है। यह स्थिति हमेशा की है। माणा- बाडाहोती मार्ग अभी पूरा नहीं हो पाया है। माणा-माणा पास पर डामरीकरण का काम चल रहा है। यही स्थिति भैंरोघाटी-चोकला सड़क की भी है। सड़क निर्माण के प्रति निर्माण ऐजेंसी कितनी संवेदनशील है उसकी बानगी जोशीमठ-मलारी राष्ट्रीय राजमार्ग है। जहां भारतीय सीमा के अंतिम आबाद गांव जुम्मा के पास घौली नदी पर उल्टा गार्डर पुल बनाया गया है। पुल का अलाइमेन्ट आउट है। समझना कठिन नहीं है कि सीमा पर फिर सड़क की क्या स्थिति होगी।
 
यहां भारतीय सीमा पर आईटीबीपी के जवान तैनात हैं। इस सीमा पर दोनों देशों के बीच बनी सहमति के कारण सैनिकों के बजाय पैरा-मिलिट्री फोर्स के जवानों की तैनाती है। यहां की चार सौ किलोमीटर सीमा की रखवाली का जिम्मा आईटीबीपी के पास है। इस सीमा पर वैसे अन्य सीमाओं की अपेक्षा कम तनाव है। सन् 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान भी यहां स्थिति सामान्य रही थी। घुसपैठ की घटनाएं भी मामूली ही रहती है। कभी चीनी सैनिक तो कभी भारतीय सैनिक एक दूसरे के इलाकों में आते जाते रहते है। लेकिन हाल में इस सीमा में दो बार पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के हैलीकाप्टरों ने हवाई सीमा का उल्लंघन किया है, उसको देखते हुए भारत सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे। यहां समझना जरूरी है कि चीन इस भारतीय क्षेत्र के अधिकांश हिस्से पर अपनी दावेदारी करता है। संसाधनों के मामले में भी चीन भारत से काफी आगे है। यहां उसने सड़क व रेल दोनों मार्ग बना लिए हैं। हम बेफिक्र हैं, कहीं हमारी बेफिक्री की बड़ी कीमत न चुकानी पड़ जाए। क्योंकि हिन्दु चीन भाई-भाई के जुमले के बीच चीन ने क्या गुल खिलाया था?

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बृजेश सती
देहरादून
94120324371

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