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मध्य प्रदेश

अफीमग्रस्त समुदाय इस प्रत्याशी को गरियाने लगे उससे पहले जान लीजिये ये बला क्या है?

सुरेश चिपलुनकर-

इंदौर लोकसभा क्षेत्र से एक बेहद छोटी सी पार्टी भी चुनाव में है. इस पार्टी के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया काफी समय से जारी है, और चुनाव आयोग एक बार रिजेक्ट भी कर चुका है. इस पार्टी के उम्मीदवार हैं अभय जैन. अतः वे “निर्दलीय” के रूप में हैं. वे B.E. और M.Tech. हैं, उनकी RSS आयु 22 वर्ष की है, तथा राम मंदिर आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने सहित अन्य खूबियाँ पोस्ट के संलग्न चित्र में दी हैं.

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आप सोच रहे होंगे कि इसमें ऐसी क्या ख़ास बात है? ऐसी दर्जनों पार्टियां आती और चली जाती हैं. कोई चुनाव नहीं जीत पाता है. लेकिन इस राजनैतिक पार्टी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इससे जुड़े 90% लोग एवं कार्यकर्ता किसी जमाने में RSS के लिए काम करते थे. इनमें से कोई प्रथम, कोई द्वितीय, कोई तृतीय वर्ग शिक्षित है. तो कुछ ऐसे भी हैं, जो एक समय पर झारखंड, त्रिपुरा सहित कई वनवासी क्षेत्रों में पूर्णकालिक प्रचारक के रूप में भी काम कर चुके हैं.

अब इससे पहले कि “अफीमग्रस्त व्यक्तिपूजक झंडू समुदाय” इस मामूली सी पार्टी एवं अभय जैन को गरियाने-कोसने लगे, तथा अपनी बेहद सीमित बुद्धि के चलते हमेशा की तरह इन लोगों को “स्वार्थी, लालची, पदलोपुप, कांग्रेसी, सोरोस के व्यक्ति, वगैरा कहना शुरू करे. इससे पहले वह ये जान ले कि जनहित पार्टी से जुड़े इन लोगों में से कई लोगों ने धार की भोजशाला मामले में (हिंदूवादी सरकार के होते हुए भी) पुलिस के लठ्ठ और जूते खाए हैं. कुछ लोगों ने अपने अपने प्रचारक क्षेत्र में हुए दंगों के दौरान भाजपा और संघ की घोर उपेक्षा तो झेली ही, कई लोगों पर विधर्मियों द्वारा झूठे मुक़दमे लाद दिए जाने के बावजूद इनका साथ किसी ने नहीं दिया. कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो मालेगांव बम विस्फोट मामले में जबरन फंसाए गए और उन्हें किसी भी “सो कॉल्ड हिंदूवादी” राजनैतिक पार्टी या संगठन से कोई मदद नहीं मिली. हिन्दुओं से सम्बंधित समाज सेवा करते करते जनहित पार्टी से जुड़े कुछ लोगों के परिवार बर्बाद हो गए, कुछ लोगों के नौकरी-धंधे ख़त्म हो गए.

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और आज स्थिति ये है कि हिंदुत्व विचारधारा के “बाहर से आए हुए” भ्रष्ट, लम्पट और आपराधिक चरित्र के लोग न सिर्फ भाजपा में, बल्कि संघ में भी सफलतापूर्वक घुसपैठ कर चुके हैं. हालांकि भाजपा के धनबल और संख्याबल के सामने ऐसी छोटी मोटी पार्टियां कभी चुनाव जीत नहीं सकती हैं. परन्तु 2014 के बाद सोशल मीडिया और व्हाट्स एप्प पर नकली और दिखावटी किस्म के हिंदुत्व की ऐसी “फफूंद” उभर आई है, जिसे “आईना” दिखाना जरूरी है.

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