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सुख-दुख

ईश्वर करता कुछ नहीं, सिर्फ मौजूद रहता है और उसके रहने भर से प्रकृति अपना काम करती है!

Daya Sagar : विज्ञान और नास्तिकों की बेचैनी / छटपटाहट मैं समझ सकता हूं। दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिकों में गिने जाने वाले स्टीफन हॉकिंग ने मरने से पहले कहा कि इस दुनिया को बनाने वाला कोई भगवान नहीं है। यह दुनिया भौतिकी के नियमों के हिसाब से अस्तित्व में आई। उनके मुताबिक बिंग बैंग गुरुत्वाकर्षण के नियमों का ही नतीजा था। स्टीफन हॉकिंग ने अपनी नई किताब ‘द ग्रैंड डिजाइन’ में ईश्वर की किसी भी भूमिका की संभावना खारिज करते हुए कहा कि ब्रह्मांड का निर्माण शून्य से भी हो सकता है।

पता नहीं क्यों मुझे डार्विन की थ्योरी ठीक लगती है कि इंसान जानवरों का वंशज है। ईश्वर ने उसे पैदा नहीं किया। क्योंकि उसे सीधे ईश्वर ने बनाया होता तो वह इतना उपद्रवी कैसे हो सकता है? जितना मैंने पढ़ा और समझा है मैं इसी नतीजे पर पहुंचा हूं कि हमने ईश्वर को अपनी कल्पनाओं में इन बेकार के कामों में जबरदस्ती फंसा दिया है।

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ईश्वर कोई मिस्‍त्री नहीं जो बनाने बिगाड़ने का काम करे। वह किसी इंसान बनाने वाली फैक्ट्री की मशीन भी नहीं जो बतौर प्रोडक्ट इंसान पैदा करता चला जाए। पहले इंसान को पैदा करे फिर एक दिन मार दे। फिर किसी नए गर्भ में जन्म दे और एक दिन उसे कत्ल कर दे। कभी रोग से कभी किसी एक्सीडेंट में या कभी उम्र के साथ शरीर को जीर्ण शीर्ण करके। फिर कभी कोई जन्म से विकृत बच्चा हो तो उसका जिम्मेदार भी ये खुदा है। पंडित मौलवी कहें ये तुम्हारे और इस नवजात के पूर्व जन्म का फल है। और इसके लिए आप ईश्वर को कोसें। नहीं, माफ कीजिए ईश्वर ये सब नहीं करता और न ये सब करना चाहता है।

और सृष्टि को बनाना और फिर उसे चलाना भी कितना बोरिंग, कितना ऊबाऊ काम है। क्या आप सोचते हैं अरबों से साल ईश्वर यही काम कर रहा है? जैसे कि वह कोई की-मैन हो। सुबह पानी की सप्‍लाई ऑन करे शाम को आफॅ करे। कुछ नहीं तो रोज सुबह उठ कर सृष्टि में घड़ी की तरह चाभी भरे।

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स्टीफन एकदम सही कह कहे हैं कि ब्रह्मांड या प्रकृति के सारे नियमों को विज्ञान से समझा जा सकता है। बस हमें सूत्र पकड़ने हैं। सटीक तौर पर वह थ्योरम खोजनी है जिससे यह सृष्टि बनी। या सृष्टि का शून्य से विस्तार हुआ तो उसका फार्मूला क्या था? यह कोई कठिन काम नहीं। मुझे पूरी उम्मीद है एक न एक दिन विज्ञान ये साबित कर देगा हमारे जिन्दा रहते।

तो ये सारा ड्रामा क्या है?

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इसका जवाब मैंने वेद, उपनिषदों और आगे वेदान्त में पाया। दरअसल हमने सृष्टि और सृष्टा को अलग अलग मान लिया। जैसे कि पश्चिम ने मान लिया। लेकिन हमारे वेद फिर तैतरीय उपनिषद ने साफ कहा-शुरू में कुछ नहीं था न सत न असत न स्वर्ग न अंतरिक्ष न पृथ्वी। यानी शून्य था और उसी से सृष्टि का विस्तार हुआ। भारतीय धर्मग्रन्थ कहते है की सृष्टि की रचना के पहले कुछ नहीं था न प्रकाश था न अन्धकार था न पृथ्वी थी न आसमान था अगर था तो सिर्फ शून्य। बाद में शंकराचार्य ने अपने अद्वैतवाद सिद्धान्त में कहा- ब्रह्मांड में सिर्फ ईश्वर है और कोई दूसरा अन्य नहीं। यानी पेड़ पौधे हवा मनुष्य जो भी है वो ईश्वर है और ईश्वर के सिवाय और कुछ नहीं। । विज्ञान कहता है की शून्य से अचानक ही एक बैंग के साथ ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई यानी सम्पूर्ण ब्रह्मांड की उत्पत्ति किसी एक से ही हुई है। तो शंकराचार्य और पौराणिक ग्रन्थ दोनों ही स्टीफन के दावों की पुष्टि करते हैं। विज्ञान कहता है कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति के पहले कुछ नहीं था। हमारे ग्रं‌थ भी कहते है की ब्रह्मांड की उत्पत्ति कुछ नहीं था।

अब आप कहेंगे फिर ईश्वर बीच में कहां से आ गया? क्यों आ गया?

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बिलकुल ठीक प्रश्न है। हमारे प्राचीन ग्रंथ और कुछ आधुनिक दार्शनिकों ने इसे बखूबी समझाया है। रसायन विज्ञान में एक अजीबो गरीब वैज्ञानिक प्रक्रिया है कैटेलेटिक एजेंट । ये ऐसे तत्वों का जोड़ है जो खुद किसी क्रिया में हिस्सा नहीं लेता लेकिन फिर भी इनके बिना कोई क्रिया नहीं हो सकती। इसे ऐसे समझें। जल यानी पानी हाईड्रोजन और ऑक्सीजन का जोड़ है। विज्ञान भी कहता है कि हाईड्रोजन और ऑक्सीजन के अलावा पानी में और कुछ नहीं है। यानी जल एक रसायनिक पदार्थ है जिसका रसायनिक सूत्र H2O है। यानी हाईड्रोजन के दो अणु और आक्सीजन के एक अणु से मिलकर पानी बनता है। लेकिन विज्ञान के विद्यार्थी जानते हैं कि सिर्फ हाईड्रोजन और ऑक्सीजन मिलने से पानी नहीं बनता। उसे पानी बनने के लिए कैटेलेटिक एजेंट की भी जरूरत पड़ती है।

हैरत की बात है कि अगर आप हाईड्रोजन और ऑक्सीजन के जोड़ को तोड़ें तो ये केटेलेटिक एजेंट की ऊर्जा आपको कहीं नहीं दिखेगी। केटेलेटिक एजेंट की मौजूदगी ही उसका रोल उसकी भूमिका है। ये करता कुछ नहीं सिर्फ मौजूद रहता है। ये न हो तो पानी का अस्तित्व भी न हो। ऐसे ही ईश्वर है। वह करता कुछ नहीं सिर्फ मौजूद रहता है। उसके रहने भर से प्रकृति अपना काम करती है। कल ये प्रकृति भी नहीं रहेगी तो वह रहेगा। क्योंकि प्रकृति से पहले भी वह था। उसकी मौजूदगी के बिना यह सृष्टि नहीं चल सकती। इसकी मौजूदगी में सृष्टि खुद ब खुद चलती है।

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फिर आप कह सकते हैं कि बस इतना सा ही काम है तो उसका होना क्यों जरूरी है?

ये सवाल उठ सकता है। बेशक ये तार्किक प्रश्न है। इसे ऐसे समझें। हर एक बीज अपने आप में एक ब्रह्मांड है। एक बीज में कितनी आपर संभावनाएं छिपी हैं। दुनिया के सारे पेड़ नष्ट हो जाएं ‌सिर्फ एक बीज पूरे संसार को पेडों से ढक सकता है। वह बीज पेड बनेगा। उस पर फूल और फल आएंगे और उसके साथ आएंगे अन्नत बीज। फिर हर बीज से एक नया पेड़ बनेगा। यह प्रक्रिया जारी रहेगी। आप समझें ईश्वर हर बीज को अंकुरित नहीं कर रहा है। यह वैज्ञानिक प्रक्रिया है। जिसके तहत बीज अंकुरित होते हैं। तो इस हिसाब से सारे बीज अनिवार्य रूप से अंकुरित होने चाहिए। लेकिन नहीं। ऐसा नहीं होता। सिर्फ वही बीज अंकुरित होते हैं जिन्हें ईश्वर चाहता है। बीज के अंकुरण में ईश्वर की मौजूदगी अनिवार्य है। यही ईश्वर की महत्ता है। ये वाकई एक अबूझ पहेली है। लेकिन दिलचस्प है। ईश्वर की मेरी खोज जारी है। और आपकी?

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संदर्भ ग्रंथ-
कॉसमालॉजी आफ ‌दि ऋग्वेदा-एच डब्लू वालिस
तैतरीय उपनिषद तृतीय संस्करण चौखम्बा प्रकाशन
आईडिया आफ गॉड -प्रिगिंल, पैटिसन
तर्कदीपिका अथल्ये का द्वितीय संस्करण
Times of Refreshing: A Worship Ministry Devotional By Tom Kraeuter, Gerrit Gustafson, Kent Henry, Bob Kauflin, Patrick Kavanaugh
Man’s Fate and God’s Choice: An Agenda for Human Transformation-By Bhimeswara Challa
अमर उजाला, जम्मू के स्थानीय संपादक दयाशंकर शुक्ल सागर की एफबी वॉल से.

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