Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

जेम्स फोले को भारतीय ‘गीदड़’ पत्रकारिता की श्रद्धांजली

अमेरिकी पत्रकार जेम्स फोले मार दिए गए। क़त्ल का अंदाज़ वहशियाना था। बकरे की गर्दन माफ़िक उनकी गर्दन को रेता गया। दुनिया भर में इसकी खूब निंदा हो रही है। अब दुसरे पत्रकार स्टीवन जोएल सोटलॉफ की कटी गर्दन की ख़बर का इंतज़ार है। दुनिया के तमाम देशों के गृह-युद्ध या आतंकवादी घटनाओं को, घटना स्थल से लाइव कवरेज के चक्कर में सैकड़ों साहसी शेर-नुमा पत्रकार मारे जा चुके हैं। मीडिया और सरकारी क्षेत्रों में श्रद्धांजली-सभा जारी है।

<p>अमेरिकी पत्रकार जेम्स फोले मार दिए गए। क़त्ल का अंदाज़ वहशियाना था। बकरे की गर्दन माफ़िक उनकी गर्दन को रेता गया। दुनिया भर में इसकी खूब निंदा हो रही है। अब दुसरे पत्रकार स्टीवन जोएल सोटलॉफ की कटी गर्दन की ख़बर का इंतज़ार है। दुनिया के तमाम देशों के गृह-युद्ध या आतंकवादी घटनाओं को, घटना स्थल से लाइव कवरेज के चक्कर में सैकड़ों साहसी शेर-नुमा पत्रकार मारे जा चुके हैं। मीडिया और सरकारी क्षेत्रों में श्रद्धांजली-सभा जारी है।</p>

अमेरिकी पत्रकार जेम्स फोले मार दिए गए। क़त्ल का अंदाज़ वहशियाना था। बकरे की गर्दन माफ़िक उनकी गर्दन को रेता गया। दुनिया भर में इसकी खूब निंदा हो रही है। अब दुसरे पत्रकार स्टीवन जोएल सोटलॉफ की कटी गर्दन की ख़बर का इंतज़ार है। दुनिया के तमाम देशों के गृह-युद्ध या आतंकवादी घटनाओं को, घटना स्थल से लाइव कवरेज के चक्कर में सैकड़ों साहसी शेर-नुमा पत्रकार मारे जा चुके हैं। मीडिया और सरकारी क्षेत्रों में श्रद्धांजली-सभा जारी है।

कितने भारतीय (ख़ासकर टीवी) पत्रकार थे?

Advertisement. Scroll to continue reading.

ये पिछले कुछ सालों से एक जायज़ सवाल खड़ा हो गया है। जायज़ कहने की हिम्मत इसलिए पड़ी, क्योंकि, पिछले कुछ सालों में भारतीय मीडिया ने प्रसारण का दायरा तो बढ़ाया ही है, साथ में, बाज़ार से (ख़बरों के नाम पर),  विज्ञापनों की जमकर वसूली की है। ये आंकड़ा तक़रीबन 70000 हज़ार करोड़ से ऊपर का ही है। इतना ही नहीं, बल्कि, TRP के ज़रिये इस वसूली का ज़िम्मा जिन्हें सौंपा गया, वो लोग ऐसे पत्रकारनुमा बनिया साबित हुए, जो खूब कमाई किये और करवाये। पर साहसिक पत्रकारिता का कोई भी पन्ना ऐसा नहीं दिखा, जहां किसी भारतीय पत्रकार का जिगर दिखा हो (यहां उन पत्रकारों की बात नहीं हो रही है, जो साहसी हैं पर अवसर के अभाव में लाचार हैं)। यहां शेर की खाल (वो भी नकली खाल) पहन कर पत्रकारिता के नीति-नियंता बने हैं। शेर की खाल पहन कर स्टूडियो से लफ़्फ़ाज़ी करना और फ़ाइव-स्टार शैली में अवार्ड्स बटोरना, भारतीय मीडिया (खासकर टीवी मीडिया) का पुराना शगल है जिस पर बड़े-बड़े धुरंधरों ने भी आपत्ति नहीं की। क्योंकि ज़्यादातर धुरंधरों ने खुद भी कभी “बैटल-ग्राउंड” से पत्रकारिता का जोखिम नहीं लिया और ना ही इसके लिए किसी साहसी को मौक़ा दिया। प्रोत्साहित किया।

जान खोने का सबसे ज़्यादा डर, शेर की खाल पहन कर गीदड़-भभकी ब्रॉडकास्ट करने वाले, भारतीय पत्रकारों में होता है, ये साबित हो चुका है। इराक़-ईरान युद्ध के दौरान कुछ कवरेज ज़रूर किया गया, मगर, “बैटल-ग्राउंड” से नहीं, बल्कि, काफी दूर से जहां जान-माल सुरक्षित रह सके। मुंबई-हमले के दौरान, सुरक्षित जगहों पर बैठ कर, अपने साहस का छदम प्रदर्शन करने वाले भारतीय पत्रकार, आज की तारीख में, कभी, सीरिया-लीबिया-तुर्की-इराक़ जैसे “बैटल-ग्राउंड” में नहीं गए। प्राइम-टाइम में बड़े-बड़े एंकरनुमा (टी.वी.पत्रकारिता के) मठाधीश, विदेशों से या अन्य एजेंसी से आयी फीड पर ही अपना प्रवचन जारी रखे रहते हैं। बढ़ते गए। वेतन बढ़ता गया। पद बढ़ता गया। करोड़ों का बैंक बैलेंस बनता गया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

दुनिया भर में आतंकवादी-घटनाओं, गृह-युद्ध का कवरेज करते कई शेर-दिल पत्रकार मारे गए और भारतीय पत्रकार स्टूडियो को ही “बैटल-ग्राउंड” बनाकर “युद्ध” लड़ते रहे और जीतते रहे। वाकई, भारतीय पत्रकारिता का ये शर्मसार कर देने वाला इतिहास और वर्तमान है, मगर शर्म जो आती ही नहीं। राजनीतिक चाटुकारिता, इंटरटेनमेंट मिक्स समाचार और फ़िज़ूल की डिबेट ने पत्रकारों के निजी जीवन को ऊँचे पायदान पर भले ही खड़ा कर दिया, पर, भारतीय पत्रकारिता दोयम दर्जे तक सिमट कर रह गयी। यहां तक कि भारत-पाकिस्तान बॉर्डर की ख़बर पर कोई पत्रकार लाइव नहीं दिखता, ख़ास-तौर पर गोलीबारी के दरम्यान। मामला शांत होने के बाद चैनल वाले पहुँच जाते हैं और बताया जाता है कि कैसे, हिम्मत के साथ, हमारा चैनल वहाँ पहुंचा।

क्या आप जानते हैं कि, आज की तारीख में, टीवी चैनल्स के बड़े नाम वालों को दिल्ली के बाहर पत्रकारिता करने का तज़ुर्बा नाम-मात्र का है? ये वो नाम हैं जो शेर की खाल पहन कर गीदड़-भभकी पत्रकारिता को अंजाम तक पहुंचाने का ठेका लेते हैं। ये ठेका, सालाना पैकेज व अन्य, कमाई के साधनों पर निर्भर है। किसी नेता का स्टिंग हो या आसाराम की यौन क्षमता, भारतीय टीवी पत्रकारिता में इन्हें साहसिक पत्रकारिता से नवाज़ा जाता है। जेम्स फोले और अन्य मारे गए विदेशी पत्रकारों की साहसिक पत्रकारिता का अंदाज़, भारतीय पत्रकार कभी बयां नहीं करते। हमारे पत्रकार साथी, “आज-तक” के दीपक शर्मा ने फेसबुक पर “फिल्मसिटी के गैंग्स आफ वासेपुर” के ज़रिये टी.वी. चैनल्स की पत्रकारिता की खूब बखिया उधेड़ी। जो सच है। सोलहो आने।

Advertisement. Scroll to continue reading.

एक जानकारी के मुताबिक़ कई ऐसे चैनल हैं, जो भाजपा और कांग्रेस के मुख-पत्र के तौर पर पीत-पत्रकारिता को अंजाम दे रहे हैं। एवज़ में इन पार्टियों से जुड़े नेता इन चैनल्स को समर्थन देते हैं। ये समर्थन “हर तरह” का होता है। यहां पर भी क्षेत्र-वाद है। मसलन नेता गर अपने गृह-राज्य का है तो उस चैनल का मालिक, उस नेता का अपना “पिट्ठू” होता है। ये तो है छोटे चैनल्स की बात, जो “बैटल-ग्राउंड” में तो छोड़िये, मुट्ठी-भर रक़म खोने का साहस नहीं कर पाते। राजनीतिक चाटुकारिता, स्टिंग ऑपरेशन और निजी-हित, पत्रकारिता के मायने नहीं कहे जा सकते।

लिहाज़ा, आखिर में सवाल फिर तथाकथित बड़े कहे जाने वाले चैनल्स से है.… कि, दलाली और पत्रकारिता में क्या फ़र्क़ है? बड़े और छोटे चैनल्स में क्या फ़र्क़ है? दिल्ली और देश के बाहर पत्रकारिता करने के भी कोई मायने हैं या नहीं? और आप लोगों ने अपने पत्रकारों को शेर बनाने की बजाय शेर की खाल पहनाकर और गीदड़ बनाकर स्टूडियो में ही क्यों बैठा रखा है? शेर की श्रद्धांजली-सभा में गीदड़ों का क्या काम?

Advertisement. Scroll to continue reading.

 

नीरज…..लीक से हटकर।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इसे भी पढ़ेंः

जिहादियों ने अपहृत अमरीकी पत्रकार जेम्स फोले का सर कलम किया, विडियो जारी

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement