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सुख-दुख

अलविदा चौकसे साहब!

हरीश पाठक-

‘चौकसे साहब’
मेरा उनको यही संबोधन था।

जब भी मुलाकात होती या बात होती मैं ‘साहब’ बोलता तो वे तपाक से टोक देते पर यह मेरी आदत में शुमार हो गया था।

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विश्व सिनेमा को भारतीय पाठक तक जिस सहजता और सरलता से जयप्रकाश चौकसे पहुँचाते थे वह दुर्लभ था। अप्रतिम था।अतुलनीय था।

आज सुबह 8.20 पर इंदौर में विश्व सिनेमा के इस गहन अध्येता ने अंतिम सांस ली।वे कैंसर से पीड़ित थे। आज शाम 5 बजे उनका अंतिम संस्कार होगा।

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26 साल, 117 दिन तक लगातार अपने स्तम्भ ‘परदे के पीछे’ को लिखनेवाला यह दिग्गज पत्रकार जीवन के परदे से ही अदृश्य हो जाएगा किसी को कल्पना नहीं थी।कुछ दिन पहले ही उन्होंने अपने स्तम्भ में लिखा था-यह विदा है , अलविदा नहीं।

…पर वह लिखा तो आज अलविदा की पूर्व सूचना साबित हो रहा है? भीगी आंखों और रुंधे गले से भी आपको अलविदा नहीं कह सकता।आप हर वक्त यादों के कैनवास पर मुस्कराते ही मिलेंगे।
यह मेरा मतिभ्रम भी हो सकता है।क्या करूं?

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