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कानपुर प्रेस क्लब पोलखोल (1) : पत्रकारों की आँखों में धूल झोक कर चुनाव क्या सिर्फ दिखावा !

एस.आर.न्यूज़ टीम : दोस्तों आज हम खुलासा करने जा रहे हैं कुछ ऐसे स्वयंभू पत्रकारों के बारे में जिन्होंने न सिर्फ एक सम्मानित संस्था ( एनजीओ ) कानपुर प्रेस क्लब कानपुर महानगर पर धोखाधड़ी कर और क्लब के संस्थापक सदस्यों को दर किनार कर न सिर्फ कब्ज़ा किया बल्कि उस संस्था के सदस्यों की संस्था के प्रति आस्था से भी खिलवाड़ किया। चुनाव के नाम पर दे दिया सदस्यों और पदाधिकारियों को हार का लालीपाप।

एस.आर.न्यूज़ टीम : दोस्तों आज हम खुलासा करने जा रहे हैं कुछ ऐसे स्वयंभू पत्रकारों के बारे में जिन्होंने न सिर्फ एक सम्मानित संस्था ( एनजीओ ) कानपुर प्रेस क्लब कानपुर महानगर पर धोखाधड़ी कर और क्लब के संस्थापक सदस्यों को दर किनार कर न सिर्फ कब्ज़ा किया बल्कि उस संस्था के सदस्यों की संस्था के प्रति आस्था से भी खिलवाड़ किया। चुनाव के नाम पर दे दिया सदस्यों और पदाधिकारियों को हार का लालीपाप।

हम बात कर रहे हैं 6, नवीन मार्केट स्थित कानपुर प्रेस क्लब कानपुर महानगर की, जिसका रजिस्ट्रेशन न० है 1086/2005-2006, जो कि 13 दिसंबर 2005 से 5 वर्षों के लिए कुछ समाज़ सेवियों ने पंजीकृत कराया था। पंजीकरण के समय संस्था की प्रबन्ध कार्यकारिणी में संस्था की नियमावली के अनुसार सात पदाधिकारी थे, जिनमें एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष, एक महामंत्री, एख मंत्री, एक कोषाध्यक्ष और दो सदस्य थे। चूँकि संस्था का नाम कानपुर प्रेस क्लब कानपुर महानगर होने की वजह से पत्रकारों को इस संस्था में कुछ आशा की किरण नज़र आई और कानपुर में कार्यरत कई समाचार पत्रों और चैनलों के पत्रकारों ने भी सदस्यता ग्रहण की, जिनकी संख्या लगभग 617 दर्शायी गयी है, इसलिए यहीं से शुरू होती है फर्ज़ीवाड़े की कहानी।

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कानपुर प्रेस क्लब के लिए जो भवन नवीन मार्केट में प्रयोग किया जा रहा है, वो नगर निगम का है और सूत्रों के अनुसार सन 2012 तक इस भवन में किसी कानपुर श्रमजीवी पत्रकार यूनियन का आफिस हुआ करता था, जिसने दैनिक भास्कर से पत्रकार कल्याण कोष के नाम पर दिनाक  05 सितंबर 2012 में दो रुपये लेकर रसीद संख्या 219 भी जारी की थी, जिसमें भी उस संस्था का पता प्रेस क्लब नवीन मार्केट ही छपा हुआ है। अब सवाल ये है कि यदि उपरोक्त भवन कानपुर श्रमजीवी पत्रकार यूनियन का कार्यालय था तो इस भवन के पते पर 2005 में कानपुर प्रेस क्लब कानपुर महानगर का कब्ज़ा कब और किस प्रकार हुआ ? आखिर कहाँ चाली गयी कानपुर श्रमजीवी पत्रकार यूनियन ? इसके भी पुख्ता प्रमाण नहीं प्राप्त हो सके, जबकि कानपुर के पत्रकारों के दबाव के चलते नगर निगम ने उपरोक्त भवन के कानपुर प्रेस क्लब कानपुर महानगर द्वारा प्रयोग पर कोई आपत्ति नहीं की और ये जगह पत्रकारों की आरामगाह बन गई।

कानपुर प्रेस क्लब कानपुर महानगर जिस भवन से संचालित होता है उसमें बिजली विभाग ने संस्था के नाम पर कोई बिजली का मीटर भी नहीं लगाया है लेकिन यहाँ भी केस्को ने पत्रकारों के दबाव के चलते मुफ्त की बिजली प्रयोग करने पर कभी कोई आपत्ति नहीं उठाई। क्या बिजली विभाग किसी पत्रकार संगठन को मुफ्त में बिजली उपलब्ध करने के लिए स्वतंत्र है ?

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कानपुर प्रेस क्लब कानपुर महानगर में 617 सदस्यों द्वारा करीब 31467 रुपये केवल सदस्यता शुल्क आया। इसके साथ ही आम जनता प्रेस कांफ्रेंस के लिए आने लगी। यहाँ से शुरू हुआ पैसे का खेल। सूत्रों के अनुसार 2005 से 2013 तक प्रेस क्लब में प्रत्येक प्रेस कांफ्रेंस के नाम पर एक घंटे के लिए तीन सौ रुपये का शुल्क वसूला जाता था। इसके साथ ही करीब 1200 से 1500 रुपए तक का नास्ता भी पत्रकारों के लिए आता था। 

सूत्रों के अनुसार प्रत्येक महीने में औसतन सौ प्रेस कांफ्रेंस भी होती थीं, जिसमे करीब 30 हज़ार रुपये प्रतिमाह का शुल्क आ जाता था जबकि उपनिबंधक फर्म सोसायटीज एवं चिट्स के कार्यालय में वर्तमान प्रबन्धकारिणी समिति के पदाधिकारियों के हस्ताक्षर से प्रस्तुत आय व्यय की सूची निम्न प्रकार है – 

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वर्ष 2005 से 2006 में 6328 रुपए, वर्ष 2006-2007 में 6400 रुपए, वर्ष 2007-2008 में 6420 रुपए, वर्ष 2008-2009 में 6450 रुपए, वर्ष 2009-2010 में 6512 रुपए, वर्ष 2010-2011 में 7210 रुपए, वर्ष 2011-2012 में 7479 रुपए, वर्ष 2012-2013 में 31673 रुपए रुपये आय-व्यय के रूप में दर्शाया गया है जबकि इन आय व्यय की सूचियों में कहीं भी प्रेस कांफ्रेंस से हुई आय नहीं दर्शायी गयी है। उपरोक्त लाखों रुपये पत्रकारों के कल्याण में न खर्च कर बंदरबांट की भेंट चढ़ गया लेकिन नियमावली के अनुसार न तो कभी किसी ने खर्च का हिसाब माँगा, न ही कभी किसी ने हिसाब दिया और न ही कभी ऑडिट कराया गया।

समय बीतता गया, पत्रकारों द्वारा संरक्षित ये संस्था अपने आप एक ब्रांड मानी जाने लगी, जैसे कानपुर नगर में कानपुर क्लब की सदस्यता आपके स्टेटस को दर्शाती है वैसे ही कानपुर प्रेस क्लब कानपुर महानगर की सदस्यता भी पत्रकारों का स्टेटस माना जाने लगा क्योंकि संस्था की नियमावली के अनुसार कानपुर प्रेस क्लब कानपुर महानगर की सदस्यता केवल उन दैनिक समाचार पत्रों के पत्रकारों को दी गयी, जो कम से काम तीन वर्ष पुराने हो चुके हों। प्रशासन भी कानपुर प्रेस क्लब कानपुर महानगर के सदस्यों से मुँहाचाही करने से पहले सोचने लगा, उनके लिए क्या विधायक क्या सांसद क्या डी.एम. क्या एस.एस.पी कानपुर प्रेस क्लब कानपुर महानगर के सदस्य सभी से टकराने लगे। कानपुर प्रेस क्लब कानपुर महानगर के रुतबे के साथ उसकी आय भी बढ़ती चली गयी और कुछ स्वयंभू पत्रकारों द्वारा उक्त क्लब के रुतबे और आय को देखते हुए उस पर कब्ज़ा करने की तीव्र इच्छा भी बढ़ती चली गयी।

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कानपुर प्रेस क्लब कानपुर महानगर के कार्यालय में साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक समाचार पत्रकारों के आने तक पर पाबन्दी लगा दी गयी और वहां उक्त आशय का नोटिस तक चस्पा कर दिया गया था। कुछ स्वयंभू पत्रकार तो उन्हें फर्जी पत्रकार कहकर सम्बोधित कर उन्हें दबाकर खबरें रुकवाने के प्रयास करने लगे और न मानने पर बीच बाजार तथा थानों के अंदर पुलिस अधिकारियों के सामने ही उनसे अभद्रता, मारपीट और फ़र्ज़ी मुकदमों में फसाँकर जेल भिजवाने तक की धमकियाँ तक देने लगे, जिसकी सबसे अधिक घटनाएँ कानपुर दक्षिण के थानों में ही सामने आयीं और आज भी ये सिलसिला बदस्तूर जारी है। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले कम होती थीं, अब आये दिन होती हैं।

धीरे-धीरे पांच साल बीत गए और 2010 में नवीनीकरण का समय आ गया। तब तक संस्था के संस्थापक पदाधिकारी और सदस्य, क्लब में चल रही स्वयंभू पत्रकारों की मनमानी और बंदरबांट तथा स्वयं की अनदेखी किये जाने से आहत थे जबकि कुछ स्वयंभू पत्रकार चुनाव लड़ने की आशा संजोए थे। इसलिए संस्थापक पदाधिकारीयों और सदस्यों ने संस्था का चुनाव और नवीनीकरण ही नहीं कराया।

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संस्थापक पदाधिकारियों और सदस्यों द्वारा चुनाव व नवीनीकरण न कराये जाने से परेशान स्वयंभू पत्रकारों के कानपुर प्रेस क्लब कानपुर महानगर के माध्यम से शहर पर राज़ करने के सपने पूरे नहीं हो पा रहे थे, जिससे वो दिन प्रतिदिन खून का घूँट पी रहे थे और संस्थापक पदाधिकारियों और सदस्यों को दरकिनार कर संस्था पर अपना नियंत्रण बनाने के लिए और आने वाले पैसों का बन्दर बाँट करने के लिए सन 2013 में कानपुर के कुछ स्वयंभू पत्रकारों के सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने संस्थापक पदाधिकारियों और सदस्यों पर चुनाव कराने का दबाव डालना शुरू कर दिया, लेकिन अब मुफ्त का पैसा किसको काटता है, उन्होंने एक न सुनी। उसी बीच किसी कारणवश संस्था के संस्थापक महामंत्री कृष्ण कुमार त्रिपाठी ( कुमार ) को एक मुक़दमे में जेल जाना पड़ा। स्वयंभू पत्रकारों ने सोचा, मौक़ा अच्छा है, शहर में अपनी तूती बुलवाने के लिए। उन्होंने संस्था के संस्थापक सदस्यों को दरकिनार करते हुए 26 अक्तूबर 2013 को संस्थापक अध्यक्ष अनूप बाजपेई की अध्यक्षता में कानपुर प्रेस क्लब कानपुर महानगर नवीन मार्केट कार्यालय में एक बैठक दिखाकर चुनाव अधिकारी नियुक्त करने के साथ ही चुनाव कराकर संस्था पर कब्ज़ा करने का फैसला लिया।

कानपुर प्रेस क्लब कानपुर महानगर की पंजीकृत नियमावली में प्रबन्धकारिणी समिति का कार्यकाल पांच वर्ष का है और विषम परिस्थितियों में यदि प्रबन्धकारिणी समिति का कोई पदाधिकारी और सदस्य त्यागपत्र देता है या उस पदाधिकारी और सदस्य के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है तो केवल उसी पद पर नया पदाधिकारी साधारण सभा के सदस्यों में से शेष कार्यकाल के लिए बनाया जायेगा लेकिन कानपुर प्रेस क्लब कानपुर महानगर में संस्थापक पदाधिकारियों और सदस्यों में से किसी ने न तो त्यागपत्र ही दिया और न ही उनमें से किसी के भी विरुद्ध कोई अविश्वास प्रस्ताव ही आया और न ही पारित हुआ तो पांच साल से पहले ही पूरी कार्यकारिणी कैसे बदल गयी, जबकि उपनिबंधक फर्म सोसायटी एवं चिट्स के समक्ष जो वर्तमान प्रबन्धकारिणी समिति के पदाधिकारियों और सदस्यों के हस्ताक्षर से प्रस्तुत की पूर्व प्रबन्धकारिणी समिति की सूची वर्ष 2012 – 2013 प्रस्तुत की गयी है, उसमें पंजीकरण के समय वर्ष 2005 – 2006 में प्रस्तुत की गयी सूची वाले केवल सात पदाधिकारियों और सदस्यों के ही नाम है। तो चुनाव अधिकारी की नियुक्ति के लिए बुलाई गयी बैठक में सात के स्थान पर 17 कार्यकारिणी सदस्यों के सापेक्ष 12 सदस्यों की उपस्थिति में चुनाव अधिकारी की नियुक्ति कैसे हो गयी ? जबकि जिन 12 सदस्यों ने अपने हस्ताक्षरों से चुनाव अधिकारी की नियुक्ति की, उनमें  सात संस्थापक पदाधिकारियों और सदस्यों में से किसी के भी हस्ताक्षर नहीं हैं। चुनाव अधिकारी की नियुक्ति किस अधिकार से वर्तमान प्रबन्धकारिणी समिति के पदाधिकारियों और सदस्यों द्वारा उनके निर्वाचन से पूर्व ही उनके द्वारा की गयी और चुनाव अधिकारी भूपेंद्र तिवारी की नियुक्ति वैधानिक कैसे मानी गयी ?

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कानपुर प्रेस क्लब कानपुर महानगर की 26 अक्तूबर 2013 को संस्थापक अध्यक्ष अनूप बाजपेई की अध्यक्षता में हुई बैठक में चुनाव अधिकारी भूपेंद्र तिवारी को नियुक्त करना दर्शाया गया, लेकिन जिनकी अध्यक्षता में निर्वाचन अधिकारी की नियुक्ति करना दर्शाया गया, उस प्रपत्र पर  अनूप बाजपेई के हस्ताक्षर ही नहीं हैं। इतना ही नहीं, वर्ष 2012-2013 की प्रबन्धकारिणी समिति की सूची में अंकित किसी भी पदाधिकारी या सदस्य ने न तो अपनी सहमति और न ही अपने हस्ताक्षर ही किये। फर्ज़ीवाड़े की बानगी देखिये। उक्त प्रपत्र पर केवल दिसम्बर 2013 चुनाव बाद विजयी हुई नयी प्रबन्धकारिणी समिति के पदाधिकारियों और सदस्यों के ही हस्ताक्षर हैं। अब ये तो वही बात हो गयी कि कोई मुख्यमंत्री और मंत्रिमण्डल खुद को चुनाव से पहले विजेता घोषित करवाने के लिए खुद ही अपने ऐसे चुनाव आयुक्त को नियुक्त करे, जो बाद में चुनाव की दिखावटी औपचारिकता पूरी कराकर उनके अनुसार ही उन्हें विजयी घोषित कर दे और विरोधियों को हार का लालीपाप देकर चुप करा दे, बाकी बची जनता वो तो शायद तो मूर्ख है ही या समझी जाती है।

बड़ा सवाल यह है कि कानपुर प्रेस क्लब किसके हित में काम कर रहा है ? कानपुर प्रेस क्लब कानपुर महानगर पर खुलासे अभी और भी हैं। जरूर पढ़े कानपुर प्रेस क्लब कानपुर महानगर का फर्जीवाड़ा पोलखोल भाग – दो।

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 एसआरन्यूजओआरजी से साभार : सभी खुलासे आरटीआई में प्राप्त प्रमाणित अभिलेखों और सूत्रों द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार।

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0 Comments

  1. Mahesh sharma

    June 15, 2015 at 2:37 am

    कानपुर प्रेस क्लब पत्रकारों की एक प्रतिष्ठित संस्था है। एसआर न्यूज व टप्पेबाज न्यूज बना कर दलाली करने वाले लोग कानुपर के पत्रकारों की सम्मानित संस्था को विवादित बता अपना पहचान बनाना चाहते हैं। प्रेस क्लब के अध्यक्ष निर्वाचित हुए श्री सरस बाजपेयी जी दैनिक जागरण के वरिष्ठ पत्रकार हैं। उपाध्यक्ष श्री हैदर नकवी जी हिंदुस्तान टाइम्स के ब्यूरो चीफ और महामंत्री अवनीश दीक्षित ई टीवी के ख्यातिप्राप्त क्राइम रिपोर्टर हैं। अन्य पदाधिकारी भी ख्यातिप्राप्त समाचार पत्रों व न्यूज चैनलों से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार हैं। खुद को पत्रकार बता दलाली व अपराध करने वाले टपोरी पत्रकारों की प्रतिष्ठित संस्था को बदनाम करने का कुचक्र कर रहे हैं। इन्ही टपोरियों ने प्रेस क्लब के नाम से एक फर्जी संस्था का पंजीकरण कराया था। जिसकी जांच पड़ताल के बाद रजिस्टार ने न केवल कैंसिल कर दिया था, वरन इनके खिलाफ आपराधिक वाद भी थाने में पंजीकृत कराया था। इनकी असिलियत से कानपुर का पत्रकार जगत वाकिफ है।

  2. आलोक कुमार

    June 16, 2015 at 6:34 pm

    महेश जी, कृपया अपनी जानकारी को सुधार ले, आपके ख्यातिप्राप्त क्राइम रिपोर्टर और महामंत्री जी ने वो मुकदमा फर्जी कराया था, जिसमे वो माहिर है, और पुष्टि के लिए कोतवाली कानपुर एक बार घूम भी आये आपको पूरी जानकारी हो जाएगी, कि वाकई वो ख्यातिप्राप्त है…..

    धन्यवाद्

  3. बलवन्त सिंह

    June 17, 2015 at 1:40 am

    महेश जी आपकी जानकारी के लिए मैं बता दूँ कि प्रेस क्लब कानपुर के लिये मैंने भी प्रतिष्ठ शब्द का ही प्रयोग किया है जरा ध्यान से देखें उसमे केवल उन चंद पत्रकारों के बारे में है जो उसकी मर्यादा से खिलवाड़ कर पैसों के बंदरबांट में लगे हैं और इसके बाद बात टप्पेबाजी और दलाली की महेश जी यहाँ इस मंच से चैलेन्ज देता हूँ कि एस.आर.न्यूज द्वारा की गयी एक भी टप्पेबाजी और दलाली साबित करें प्रूफ के साथ और उसे सार्वजानिक करें मैं पत्रकारिता छोड़ दूंगा और अगर साबित न कर सकें तो मानहानि के लिए तैयार रहें। क्योकि मैंने प्रेस क्लब के स्वयंभू पत्रकारों का पोल खोला उसपर ऐसा कॉमेंट करने का मतलब साफ़ है कि आप भी उसी बंदरबांट का हिस्सा हैं। जितने नाम आपने लिखे मैंने पोलखोल में किसी का नाम अभी लिया ही नहीं तो उनका नाम आना इस कहावत को सिद्ध करता है कि चोर की दाढ़ी में तिनका।।

  4. बलवन्त सिंह

    June 17, 2015 at 1:52 am

    और जिन अवनीश दीक्षित की आप बात कर रहे है उनके खिलाफ प्रेस की फ़र्ज़ी मान्यता लेने के आरोपों में जाँच चल रही है मुख्यमंत्री के यहाँ। जरा पता कर लें कितने प्रतिष्ठ हैं।

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