नयी धारा की साहित्यिक विरासत पर गर्व होना चाहिए-विश्वनाथ त्रिपाठी, साहित्य अकादमी में बड़ा जमावड़ा, शिवनारायन और उनकी टीम को श्रेय…
नयी दिल्ली। साहित्य अकादमी के सभागार में नयी धारा साहित्यिक पत्रिका की ओर से एक दिसम्बर को आयोजित सम्मान कार्यक्रम भव्य रहा। दिल्ली के किसी साहित्यिक कार्यक्रम में इस तरह का जमावड़ा बहुत कम दिखायी पड़ता है।
इस अवसर पर हिंदी के प्रख्यात आलोचक प्रो मैनेजर पांडेय को उदयराज सिंह स्मृति सम्मान दिया गया जबकि तीन अन्य रचनाकारों, डा मंगलमूर्ति, सुभाष राय और विजय चोरमारे, को नयी धारा रचना सम्मान दिया गया। सम्मान स्वरूप प्रो मैनेजर पांडेय को प्रशस्ति पत्र और प्रतीक चिह्न के अलावा एक लाख रुपये की राशि भी दी गयी। अन्य तीन सम्मानित रचनाकारों को प्रशस्ति पत्र और प्रतीक चिह्न के अलावा २५-२५ हजार की राशि भी प्रदान की गयी। वरिष्ठ साहित्यकार विश्वनाथ त्रिपाठी जी की अध्यक्ष के रूप में उपस्थिति कार्यक्रम के गौरव को बढ़ाने वाली थी। कार्यक्रम को इतना आकर्षक और भव्य बनाने में निस्संदेह नयी धारा के संपादक शिवनारायन जी और उनके मित्रों, सहयोगियों का योगदान रहा।
इस कार्यक्रम के नायक रहे हिंदी साहित्य की दुनिया में अपने वृहद आलोचनात्मक अवदान के लिए जाने जाने वाले प्रो मैनेजर पांडेय। सम्मान के बाद हिंदी साहित्य को बिहार की देन विषय पर उदयराज स्मृति व्याख्यान देते हुए श्री सिंह ने कहा कि सरहपा हिंदी के पहले कवि थे और वे बिहार के नालंदा विश्व विद्यालय में आचार्य थे। बुद्ध जीवन का सत्य जहाँ संसार से दूर विराग में देखते थे, वहीं सरहपा ने संसार में ही जीवन के वैभव को देखा। उनकी विद्रोही चेतना का प्रभाव भक्तिकाल के प्रमुख कवि कबीर पर देखा जा सकता है। इसी तरह बोली के आदि कवि विद्यापति भी बिहार के ही थे। उनका प्रभाव भाखा के कवि सूरदास पर देखा जा सकता है।
प्रो पांडेय ने कहा कि हिंदी के चार विशिष्ट शैलीकार राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह, आचार्य शिव पूजन सहाय, राम बृक्ष बेनीपुरी और फणीश्वर नाथ रेणु बिहार से थे, जिनकी रचनाशीलता ने पूरे देश में हिंदी का मान बढ़ाया। उन्होंने कहा कि हिंदी खड़ी बोली के पहले कवि महेश नारायण भी बिहार के थे, जिनका स्वप्न शीर्षक काव्य १८८१ में प्रकाशित हुआ था। साहित्य में आंचलिकता का प्रादुर्भाव देहाती दुनिया (१९२६), बलचनमा (१९४८) और मैला आँचल (१९५४) जैसी रचनाओं से हुआ, जिनके लेखक बिहार के थे। उन्होंने कहा कि जनार्दन झा द्विज, दिनकर, जानकी वल्लभ शास्त्री, नलिन विलोचन शर्मा जैसे बड़े कवि, लेखक, आलोचक बिहार की धरती से ही जन्मे थे।
अध्यक्षीय सम्बोधन में विख्यात आलोचक श्री विश्वनाथ त्रिपाठी ने कहा कि नयी धारा का सात दशकों से सतत प्रकाशन साहित्यिक पत्रकारिता की स्वर्णिम विरासत है, जिस पर गर्व किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अपने समय के अच्छे साहित्य और साहित्यकारों का सम्मान किया जाना भी संस्कृति कर्म है, जिससे सभ्यता विकसित होती है। सम्मानित लेखकों में मंगलमूर्ति ने अपने पिता और हिंदी के बड़े लेखक आचार्य शिव पूजन सहाय से जुड़े आत्मीय संस्मरण सुनाते हुए कहा कि उनकी साहित्यिक विरासत का संरक्षण किया जाना चाहिए।
सुभाष राय ने कहा कि आज का समय बहुत कठिन है। मनुष्यता संकट में है। चारों ओर विकट स्वार्थ है, सघन अंधेरा है। सत्ता भी जनहित में काम करने की जगह उसे छलने, झूठे सपने दिखाने में जुटी है। लेखक होने के नाते हमें जनता के पक्ष में, पीड़ा के पक्ष में खड़े होना चाहिए। विजय चोरमारे ने कहा कि नयी धारा द्वारा मेरी कविता का सम्मान वास्तव में साहित्य में प्रतिरोध के औजार का ही सम्मान है.
नयी धारा बीते 69 बरसों से निरंतर प्रकाशित हो रही है। लगभग सात दशकों से प्रकाशन की निरंतरता इस पत्रिका की एक उपलब्धि ही मानी जायेगी। आरंभ में स्वागत भाषण नयी धारा के प्रधान संपादक डा प्रमथराज सिंह ने किया। श्री सिंह ने कहा कि नयी धारा हमारे लिए सिर्फ एक साहित्यिक पत्रिका नहीं है बल्कि एक रचनात्मक अभियान है, जहाँ साहित्यकारों के सम्मान से हम समय, समाज और साहित्य को एक रचनात्मक दिशा देना चाहते हैं। यही नयी धारा की परम्परा और विरासत है।
उन्होंने कहा कि जल्द ही हम नयी धारा की लम्बी साहित्यिक यात्रा को डिजिटलाइज करने का काम शुरू करेंगे। इस अवसर पर बीते २७ वर्षों से नयी धारा के सम्पादक की जिम्मेदारी संभाल रहे शिव नारायन ने कहा कि किसी लेखक के जीवन की सार्थकता उसकी निजी उपलब्धियों में नहीं बल्कि उसके समाज सापेक्ष संघर्ष में है। इसीलिए उसे अपने सामाजिक सरोकारों को अधिक से अधिक सार्थक बनाने की दिशा में काम करना चाहिए। अंत में धन्यवाद ज्ञापन डा अमरनाथ अमर ने किया। आयोजन शानदार रहा, जिसमें दिल्ली एनसीआर के लगभग सभी नामचीन साहित्यकारों ने हिस्सेदारी की। डीयू, जेएनयू, जामिया आदि के विद्वान अध्यापक-छात्र तो रहे ही।