लखनऊ : दोपहर की उमसभरी गर्मी में बहुत सारी अकुलाहट व्याकुलता और कुछ उत्साह लेकर पैर जीपीओ की तरफ बढ़ते हैं, हजरतगंज की पार्किंग लाट से जीपीओ की दूरी शायद कुछ सौ मीटर होगी लेकिन पसीना इतना छूट रहा था कि हालत दौ सौ मीटर का रास्ता तय करने में खस्ता हुई जा रही थी, सोच रहा था एसी की आराम और सुकूनभरी जिंदगी में हम कितने सच जो देखने जरूरी होते हैं उन्हें देखना छोड़ देते हैं। ये भी कि इस बेहद ददर्नाक गर्मी में एक सत्तर साल का बुजुर्ग बिना नागा अपना काम जाड़ा, गर्मी बरसात झेलते हुए करता है और शायद किसी से शिकायत भी नहीं करता क्योंकि मुफलिसी आपको शिकायत करने की आदत ही नहीं पड़ने देती।
खैर जीपीओ के फुटपाथ पर तमाशबीनों और लखनऊ की मीडिया के फोटोग्राफर साथियों की भीड़ देखकर अंदाजा लगा लिया था कि हो न हो किशन कुमार जी यहीं होंगे, अनुमान सही निकला, बेहद नम्र मुस्कान के साथ अपना परिचय देते हुए बातचीत शुरू हुई, सामने तमाशबीनों की भीड़ में असहज होता किशन कुमार जी का चेहरा बता रहा था कि उनकी तकलीफें अभी खत्म नहीं हुई हैं। मैंने पूछा कि आप परेशान हैं क्या तो बोले कि भैय्या मैं एकांतपसंद आदमी हूं अचानक इतनी भीड़ से परेशान तो हूं, ये पूछने पर कि टाइपराइटर मिलने से खुश हैं, थोड़ा सकुचाते हुए बोले कि भैय्या ये नया है इसपर हाथ सेट नहीं हुआ है। जाहिर है हाथ सेट न होने का मतलब था कि काम करने में असुविधा हो रही है जिसका सीधा असर उनकी जिंदगी पर पड़ना था, पूछा बाऊजी कितना कमाया आपने बोले भैय्या बीस रूपये कमाई हुई है। दिन के दो बज रहे थे और कमाई बीस रूपये, मेरे पास बोलने के लिए बहुत कुछ था नहीं, भावुक हो रहा था सो टापिक बदल दिया, पूछा दादा किसी को कुछ कहना चाहेंगे, कहा हां मीडिया को मीडिया के साथियों को जरूर धन्यवाद देना चाहूंगा, मैंने कहा कि ये सब मुख्यमंत्री के मामला संज्ञान में लेने से ही हुआ है तो बेहद नम्र भाव से कहा कि उनका भी आभारी हूं।
खुद को सड़क पर बैठे उस बड़े आदमी से कितना छोटा महसूस कर रहा था, बता नहीं सकता, मुझे पता चल गया था कि इन्हें मैं कुछ भी मदद दूंगा ये नम्रता से ना कह देंगे सो एक निवेदन कर दिया कि प्लीज आप अपने हाथों से जिसको भी धन्यवाद देना चाहते हैं टाइप कर दीजिए शर्त इतनी भर है की आपको उसके पैसे लेने होंगे मुझसे, बहुत मुश्किल से तैयार हुए पैसे लेने को, खैर अपने हाथ से उन्होंने आभार पत्र टाइप किया और मुझे थमाया, इस बीच घर, बाहर जीवन के बारे में बातें होने लगी, पूछा कि क्यों ये काम करते हैं कोई मजबूरी है क्या, तो बोले कि भैय्या खाली बैठने से अच्छा है कि कुछ करते रहें। ये पूछने पर कि फोन क्यों बंद कर दिया आपने तो बोले भैय्या पता नहीं कहां कहां से फोन आ रहे हैं अमरीका, लंदन से, मुझे उनकी भाषा समझ नहीं आती इसलिए फोन बंद कर दिया, मैंने कहा कि लोग आपकी मदद करना चाहते हैं मैं क्या कुछ लोगों से कहकर आपके लिए एक बड़ा सा छाता लगवा दूं ताकि आप गरमी और बारिश से बचे रहे सकें, उनका जवाब सुनकर मेरा खून जम गया था, सोचा इतना पढ़लिखकर इंसानियत की तालीम मुझे फुटपाथ पर मिलेगी, सपने में ख्याल नहीं था, किशन कुमार जी के नम्र जवाब ने मुझे जिंदगी का पाठ पढ़ा दिया बोले, बेटा नहीं, मुझे छाता नहीं चाहिए, मैं छाते में बैठूंगा और मेरे साथी खुले में ये मुझे गवारा नहीं, फुटपाथ पर बैठे उस बुजुर्ग के अंदर इंसानियत का ये स्तर मौजूद था और हम खाए अघाए लोग अपने साथी अपने पड़ोसी के बारे में भी भलमनसाहत बरतने में कंजूसी दिखा देते हैं।
खैर, इस बीच सीओ हजरतगंज, एडीएम, कुछ पुलिसवाले अपने आका का फरमान बजाने पहुंच गए, वही रटे रटाए सवाल कोई परेशानी तो नहीं है दादा, मैंने एडीएम और सीओ हजरतगंज से दरख्वास्त की कि अगर मुमकिन हो तो दो-तीन दिन के लिए कोई पुलिसवाला इस जगह पर डिप्यूट कर दें ताकि तमाशबीनों की भीड़ न लगे किशनकुमार जी के आसपास, अधिकारियों का ध्यान किशनकुमार जी की समस्या दूर करने की तरफ कम और मीडिया की तरफ ज्यादा था, इतने में कोई पुलिस का अधिकारी बोल उठा की भाई मीडिया के बंधु अपना अपना परिचय तो दे दीजिए, जाहिर है कल कोई भी अपनी इमेज अखबार में या साहब के सामने खराब नहीं होने देना चाहता था, ….किशनकुमार जी खमोशी से अपना काम करना चाहते थे, वही काम जो पिछले तीस-पैंतीस बरस से करते आए हैं, ये उनकी जिंदगी में आया तूफान ही था जिसके निशान उनके जेहन पर अभी भी बाकी हैं, चूंकि इस मामले से मैं भी जुड़ा था और ऐसा मानता हूं कि रात साढ़े नौ बजे मुख्यमंत्री को घटना की मय तस्वीर जानकारी देने के सात मिनट बाद सीएम आफिस से मिले जवाब के बाद होनहार साथी आशुतोष का अभियान अंजाम तक पहुंचा और इस दौरान कई संवेदनशील लोगों को मुझमे कुछ संभावनाएं नजर आई, ऐसे तमाम साथियों ने किशन कुमार जी को मदद दी अपील की एक साथी ने तो रात एक बजे मैसेज किया कि वो उनकी मदद करना चाहते हैं, तो मैंने किशन कुमार जी का बैंक अकाउंट डिटेल ले लिया और यदि कोई उनकी आर्थिक मदद करना चाहता है तो उससे किशन कुमार जी को कोई ऐतराज नहीं है, मैंने पढ़ा कि उनको मदद देने के नाम पर लोग विदेशों में चंदा तक वसूल रहे हैं पता नहीं ये कितना सही है कितना गलत है, इसिलए मैंने सोचा कि यदि कोई भी उनकी मदद करना चाहता है तो सीधे उनके अकाउंट में मदद की राशि भेज सकता है, इसलिए उनके अकाउंट डिटेल्स सभी के लिए साझा कर रहा हूं…
नाम.. किशन कुमार
बैंक.. एसबीआई, पत्रकारपुरम चौराहा ब्रांच, गोमतीनगर, लखनऊ
अकाउंट नंबर.. 33885641556
आईएफएससी.. एसबीआईएन0016728
फोन नंबर… 9335052997
साथियों मुझे पता है आप सब बीस-तीस दिन बाद ये सब भूल जाएंगे तब किशनकुमार जी को अपने दर्द खुद बेहद तन्हा और अकेले झेलने होंगे, मेरा विनम्र अनुरोध है आप सबसे कि आज नहीं लेकिन आज के ठीक एक महीने बाद और एक साल बाद एक फोन किशन कुमार जी को कर लीजिएगा, तब उन्हें इसकी बड़ी जरूरत होगी, उन्हें यूंही उनके हाल पर मत छोड़िएगा, आखिर हम यही तो करते हैं, आवेश में आते हैं, शोर मचाते हैं फिर शांत हो जाते हैं, वो हमारे बुजुर्ग हैं, हमारी जिम्मेदारी हैं, इसलिए आज नहीं हमेशा हम एक नहीं ऐसे कई किशन कुमार जी जैसों के साथ रहेंगे.
आखिर में एक विनम्र अनुरोध आप सबसे कि प्लीज किशन कुमार जी के फोन पर काल न करें, वो अचानक आ रही इतनी काल्स और इतने सारे खैरख्वाहों की अतिशय मदद से परेशानी की हालत में पहुंच चुके हैं, अगर मदद चाहते हैं तो चुपचाप उनके अकाउंट में जो भी मदद करना चाहें कर दीजिए लेकिन उनको फोन करके, उनकी दुकान के सामने मजमा लगाकर उन्हें परेशान मत कीजिए, सभी अच्छे लोगों से अपील की एकजुट रहिए, प्रदीप कुमार जैसा बेहूदा आदमी सिर्फ इसलिए किसी भले आदमी के साथ बेहूदगी कर देता है क्योंकि उसे पता है अच्छे लोगों के पास एकजुट होने का वक्त कहां है…किशन कुमार जी की अच्छी जिदंगी की प्रार्थना और युवा व होनहार साथी आशुतोष के बेहतर भविष्य की उम्मीदों की दुआ के साथ ( फोटोग्राफर साथी बता रहे थे कि डीएम लखनऊ आज आशुतोष को सम्मानित करेंगे, उसे शुभकामनाएं साथ ही सबसे अपील उसे हीरो मत बनाइए, उसे सिर्फ एक अदद संवेदनशील और जुझारू पत्रकार बने रहने दीजिए. यकीन जानिए अपने बारह साल के पत्रकारीय कॅरियर में इतना फख्र कभी महसूस नहीं हुआ..इस अभयान में कसी न किसी न किसी तरह से जुड़े रहे सभी भले और संवेदनशील साथियों को ढेर सारी दुआओं के साथ….
अलविदा..
आपका..
ह्रदय राठौड़
[email protected]
jagdish samandar
September 22, 2015 at 2:49 am
kisi khabar se agar kisi ka bhala hota h, or dust ko saja milti h to media ka kad bad jata h…..or sahi mayno m media ka farj bhi tabhi poora hota h…sartha pryas k liye dhanyavad