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राजस्थान

कोटा की थाली में अब ‘बटेर’ भी!

हैरत की बात है कि कोचिंग शिक्षा के लिए ख्याति प्राप्त कोटा शहर में अब ‘स्वाद’ की खातिर वन्य जीवों का मांस खुले आम बेचने का कारोबार शुरू हो गया, जिसमें ‘बटेर’ मुख्य है। सवाल यह है कि आखिर ‘बटेर’ आदि वन्य जीवों को दैनिक भोजन तथा रेग्युलर आधार पर मुख्य धारा के नॉनवेज ढाबा-रेस्टोरेंट एवं होटल्स में परोसे जाने की विधिवत अनुमति किस सरकारी विभाग/एजेंसी से ली गई है?

बात इत्तीभर नहीं है कि किसी ने एक बटेर पकड़ी और एक पार्टी कर ली या पका लिया। असल में मुद्दा काफी गंभीर नजर आया, इसीलिए सार्वजनिक रूप से इस विषय को जाहिर करने के लिये आगे आना पड़ा। मैंने देखा कि कोटा शहर में नॉनवेज ढाबा-रेस्टोरेंट एवं होटल्स आदि पर ‘बटेर उपलब्ध है’ की सूचना छोटे-छोटे बैनर पर अंकित है। चूंकि कोटा में सालाना लाखों स्टूडेंट्स कोचिंग शिक्षा के लिए आते हैं, इसके चलते अनेकानेक कारोबार यहां वैध-अवैध रूप से अस्तित्व में आ गए। इनमें नॉनवेज खाने-खिलाने के चलन होस्टल्स में आवासित स्टूडेंट्स पर सिर चढ़कर बोल रहा है।

शहर में कई ऐसी ऑनलाइन सर्विसेज एवम मोबाइल ऐप उपलब्ध हैं, जिनकी मदद से स्टूडेंट् किसी भी प्रकार की खाद्य सामग्री ऑडर कर हॉस्टल पर मंगवा सकता है। यह सत्य है, कि नॉनवेज ढाबा-रेस्टोरेंट एवं होटल्स आदि के कारोबार यानि बिक्री में मार्शल समुदाय(?) एवं दबंग व्यक्तियों की बाजार हिस्सेदारी अधिक हो, लेकिन यूजर्स यानि उपभोक्ताओं में सर्व समाज की भागीदारी से इनकार नहीं किया जा सकता, तभी तो नित-प्रतिदिन कोटा शहर में न केवल नॉनवेज ढाबा-रेस्टोरेंट एवं होटल्स आदि की संख्या में अभूतपूर्व रूप से उछाल आ गया, बल्कि इन प्रतिष्ठानों में परोसी जानी वाली वैरायटीज की मांग में भी अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी आ गई।

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परिणामतः बटेर आदि वन्य जीवों के शिकार तथा नॉनवेज ढाबा-रेस्टोरेंट एवं होटल्स आदि तक इनकी सप्लाई का अवैध कारोबार बढ़ गया। यकीनन इस नए प्रकार के ‘स्वाद कारोबार’ में बढ़ता मुनाफ़ा नई कारोबारी संभावनाओं की ओर भी इशारा कर रहा है। देखने वाली बात यह है, कि जिम्मेदार एजेंसियां/विभाग कितनी प्रभावी कार्यवाही अमल दरयाफ़्त कर पाएंगे?

इस विषय पर बाबत ध्यानार्थ मैंने राज्य सरकार के बहुप्रचारित वेब पोर्टल ‘राजस्थान संपर्क’ में सूचना दर्ज करवाने का प्रयास किया। प्रक्रिया अंतर्गत मोबाइल नंबर का रजिस्ट्रेशन कर जब मैं आगे बढ़ा तो काफी बड़ा एक और पेज खुला, जिसे भरते -भरते मैंने सहसा विचार किया, कि मैं यह सब कुछ क्यों कर रहा हूँ? क्या नागरिक दायित्व बोध की पूर्ति सुनिश्चित करने के लिए भी इतनी बड़ी प्रक्रिया से गुजरना अनिवार्य है?

क्या मुझ जैसे सामान्य नागरिक को राज्य सरकार बतौर सूचनादाता दायित्व निर्वहन के लिए केवल मोबाइल नंबर और ईमेल आईडी लेकर बेवजह की औपचारिक घोषणा देने की बाध्यता से मुक्ति प्रदान करने की पहल कर पायेगी?

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आचार्य नंदकिशोर पारीक
वरिष्ठ पत्रकार एवं एनजीओ कंसल्टेंट
[email protected]
9413309966

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