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भोपाल के अखबारों ने स्वर्गीय कृष्णा सोबती को नहीं दी पहले पेज पर जगह

भोपाल : हिंदी से ताल्लुक रखने वाले आयोजनों और खबरों को महत्त्व ना देने के लिए अंगरेजी मीडिया को कोसना अब गए गुजरे जमाने की बात हो गई है. बाजार के आज के दौर में तो उलटी गंगा बह रही है.अब हिंदी के कथित बड़े अख़बारों के पास ही उससे संबंधित खबरों के लिए जगह का टोटा है जबकि अंगरेजी अखबार हिदीं की खबरों आदि पर खासा ध्यान दे रहे हैं.

हिंदी के कालजयी उपन्यास राग दरबारी के पचास साल पूरे होने पर अंगरेजी के अख़बार विशेष लेख छाप रहे हैं पर हिंदी मीडिया में कोई हलचल नजर नहीं आती..! इस मानसिकता को ज्ञानपीठ पुरस्कार से से सम्मानित हिंदी की जानीमानी कथाकार कृष्णा सोबती के शुक्रवार को हुए निधन से बेहतर से समझा जा सकता है.

इससे ज्यादा शर्मनाक क्या होगा की दैनिक भास्कर और पत्रिका में यह दुखद खबर पहले पेज पर जगह नहीं पा सकी है. इसके बरअक्स इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स और टाइम्स ऑफ़ इंडिया सरीखे अंगरेजी के बड़े राष्ट्रीय अख़बारों ने खबर को पहले पेज पर तस्वीर के साथ शुरू कर सोबतीजी के साहित्य कर्म को शेष अन्दर विस्तार से प्रकाशित किया है.

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दैनिक भास्कर ने निधन की सूचना के बजाए आखिरी पेज के पहले भीतर छोटा सा लेख छाप कर पल्ला झाड़ लिया गया है.छब्बीस जनवरी को सोमवार भी नहीं था जो भास्कर के लिए नो निगेटिव न्यूज़ वाला मंडे होता है.

दरअसल इस अंक के संपादक सचिन तेंदुलकर थे तो लगता है इस प्रयोग के नशे में कृष्णाजी के निधन की तरफ ध्यान नहीं गया होगा.!अपने को भास्कर का प्रतिद्वंदी मानने वाले मगर ज्यादातर मामलों में उसका अनुसरण करने वाले पत्रिका ने खबर को तीसरे फ्रंट पेज पर छाप कर मानो हिंदी साहित्य जगत पर एहसान सा किया.

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बतलाते चलें कि इन दिनों बड़े अख़बारों में कई फ्रंट पेजों का रिवाज है जिनके हर पेज पर सबसे ऊपर उनका नाम याने मत्था होता है. हिंदी के दम पर मीडिया का साम्राज्य खड़ा करने वालों की हिंदी के साथ इस बेरुखी को क्या नाम दें यह हम आप पर छोड़ते हैं.

लेखक श्रीप्रकाश दीक्षित भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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https://www.facebook.com/bhadasmedia/videos/2290162654575164/
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