Meena Kotwal : बीबीसी के संपादक मनुस्मृति और जनेऊ शास्त्र से न्यूज़रूम चलाना चाहते हैं, वे बाबा साहेब के संविधान को नहीं मानते!
मैं मीना कोटवाल, दलित समाज से आने वाली भारत की एक आम नागरिक, बाबा साहेब आंबेडकर के बनाए गए संविधान पर पूर्ण विश्वास रखती हूं. संविधान के प्रस्तावना में लिखित सामाजिक न्याय और अवसर की समता के लिए कटिबद्ध हूं. लेकिन संपादक पदों पर बैठे लोग बाबा साहेब के बनाए गए संविधान को व्यवहार में नहीं मानते हैं और अवसर की समता के साथ किस तरह खिलवाड़ करते हैं उसका एक उदाहरण नीचे लिख रही हूं.
प्रिय संपादक महोदय, मैं जानती हूं कि आप की निष्ठा मनुस्मृति के प्रति है और यही वजह है कि न्यूज़रूम में सिर्फ एक ही तरह के लोग दिखाई देते हैं. लेकिन मैं भी आपको बताना चाहती हूं कि यह देश संविधान से चलेगा आपके जनेऊ शास्त्र से नहीं. बाबा साहेब ने हमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी दी है और वह आप हमसे नहीं छीन सकते हैं. नीचे स्क्रीनशॉट के साथ मैं पूरा वाकया आप सबसे शेयर कर रही हूं.
पिछले महीने Mumbai Press Club द्वारा आयोजित RedInk Award के लिए आवेदन मांगे गए थे, इसके लिए मैंने भी आवेदन किया था. चूंकि आवेदन करते समय केवल साल 2019 में की गई ही स्टोरी भेज सकते थे. इसलिए ज़ाहिर है बीबीसी में रहते हुए भी मैंने कुछ स्टोरी की, जिन्हें मैं यहां भेजना चाहती थी. आवेदन करने के लिए अपने संस्थान के संपादक या वहां के हेड से भी ऑथेंटिकेशन चाहिए था. मैंने भी इसके लिए बीबीसी हिंदी के संपादक मुकेश शर्मा और बीबीसी इंडिया की सभी भाषाओं की संपादक रूपा झा को मेल किया.
मेरे मेल पर उनका जो जवाब आया वो मेरे लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं है. इन लोगों ने बीबीसी में रहते हुए तो मेरा शोषण किया ही है लेकिन वहां से बाहर निकलने के बाद भी वो सिलसिला आज भी खत्म नहीं हुआ. ये हमेशा से चाहते रहे हैं कि कैसे मुझे आगे बढ़ने से रोका जाए, जिसका प्रमाण आपको ये मेल पढ़ने के बाद मिल जायेगा. एक ख़ास जाति की लड़की के लिए इतनी घृणा एक संपादक जैसी पोस्ट पर बैठने के बाद इन्हें कितनी शोभा देता है!
*नोट- मेल में मुझे बताया गया कि इसके लिए लंदन से परमिशन लेनी होती है, जबकि ये काम मेरा नहीं संपादक महोदय का है. रही बात डिटेल्स की तो वो सारी डिटेल्स जिनकी जरूरत उन्हे पड़ सकती थी वो मैंने भेज दी थी. फिर भी कुछ और चाहिए था तो वो मुझसे एक बार संपर्क कर सकते थे. दूसरा, उनका कहना है कि हमारे यहां से ऑलरेडी उन कैटेगरी में कई आवेदन किए जा रहे हैं जिनमें मैं करना चाहती हूं. मतलब आपने तो मेरी यहीं छंटनी कर दी, जबकि एक कैटेगरी में कब कितने आवेदन भेजने हैं इसका फैसला अवार्ड आयोजित करने वालों पर छोड़ना चाहिए था शायद.
बीबीसी में काम कर चुकीं युवा महिला पत्रकार मीना कोतवाल की एफबी वॉल से.