
संजय कुमार सिंह-
डॉक्टर के यहां बारी के इंतजार में बैठा था, आज तक पर चर्चा में ईडी की चुनिन्दा कार्रवाई मुद्दा थी और भाजपा प्रवक्ता बचाव कर रहे थे। चुनौती दी गई कि एक भी मामला ऐसा बताएं जो 2014 के बाद शुरू हुआ हो और नौ साल में सजा हुई हो या अंजाम पर पहुंचा हो। जवाब था फलाने इतने दिन जेल में रहे, फलाने इतने दिन से जेल में हैं और फलाने के बाद ढिमाके को गिरफ्तार किया गया तो दोनों का इस्तीफा हो गया – क्या ये सब ऐसे ही है, या ऐसा ही कुछ। मतलब जमानत नहीं मिली या नहीं दी गई तो मामला पुख्ता है। शाहरुख खान के बेटे का उदाहरण एंकरानी ने नहीं दिया।
नौ साल में कितने छूट गए उसपर इंडियन एक्सप्रेस की खबर भूल गए। या पता ही नहीं होगा। जहां तक जमानत नहीं मिलने की बात है मुझे याद आया कि राहुल गांधी पर आरोप लगाया जाता है कि जमानत पर हैं।
मेरा मानना है कि उनपर जज की हत्या की साजिश का आरोप नहीं है इसलिए जमानत पर हैं। जज को गवरनर बना सकते तो शायद बरी भी हो गए होते। इसी तरह, किसी को जमानत नहीं मिली यह आरोप पुख्ता होने का आधार कैसे हो सकता है? वह भी तब जब जमानत नहीं देने वाला रिटायर नहीं हुआ है और उसे ईनाम नहीं मिलने की गारंटी नहीं है। कायदे से यह सवाल एंकर को करना चाहिए था। मैं होता तो जरूर करता। लेकिन …..
मैं तो टीवी नहीं देखता, हिन्दी अखबार नहीं पढ़ता लेकिन जो हालात हैं उसमें मुझे लगता है चुनाव से पहले ‘लेवल प्लेइंग फील्ड’ देने के लिए सभी अखबार और चैनल बंद होने चाहिए।