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उत्तर प्रदेश

‘जी हिंदुस्तान’ के स्टिंग में फंसे रिश्वतखोर बाबू के प्रकरण की जांच के लिए दागी अफसर को मिली जिम्मेदारी!

यूपी में महिला कल्याण विभाग में भ्रष्टाचार चरम पर, स्टिंग ऑपरेशन के बाद बड़ी मछलियों को बचाने में जुटा विभाग

जी मीडिया के ‘जी हिंदुस्तान’ न्यूज चैनल ने लखनऊ में ‘आपरेशन बचपन’ नाम से स्टिंग किया. इस स्टिंग से खुलासा हुआ कि योगीराज में भी जिला प्रोबेशन कार्यालय के लखनऊ आफिस में भ्रष्टाचार चरम पर है. जी हिंदुस्तान न्यूज चैनल ने स्टिंग का प्रसारण जब कर दिया और चारों तरफ से विभाग की थूथू होने लगी तो परम भ्रष्टाचारी बड़ी मछलियों ने छोटों की गर्दन नाप दी. क्लर्क टाइप लोग निपटा दिए गए. इन क्लर्कों द्वारा किए जाने वाले भारी भरकम डील का बड़ा हिस्सा जिन उपर बैठे आकाओं को जाता था, वो साफ बच गए. फिलहाल तो सच यही है कि स्टिंग ऑपरेशन के बाद बड़ी मछलियों को बचाने में महिला कल्याण विभाग सक्रिय हो गया है. इसी के तहत दागी अफसर के नेतृत्व में भ्रष्टाचार की जांच के लिए टीम गठित कर दी गई है.

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ज्ञात हो कि महिला कल्याण विभाग के अंर्तगत जिला प्रोबेशन कार्यालय आता है. न्यूज चैनल के अंडरकवर संवाददाता ने लखनऊ के जिला प्रोबेशन कार्यालय के कर्मियों से लखनऊ एवं कानपुर में एनजीओ के माध्यम से एक विवादित जमीन पर शेल्टर होम खोले जाने की मान्यता हेतु बातचीत शुरू की. इस बाबत न्यूज चैनल के संवाददाता ने लख़नऊ जिला प्रोबेशन कार्यालय के लिपिक आशीष कुमार से कलेक्ट्रेट कार्यालय में सम्पर्क किया. इस क्लर्क ने काम कराने के एवज में डीपीओ लखनऊ के लिए 25000 रुपया खुलेआम घुस की मांग कर दी.

क्लर्क आशीष कुमार के कहने पर निदेशालय के स्तर पर फ़ाइल पास कराने हेतु चैनल के सवांददाता ने निदेशालय महिला कल्याण के बाबू सुनील कुमार से संपर्क किया तो उसने भी विवादित जमीन पर शेल्टर होम खोले जाने हेतु खुले आम 30000 रुपये की मांग कर दी.

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ये सब कुछ उस मुख्यमंत्री की नाक के नीचे स्थित राजधानी में हो रहा था जो भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस की बात तो करते हैं लेकिन इसका खौफ अब कहीं देखा नहीं जा रहा है. अफसर लोग अपने क्लर्कों, बाबूओं, दलालों के माध्यम से खुलेआम घूसखोरी कर रहे हैं. इस स्टिंग ऑपरेशन के मीडिया पर चलने के बाद केवल एक बाबू आशीष कुमार को विभाग द्वारा निलंबित कर दिया गया. स्टिंग आपरेशन में रिश्वत मांगते दिख रहे निदेशालय महिला कल्याण में कार्यरत प्रभावशाली लिपिक सुनील कुमार के विरुद्ध निलंबन की कार्यवाही नहीं की गई.

इससे समझ में आता है कि बड़ी मछलियों अपने चहेते लोगों को बचाने में जुटी हैं. ये एक पूरा कॉकस है जो आपस में एक दूसरे को बचाने के लिए सक्रिय रहता है.

राजकीय बालिका गृह कानपुर की 57 बालिकाओं के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने पर एवं मीडिया को सही सूचना न देने के आरोप में जिला प्रोबेशन अधिकारी कानपुर अजीत कुमार को शासन ने निलंबित कर दिया. ये इसलिए हुआ क्योंकि मामला पूरे नेशनल व लोकल मीडिया में फैल गया. वहीं रिश्वतखोरी के स्टिंग आपरेशन में फंसे सभी क्लर्कों तक पर जब कार्रवाई नहीं की जा रही है तो इनके उन अफसरों पर क्या कार्रवाई होगी जो लंबे चौड़े पैसे को डकारने का काम करते हैं.

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सबसे मजेदार तो ये है कि करप्ट काकस द्वारा एक दूसरे को बचाने के क्रम में ही लखनऊ में निलंबित किये गए बाबू आशीष के प्रकरण की जांच कराने के लिए निदेशालय द्वारा लखनऊ मंडल के उपनिदेशक सर्वेश पांडेय को ही जांच अधिकारी बना दिया गया है. यहां बताना उचित होगा कि सर्वेश पांडेय खुद कभी दागी रह चुके हैं.

मामला वर्ष 2018 का है. रेणुका कुमार जब महिला कल्याण की प्रमुख सचिव थी तब जेपी सागर एवं रामकेवल जैसे अफसरों की टीम ने विभाग द्वारा संचालित कई शासकीय योजनाओं-कार्यक्रमों का औचक निरीक्षण किया था. जांच समिति ने तत्कालीन डीपीओ सुधाकर एवं मण्डलीय उपनिदेशक सर्वेश पांडेय के विरुद्ध सख्त कार्यवाही किये जाने की अनुसंशा की थी.

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देखें अनुशंसा पत्र-

भ्रष्टाचार की कारगुजारियों को तार तार करने वाली जांच समिति की यह महत्वपूर्ण रिपोर्ट आज भी धूल फांक रही है. इस रिपोर्ट पर कार्यवाही न होना बड़े कॉकस की ओर ही इशारा कर रहा है. ऐसे में उसी ही लखनऊ मंडल के दागी अधिकारी को जांच अधिकारी बनाया जाना एवं शासन की दबी हुई रिपोर्ट पर कार्यवाही न किया जाना निश्चित रूप से मुख्यमंत्री के जीरो टॉलरेंस की नीति को कमजोर करने का प्रयास है.

शेल्टर होम खोले जाने की मान्यता हेतु लख़नऊ जिला प्रोबेशन कार्यालय के लिपिक और निदेशालय महिला कल्याण के बाबू द्वारा खुले आम मांगी गई घूसखोरी की खबर ने सरकार की जीरो टॉलरेन्स की नीतियों पर गहरा आघात पहुंचाया है. ये क्लर्क-बाबू तो छोटी मछलियां हैं जो पैसा उगाहने का काम करती हैं. ये पैसा उपर कहां कहां तक किन किन अफसरों तक जाता है, ये जांच का विषय है. कम से कम दागी अफसरों को साइडलाइन कर बेहतर लोगों को जिम्मेदारी देने से भी एक संदेश जाता कि सरकार जहां भी गड़बड़ियां दिख रही है, उसे ठीक करने को तत्पर है. पर यहां तो जो दागी है, वह दूसरे दागी की जांच का जिम्मा ले रहा है. संभव है कुछ अफसर काकस बनाकर मुख्यमंत्री कार्यालय की आंखों में धूल झोंकने का काम कर रहे हों.

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