मजीठिया वेज बोर्ड लागू न किए जाने के खिलाफ एक लड़ाई हिमाचल प्रदेश में भी लड़ी जा रही है। ये अलग बात है कि इस लड़ाई में सिर्फ अमर उजाला के पत्रकार बंधु ही आगे आए हैं। असंतुष्ट अमर उजाला कर्मियों ने धर्मशाला स्थित लेबर निरीक्षक के पास इस संबंध में शिकायत की है। इसकी सुनवाई की तिथि 24 जुलाई रखी गई है।
इसके अलावा कुछ साथियों ने माननीय सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को भी पत्र लिख कर वास्तविकता से अवगत करवाया है। हिमाचल में अब तक सिर्फ अमर उजाला के साथियों ने ही आवाज बुलंद की है। हालांकि अमर उजाला ने मजीठिया वेज बोर्ड को तोड़मरोड़ कर लागू किया है, जिसका कुछ लोगों को ही फायदा हुआ है, मगर बाकी अखबारों ने तो यह भी नहीं किया है।
भड़ास को भेजे गए पत्र पर आधारित।
Comments on “मजीठिया के लिए धर्मशाला (हि.प्र.) के अमर उजाला कर्मी पहुंचे लेबर कोर्ट”
समय बीतने के साथ और आईटीआई से मिली जानकारी के बाद
मेरा तो संदेह बढ़ता जा रहा है। अनपढ़ कलमघसीटों को शायद देश के विभिन्न कोनों में चल रहे मजदूर आंदोलन की जरा भी जानकारी नहीं है कि किस तरह से लेबर कोर्ट न्यूनतम वेतन, पीएफ, ईएसआई तक लागू नहीं करवा पाता। मुंह उठाये और चल पड़े लेबर कोर्ट। इसके बाद धमका दिए जाएंगे और चुप बैठ जाएंगे।
पहले अदालत की अवमानना का केस करो और फिर सुप्रीम कोर्ट जैसा निर्देश दे वैसा करो। लड़ाई लंबी लड़नी होगी और व्यापक एकजुटता के बिना संभव नहीं। एक्रास दि मीडिया और चेहरे पर बिना नकाब लगाए।
मजीठिया गुड़ भरी ऐसी हंसिया है जिसे न तो निगलते बन रहा है और न उगलते।
आप लोग जहां भी हैं वहां आरटीआई डलवाएं और पता करें कि कहां पर कितने पक्के कर्मचारी हैं। पंजाब केसरी, अजीत समाचार आदि-आदि के लोगों को भी बटोरें। इंकलाब-जिंदाबाद भी हो। राज्यसत्ता आपके साथ किस हद तक है यह समझ में आ जाएगा और लड़ाई आगे कैसे बढ़ेगी इसका भी रास्ता निकलेगा। हर समस्या अपने साथ समाधान भी लेकर आती है, जरूरत है तो बस उसे खोजने की।
साथियो, लड़ाई सिर्फ मजीठिया तक महदूद नहीं है। हमारे लोकतांत्रिक-नागरिक अधिकारों का सवाल भी इससे जुड़ा है। बनियों ने हमारे ही बीच को लोगों में से जो दल्ले पाल रखे हैं उनसे कैसे निपटा जाए, इस पर भी हमें विचार करना होगा।
मजीठिआ को लेकर नॉएडा ऑफिस में भी काफी उठा पटक है. छुट्टीओ को लेकर रोक लगा दे गयी है. कुछ लोग जो अपनी लॉबी के है संपादक और news एडिटर milkar unhe hi chuttia देते है. ऑफिस में बैठकर पुराने लोग पॉलिटिक्स करते है, लोब्बिंग करते हैं. वे केवल अपनी नौकरी करते है और अखबार की सत्ता बदलकर, उसे नुक्सान पहुंचकर अपना मतलब साधते है. फ्रंट पेज डेस्क हो या डाक डेस्क. कामचोरो की जमात है यहाँ.
md साहब इससे बेखबर है. डेस्क हो या रिपोर्टिंग. रिसेप्शन पैर बैठने वाला टेलीफोन ऑपरेटर भी कम नहीं है. कहने को रिटायर हो चूका है. कंपनी के रहमो करम पर hai. बावजूद इसके सम्पादकीय के लोगो से पुरे ऑफिस की जानकारी बांचता है. कब कौन आ रहा है, किसे निकाला, किसे रखा गया, कार्मिक विभाग मैं क्या हो रहा है, सब जानकारी रहती है उसके पास. लोग जल्दी आकर उसे के पास खड़े रहते है. ऑफिस की जानकारी लेते है.