प्रिंट मीडिया मंडली में इस समय सबसे ज्यादा चर्चा किसकी है? यह सवाल इस मंडली से संबद्ध किसी भी सदस्य-कर्मचारी-कामगार या फिर किसी बड़े ओहदेदार के समक्ष उछाल दीजिए तो वह छूटते ही बोल पड़ेगा- श्रम विभाग। जी हां, श्रम विभाग और उसके अफसर ही आजकल इस मंडली की चर्चा के केंद्र बिंदु हैं। यह मंडली छोटे-बड़े सभी तबके की अलग-अलग है। पत्रकार-गैर पत्रकार कर्मचारियों की मंडली श्रम महकमे की बाट इसलिए जोह रही है ताकि मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों के मद्देनजर रिपोर्ट वह उनके हक में सुप्रीम कोर्ट में पेश करे। मीडिया मालिकों-मैनेजमेंट की मंडली इस घात में है कि श्रम विभाग ऐसी रिपोर्ट सर्वोच्च अदालत के समक्ष रखे जिसमें दर्ज हो कि मैनेजमेंट ने कर्मचारियों की हर सुख-सुविधा का ख्याल हमेशा रखा है। उसे इतना वेतन देता है-दे रहा है-मिलता रहा है कि कर्मचारी निश्चिंत भाव से बेफिक्र होकर अपने आवंटित काम को अंजाम दे सकें और मैनेजमेंट से कोई गिला शिकवा न करें।
इस पुनीत काम-क्रियाकलाप में सबसे ज्यादा मशगूल दैनिक भास्कर मालिकान-मैनेजमेंट है। वह इसके लिए हर संभव तैयारी कर रहा है, या तैयारी कर ली है। इसके लिए उसने कर्मचारियों से साल भर पहले ही एक उस फार्म पर साइन करा लिए थे जिसमेें साफ तौर पर लिखा था कि भास्कर अपने कर्मचारियों को संतुष्ट-निश्चिंत-बेफिक्र रहने लायक सेलरी देता है। उसे मजीठिया वेज बोर्ड संस्तुतियों के हिसाब से सेलरी-सुविधा की कोई जरूरत-अपेक्षा-दरकार नहीं है। इस फार्म पर ज्यादातर कर्मचारियों ने बेमन से ही सही, साइन कर दिए थे। लेकिन इन फार्मों पर तारीख डालने से रोक दिया गया था। मतलब ये कि इन फार्मों पर तारीख अपनी मर्जी से डालने को मैनेजमेंट स्वतंत्र था, या कि है।
इन फार्मों पर दस्तखत कराने की जो प्रक्रिया बरती गई वह खुली जोर-जबर्दस्ती, तानाशाही वाली थी। कर्मचारियों ने नौकरी बचाने-बचे रहने-बनाए रखने की फिक्र में दस्तखत कर दिए थे। अब इन्हीं फार्मों को फाइलों में सजाकर मैनेजमेंट श्रम विभाग को सौंपने को तैयार बैठा है। यानी जब भी श्रम विभाग का कोई अफसर आ धमकेगा तो मैनेजमेंट इन्हीं फार्मों का पुलिंदा उन्हें थमा देगा और अपनी जिम्मेदारी-उत्तरदायित्व से छुटकारा पा लेगा।
इसकी सबसे तगड़ी तैयारी दैनिक भास्कर चंडीगढ़ के मानव संसाधन (एचआर) विभाग ने कर रखी है। इस विभाग की मुखिया मोहतरमा रुपिंदर कौर इस काम में इतनी मशरूफ हैं कि पूछो मत! उन्होंने इसके लिए कर्मचारियों की नाक में दम कर रखा है। एचआर विभाग का हर कर्मचारी इस काम के लिए गाहे-बगाहे उनकी झिडक़ी सुनने के लिए खुद को तैयार किए बैठा है। लेकिन विभाग के चंद मैनेजरनुमा घाघ प्राणी इस गतिविधि, अफरा-तफरी पर मंद-मंद मुस्कराते हुए आनंद लेने में भी मशगूल हैं।
बता दें कि चंडीगढ़ श्रम विभाग का कुछ अरसा पहले जब नोटिस आया था तो उसे रिसीव नहीं किया गया था। सुप्रीम कोर्ट का आदेश जारी होने के बाद ही दैनिक भास्कर चंडीगढ़ के रिसेप्शन काउंटर को हिदायत दे दी गई थी कि ऐसा कोई भी नोटिस यदि श्रम विभाग से आता है तो उसे रिसीव न किया जाए। सवाल यह है कि जब नोटिस रिसीव ही नहीं किया गया है तो श्रम विभाग को जवाब देने की इतनी तैयारी क्यों की जा रही है? श्रम विभाग को जवाब सौंपने की इतनी बेताबी क्यों है? इसका जवाब है श्रम विभाग की सक्रियता। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और केंद्र शासित राज्यों के प्रशासकों के सलाहकारों के माध्यम से लेबर कमिश्नरों को इस काम में लगाया हुआ कि तीन महीने की अवधि के अंदर उसे रिपोर्ट भेजें कि किन अखबारों में मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुति लागू हुई है और किन में नहीं। इस बारे में मैनेजमेंट का क्या रवैया है और कर्मचारियों की स्थिति-दशा क्या है।
चंडीगढ़ लेबर कमिश्नर अपने असिस्टेंट लेबर कमिश्नर के जरिए इस काम में पूरी तरह जुटे हुए हैं। एएलसी (असिस्टेंट लेबर कमिश्नर) स्वयं लेबर इंस्पेक्टरों के साथ सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पूरा करने में जुटे हुए हैं। इसी के तहत सभी अखबारों को नोटिस भी सर्व कर दिए गए हैं। एक निजी बातचीत में उन्होंने भी माना है कि दैनिक भास्कर कर्मचारियों को अन्य अखबारों की तुलना में बहुत कम सेलरी मिलती है। मैनेजमेंट उनसे बेहिसाब, अनियत समय तक काम लेता है और बदले में इतना भी नहीं देता कि कर्मचारी नींद भर सो सकें। एएलसी तो ऐसे पीडि़त, सताए-दबाए गए कर्मचारियों से मिलने के लिए तैयार बैठे हैं जो उनसे मिलें और अपनी समस्याओं-दिक्कतों से उन्हें अवगत कराएं।
एएलसी ने चंडीगढ़ से प्रकाशित होने वाले सभी अखबारों के कर्मचारियों का आह्वान कर रखा है कि वे उनसे मिलें और अपनी सेलरी के ब्योरे के साथ अपनी समस्याओं का लेखा-जोखा भी उन्हें सौंपें। अब जिम्मेदारी तो प्रिंट मीडिया कर्मचारी मंडली की बनती है कि वह एएलसी या श्रमायुक्त के ऑफिस में नमूदार हो, पहुंचे और अपनी तकलीफों का पुलिंदा वहां प्रस्तुत करे। या फिर अगर कोई लेबर अफसर अखबार के ऑफिस में पहुंचता है तो उसके सामने अपना दर्द लिखित-जुबानी बयां करे। वे, खासकर भास्कर के कर्मचारी बताएं कि भास्कर मैनेजमेंट ने जिन फार्मों पर उनसे साइन कराए हैं वे उन्होंने स्वेच्छा से नहीं बल्कि मजबूरी में किए हैं। उनसे साइन जबरिया कराए गए हैं। वैसे भी, ऐसे किसी भी फार्म पर साइन कराना वैध नहीं है। ऐसा कराना अनैतिक है ही अवैध-गैर कानूनी है। वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट एवं वेजेज एक्ट में साफ लिखा है कि मैनेजमेंट की यह करतूत-कृत्य पूरी तरह अवैध है। कर्मचारियों को इस तथ्य से बा-खबर होकर श्रम अफसरों के सामने खुलकर बोलने की जरूरत है तभी उन्हें मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ मिलेगा।
एएलसी मानते हैं कि वेज बोर्ड के फायदे पाने के लिए कर्मचारियों को बोलना तो पड़ेगा ही। हां, यह जरूर है कि वे मनबढ़, खूंखार दुर्दांत, ढींठ, बदमाश मालिकों की तरह कई बार खुलकर सामने नहीं आ सकते, लेकिन बच-बचाकर, छिप-छिपाकर अपनी बात, अपनी समस्या, अपना संकट, अपनी पीड़ा श्रम अधिकारियों तक तो पहुंचा सकते हैं। फिर उसे माननीय सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा दिया जाएगा। एएलसी बातचीत में मेरी ओर इशारा करते हुए कहते हैं– सब लोग आप जैसे नहीं हो सकते। इस रीजन में आप अकेले हैं जिन्होंने दैनिक भास्कर चेयरमैन पर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का केस कर रखा है। इसके अलावा इंडियन एक्सप्रेस चंडीगढ़ कर्मचारी यूनियन ही है जिसने केस कर रखा है।
पिछले दिनों हरियाणा में कई स्थानों पर लेबर कमिश्नर की अगुआई में श्रम अफसरों ने दैनिक भास्कर कार्यालयों में पहुंचकर कर्मचारियों एवं मैनेजमेंट के लोगों से मजीठिया क्रियान्वयन के बारे में जानकारी मांगी। ऐसे में मैनेजमेंट के बंदों ने वही कर्मचारियों के साइन वाले फार्म पेश कर दिए। लेकिन इन फार्मों को लेबर अफसरों ने अवैध, गैर कानूनी करार दिया। ऐसा करके मैनेजमेंट सरेआम दिखा रही है कि वह मजीठिया नहीं देगी। वह यह दिखा रही है कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश उसके ठेंगे पर। इस स्थिति में कर्मचारियों को कानूनी लड़ाई खुलकर लडऩी होगी तभी उन्हें अपना हक मिलने के आसार बनेंगे। साथ ही मालिकों-मैनेजमेंट को उनके किए की सजा भी दिलवा पाएंगे। इसलिए कर्मचारी-कामगार मंडली खुलकर, एकजुट होकर बोलो और पूरी ताकत से अपने हक के लिए लड़ो।
लेखक-पत्रकार भूपेंद्र प्रतिबद्ध से संपर्क : [email protected], 9417556066
आनंद शर्मा, शिमला।
July 5, 2015 at 11:21 am
अखबारों के मालिक अकसर अपने स्टाफ से बिना तारीख के त्यागपत्र पर भी हस्ताक्षर करा लेते है, कुल जगह दूसरे फार्मों पर हस्ताक्षर कराए जाते हैं। लेकिन इसमें किसी को भी घबराने की जरूरत नहीं। ऐसे दस्तावेज अदालत में कहीं भी नहीं ठहरते। पत्रकारों को निर्भीक होकर लड़ाई लड़नी चाहिए।