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मध्य प्रदेश

माखनलाल विवि का विवाद खत्म होने पर वरिष्ठ पत्रकार मुकेश ने क्या लिखा, पढ़ें


Mukesh Kumar : ये बड़ी राहत की बात है कि माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में चल रहे एक निर्रथक विवाद का समाधान हो गया है। माफ़ी माँगने के बाद छात्र-छात्राओं का निष्कासन रद्द करके विवि प्रशासन ने बिल्कुल सही निर्णय लिया है।

हम सभी पत्रकार एवं शिक्षकगण किसी भी छात्र-छात्रा का अहित नहीं चाहते थे, लेकिन शायद परिस्थितियाँ ऐसी बन गई होंगी जिनमें प्रारंभ में ही समस्या का निराकरण संभव नहीं हो पाया। बहरहाल, देर आयद दुरुस्त आयद। छात्र-छात्राएं अब अपना ध्यान परीक्षाओं पर केंद्रित कर सकेंगे। उन्हें ढेर सारी शुभकामनाएं।

अब विव प्रशासन से अपेक्षा यही है कि वह मेरे जैसे प्रोफेसर के सम्मान की रक्षा के लिए भी समुचित क़दम उठाएगा। निराधार आरोपों से मेरी प्रतिष्ठा और छवि को नुकसान पहुँचा है। चरित्र हनन के इस अभियान से मैं बुरी तरह आहत हूँ। पैंतीस वर्षों के पत्रकारीय जीवन में जातिवाद संबंधी आरोप मुझ पर कभी नहीं लगा। ऐसे लाँछन की तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकता। मेरा पूरा चिंतन और लेखन समता एवं न्याय के पक्ष में रहा है। जिन हज़ारों लोगों ने मेरे साथ काम किया है, वे इसकी गवाही दे सकते हैं। मीडिया के तमाम प्रतिष्ठित लोगों से मेरे बारे में जानकारी इकट्ठी की जा सकती है। मेरी लिखी किताबें और पोस्ट देखे जा सकते हैं।

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मैं अपने पत्रकार मित्रों से भी उम्मीद रखता हूँ कि वे अपने स्तर पर आरोपों की जाँच करेंगे और एकतरफा रिपोर्टिंग या टिप्पणियों में उनसे जो चूक हुई है, उसे दुरुस्त करेंगे। आख़िर मैं भी उनकी बिरादरी का हूँ और मेरे भी सम्मान की रक्षा करना उनका दायित्व बनता है।

यहां बता दूं, शिक्षण में जाने का मतलब अपने विचारों से समझौता करना नहीं है। हम लोग पत्रकारिता के शिक्षक हैं और बच्चों को यही सिखाते हैं कि किसी भी तरह की सेंसरशिप बर्दाश्त नहीं करना है। हाँ, आचरण संहिता का पालन ज़रूर किया जाना चाहिए और मैं ये हमेशा से करता रहा हूँ।

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Rajesh Badal : अच्छी सूचना है कि माखनलाल चतुर्वेदी विश्व विद्यालय के सभी निष्कासित छात्रों को वापस बुला लिया गया है । परिसर को राजनीति से मुक्त होना चाहिए । अब अच्छे पत्रकार तैयार करने पर यूनिवर्सिटी ध्यान देती है तो यह बेहतर होगा ।

अब शिक्षकों का मामला भी प्राथमिकता पर निपटना चाहिए । शिक्षकों को भी ध्यान देना चाहिए कि उनकी किसी टिप्पणी से कोई आहत न हो । छात्रों की तुलना में सोशल मीडिया पर उनके कथन महत्वपूर्ण इसलिए भी होते हैं क्योंकि वे बौद्धिक प्रतिनिधित्व करते हैं । अगर उनके लिए यह केवल रोज़गार का जरिया है तो उन्हें ख़ास तौर पर यूनिवर्सिटी की चिंता करनी चाहिए।

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पत्रकार द्वय मुकेश कुमार और राजेश बादल की एफबी वॉल से.

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