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सुख-दुख

एक मीडिया हाउस पर केस करने के लिए भड़ास को चंदा चाहिए

यशवंत सिंह-

हमारे एक वकील की लापरवाही के कारण एक हरामखोर जज ने बिना वजह भड़ास के खिलाफ फैसला सुना दिया. हालांकि इस फैसले से किसी किस्म का कोई नुकसान नहीं है लेकिन बिना वजह केस हार जाना पचता नहीं. अच्छा खासा केस था. सब कुछ अपने फेवर में. मुकदमा एक बड़े मीडिया हाउस ने किया था. वे बस इस गुमान में मुकदमा कर गए थे कि देखो हम कितने बड़े लोग और तुम छोटे लोग हमारे खिलाफ छापता है…. बस इसी अहंकार में केस कर दिया था मीडिया हाउस ने.

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मीडिया हाउस के पास वकीलों की फौज थी. सुना है मीडिया हाउस का एक वकील अब जज भी बन गया है. तो इस मीडिया हाउस के केस को हम लोग बढ़िया से लड़ रहे थे. लेकिन हमारे एक वकील साहब ने केस का फालोअप करना छोड़ दिया. हाजिर होना छोड़ दिया. साथ ही हम लोगों को केस की तारीख व कोर्ट नंबर भी नहीं बताए. इस तरह हाजिर न होने के कारण केस का फैसला जज ने मीडिया हाउस के पक्ष में कर दिया.

अब हम लोग इस केस को हाईकोर्ट में चैलेंज करना चाहते हैं. फेसबुक के माध्यम से एक वकील साहब से परिचय हुआ. पति-पत्नी दोनों वकील हैं. फीस वगैरह नहीं लेंगे हमसे. पर लोवर कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट में चैलेंज करने के लिए जो केस वो दायर कर रहे हैं, उसमें स्टैंप आफ पावर टाइप की कोई चीज इक्कीस-बाइस हजार रुपये की लग रही है. उनको ये पैसे देने हैं.

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जब उन्होंने ये पैसे मांगे तो मुझे लगा कि यार कहां फंस गए. खामखा इक्कीस बाइस हजार रुपये जायेंगे. कंगाली में आटा गीला. मैं तो सोचा था मुफ्त में मुकदमा हो जाएगा. पर यहां तो ठीकठाक पैसे लग रहे हैं. और… क्या हुआ जो हार गया… किसी किस्म का कोई नुकसान थोड़े न हो रहा था… न आर्थिक नुकसान था और न जेल जाना था… सो, चुप्पी मार कर बैठ गया होता… खामखा खुजली हो गई इस सड़े गले भ्रष्ट सिस्टम से पंगा लेने की…

पर दिल है कि मानता नहीं… ये ठीक है कि मेरा मन दुनियादारी से काफी उपर उठ चुका है. सही गलत के पारंपरिक और दुनियावी परिभाषाएं बेकार सी लगने लगी हैं… पर ये भी सत्य है कि भड़ास को अगर चलाना है तो तेवर भड़ासी वाले रखने होंगे… जिगर में आग सुलगती रहनी चाहिए…

ऐसे में रास्ता एक ही था. जंता के पास चलो. अपने पाठकों से मांगो. बहुत पहले ये सूत्र सीखा था कि जब कभी समस्याग्रस्त हो जाओ तो उस समस्या को लेकर जनता के बीच चले जाओ.. पब्लिक डोमेन में उस समस्या का हल मांगो… हो सकता है कुछ लोग हंसें, कुछ लोग मजाक उड़ाएं… पर कुछ लोग ऐसे जरूर मिलेंगे जो पूरे दिल से समस्या को समझेंगे और उपाय सुझाएंगे, जरूरी मदद देंगे….

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तो मुझे सबसे पहले ये पता करना है कि क्या लोवर कोर्ट में हारे हुए केस को अगर हाईकोर्ट में चैलेंज करना है तो उसमें इक्कीस बाइस हजार रुपये के स्टैंप आफ पावर लगते हैं? जो केस हारा हूं और जिस हार को चैलेंज कर रहा हूं, वह मानहानि से जुड़ा हुआ है.

सेकेंड, अगर इतने रुपये लगेंगे तो मैं एक पैसे न दूंगा. ये पैसे भड़ास के पाठक दें. चौदह साल से भड़ास का संचालन इसके पाठक ही कर रहे हैं. सौ रुपये से लेकर दस लाख रुपये तक भड़ास को इसके पाठकों ने दिए. इसी से भड़ास चलता है. मेरा खर्च मेरे परिवार का खर्च भड़ास के खर्च में शामिल है. ऐसा इसलिए क्योंकि मैं होलटाइमर भड़ासी हूं. भड़ास के अलावा कुछ नहीं करता. लोग अब भी पूछते हैं कि भड़ास के अलावा क्या करते हैं. उनका आशय होता है कि घर परिवार का खर्च कैसे चलता है. मैं उनसे कहता हूं कि एक तो मेरे व मेरे परिवार के खर्च बहुत कम हैं. सब मेरी ही तरह फक्कड़ हैं, मस्तमौला हैं.

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दूसरे, भड़ास का काम कोई चलताऊ, खाली टाइम पास वाला काम नहीं है. ये मेरा पैशन है और मेरा प्रोफेशनल भी है. इसलिए भड़ास को मैं बहुत संजीदगी से संचालित करता हूं. वजह ये कि मीडिया हाउसों की पोल खोलने का काम बहुत नाजुक होता है. थोड़े से हेरफेर से बवाल हो जाता है. थोड़ से उंचनीच से फोन घनघनाने लगते हैं. इसलिए भड़ास को चलाना कोई छोटा मोटा काम नहीं है. ये फुलटाइम वर्क है. जब भड़ास अपडेट नहीं कर रहा होता हूं तो भी भड़ास के ही काम कर रहा होता हूं, लोगों के फोन उठाना, लोगों को रिप्लाई करना, सोशल मीडिया पर मीडिया से जुड़ी खबरें बहसें तलाशना…. तो, मैं भड़ास का होलटाइमर हूं. इसलिए चौबीस कैरेट का शुद्ध भड़ासी हूं…

सो, हे जंता, हे पाठक, पहले की तरह इस बार भी मदद करो. बात सिर्फ इस इक्कीस बाइस हजार रुपये की नहीं है. बात इस वर्ष 2021 के खर्चे की भी है. सो, ये सोच कर मत बैठिएगा कि हम न देंगे तो कोई न कोई दे ही देगा. आप को भी जरूर देना है. सौ रुपये दें लेकिन दें. सिर्फ मुंह से भड़ास का शुभचिंतक बने रहना कोई खास काम नहीं है. असली मददगार वो होता है जो संचालन के दुखसुख में हिस्सेदार होता है. भड़ास बहुतों के काम आता है लेकिन भड़ास के काम बहुत कम लोग आते हैं. वैसे भी हिंदी पट्टी दरिद्र पट्टी उर्फ गोबर पट्टी कहा जाता है. यहां लोग देना नहीं जानते हैं, बस दूसरों से कैसे खुद का काम निकलवा लिया जाए, दूसरों को कैसे बेवकूफ बनाकर अपना उल्लू सीधा कर लिया जाए, ये सब परिपाटी चली आ रही है.

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इसलिए मैं बहुत ज्यादा किसी से उम्मीद नहीं करता. अपने हिस्से का फर्ज, सक्रियता निभा लेता हूं… बाकी सब कुछ उपर वाले की मर्जी पर छोड़ देता हूं… तत्काल में जीने वाला शख्स हमेशा आनंदित ही रहता है.. मेरा कोई मकसद नहीं है… मेरा कोई प्रोजेक्ट नहीं है… मैंने अपने सारे मकसद और सारे प्रोजेक्ट उपर वाले में निहित कर दिए हैं… कुछ न होगा तो भी अच्छा होगा… होगा तो जो होगा वो अच्छा होगा… यही भावना मस्त रखती है.

इसलिए इच्छा हो तो चंदा दें… न इच्छा हो तो न दें… अपना काम था एक बार अपनी समस्या को पब्लिक डोमेन में ला देना… अब समस्या जंता की हुई… राम राम!

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चंदा गूगलपे (9999330099) या पेटीएम (9999330099) या डायरेक्ट बैंक एकाउंट में ट्रांसफर कर दे सकते हैं.

बैंक एकाउंट का लिंक यहां पा सकते है, क्लिक करें- Bhadas chanda

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-यशवंत, फाउंडर-एडिटर, भड़ास4मीडिया डॉट कॉम

संपर्क- [email protected]


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2 Comments

2 Comments

  1. अरुण श्रीवास्तव

    January 22, 2021 at 6:45 pm

    अफसोस न नौकरी है और न ही पेंशन। आय का साधन LPG कनेक्शन पर आने वाली सब्सिडी है। पहले दो सौ के आसपास थी। दिसम्बर 2020 में 17 रुपये आयी है। वही दे सकते हैं।

  2. jasmine

    January 24, 2021 at 1:11 pm

    yashwant ji salute. aap adbhut shakhs ho. bhadas ab ek bada brand hai. ye ham sab media walo ki aawaz hai. aap ka sahaj saral andaz aapko sabse connect karta hai. ummeed hai aap es jang mei bhi jitenge. aapko aur aapki bhadasi team ko dil se salaam!

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