लोकसभा चुनाव से पहले खुला D-6 टीवी बंद हो गया। CNEB में ताला लगे 2 साल हो गए (अनुरंजन झा और राहुल देव जैसे बड़े-बड़े पत्रकार चैनल में थे)। सुदर्शन टीवी में लात-जूता हो गया। APN NEWS के लॉन्च होने से पहले ही एंकर के शोषण की खबर आई और NEWS30 का तो राम ही मालिक है। इसकी लॉन्चिंग डेट चार बार टल चुकी है, पता नहीं लॉन्च हो भी पाएगा या नहीं। और भी जो B या C ग्रेड चैनल चल रहे हैं या कहें रेंग रहे हैं उनमें कहीं कॉस्ट कटिंग, कहीं बॉस की बदली, कहीं नौकरी जाने का डर….
अब सवाल आखिर ये मैं क्यों लिख रहा हूं?
हिंदी टीवी पत्रकारिता में 10 नेशनल चैनल हैं- सबको आजतक, स्टार, एनडीटीवी जाना है। टीवी पर आना है। सीटें सीमित हैं। नये चैनल जो खुल रहे हैं, उनका ज़िक्र मैं ऊपर कर चुका हूं। सिर्फ़ काम ही क़ाबिलीयत की कसौटी नहीं है। ऐसे में बगैर किसी विकल्प के कच्ची उम्र में मीडिया में काम करना मेरी समझ में बेवकूफी है।
नये बच्चे ग्लैमर की चाह में टीवी में आ रहे हैं। कई तो मेरे जानकार हैं जो 3 साल से सिर्फ़ पैकेजिंग (टीवी का एक काम) ही करा रहे हैं। लेकिन अब परेशान हैं। मौका भी नहीं मिला। तनख्वाह कब बढ़ेगी, पता नहीं। बढ़ेगी तो मालिक की मेहरबानी से ही बढ़ेगी। मालिक कब मेहरबान होगा, ये तो खुदा जानता है या सिर्फ़ मालिक। मतलब काम करो और करते रहो। जो 35+ हैं उनकी मजबूरी है, काम करना है क्योंकि विकल्प नहीं है। लेकिन जो कम उम्र के नये पत्रकार हैं वो समझ नहीं रहे। बस काम चाहते हैं, कितना भी मिले। लेकिन एक दौर ऐसा आता है जब पैशन से ज्यादा पैसा मायने रखने लगता है।
देश भर से हर साल 65,000 बच्चे मॉस कम्युनिकेशन करके निकलते हैं। सबको या तो सिर्फ एंकर बनना होता है या फिर रिपोर्टर। कोई कुछ और बनना नहीं चाहता। मजबूरी भी है, बाहर के लोगों के लिए मीडिया मतलब है ‘टीवी पर कब आते हो?’ और अगर आपने दलील दी कि अरे वो टीवी पर जो बोलते हैं वो मैं लिखकर देता हूं तो सामने वाला ऐसा मुंह बनाएगा कि आपने ये बोल कर पाप कर दिया। पापा को भी अपने बच्चे को टीवी पर देखना है। ऐसे में शुरुआती दौर से ही करियर से ज्यादा सामाजिक दबाव रहता है।
मेरी जितनी सोच है उससे मैं कह सकता हूं कि अगर ये ही हाल रहा, तो आने वाले सालों में टीवी पत्रकारिता के हालात बहुत ही खतरनाक होने जा रहे हैं।
ये लेखक दीपांशु दुबे के निजी विचार हैं। संपर्कः [email protected]