पत्रकारों का वर्गीकरण करना पड़ा महंगा… भाजपा की उत्तर प्रदेश ईकाई में मीडियाकर्मियों को ‘बड़े’ और ‘छोटों’ में बांटकर भेदभाव करने वाले नेताओं ने प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह की झांसी में भद्द पिटवा दी. प्रदेश अध्यक्ष को कौन ‘बड़ा’ पत्रकार और कौन ‘छोटा’ पत्रकार बताकर समझाने वाले मीडिया प्रभारियों की कारस्तानी का ही नतीजा था कि प्रदेश अध्यक्ष को मीडियाकर्मियों के सामने गिड़गिड़ाना पड़ा. माफी मांगनी पड़ी, लेकिन पत्रकार नहीं पिघले. जमकर हंगामा हुआ सो अलग.
दरअसल, भाजपा में नेता हों या मीडिया संभालने वाले प्रभारी, उनके लिये बड़ा पत्रकार वह होता है, जो बड़े अखबार या चैनल में काम करता है, चाहे उसे कुछ लिखना-पढ़ना ना आता हो तब भी. बाकी सब छोटे पत्रकार होते हैं, चाहे वह अच्छा लिखते-पढ़ते हों तब भी. और जो छोटा पत्रकार है, उसके साथ व्यवहार भी छोटा किया जाता है. बड़े पत्रकारों की तो खैर पूछना ही क्या! अंत्योदय की बात करने वाली पार्टी का यही असली चाल है और चरित्र भी.
बहरहाल, शनिवार को झांसी में भाजपा अध्यक्ष ‘कांग्रेस सिंह’ यानी स्वतंत्रदेव सिंह की प्रेस कांफ्रेंस थी. भाजपाइयों की भाषा में कहें तो इस प्रेस कांफ्रेंस में ‘बड़े’ और ‘छोटे’ दोनों तरह के पत्रकार जमा हुये थे. लखनऊ में अपने मीडिया प्रभारियों के निर्देशन में बड़ा-छोटा पत्रकार का चेहरा तलाशने तथा वर्गीकरण वाले ‘कांग्रेस सिंह’ के मुंह से झांसी में भी निकल गया, ”जो बड़े पत्रकार हैं रूक जायेंगे. जो जवाब तलब करें, बैठा हूं अभी.”
झांसी में ‘कांग्रेस सिंह’ के मुंह से इतना निकला ही था कि ‘भाजपा’ की भद्द पिटनी शुरू हो गई. वहां मौजूद ‘छोटे’ पत्रकारों यूपी भाजपा के ‘बड़े’ नेता की ऐसी-तैसी करनी शुरू कर दी. भाजपा के ‘बड़े’ नेता हाथ जोड़कर ‘छोटे’ पत्रकारों के सामने गिड़गिड़ाने लगे. माफी मांगने लगे, सफाई देने लगे, लेकिन ‘छोटे’ पत्रकारों की सेहत पर ‘बड़े’ नेता के गिड़गिड़ाने-माफी मांगने का कोई असर नहीं हुआ. वे प्रेस कांफ्रेंस का बायॅकाट करके चले गये.
इस हादसे से यह भी तय है कि मन में ‘टीस’ लेकर गये झांसी के ‘छोटे’ पत्रकार, जब भी मौका मिलेगा तब केवल स्वतंत्रदेव सिंह को नहीं बल्कि भाजपा को भी यह ‘टीस’ सूद समेत वापस करेंगे. गिने चुने ‘बड़े’ पत्रकार जितना भाजपा का माहौल बनायेंगे, उससे ज्याद ‘छोटे’ पत्रकार इस माहौल को खराब करेंगे. भाजपा मुख्यालय पर भी इस तरह की बड़े-छोटे पत्रकारों वाली कई घटनायें घट चुकी हैं. एक घटना तो पूर्व मुख्यमंत्री एवं राजस्थान के राज्यपाल रहे कल्याण सिंह के ज्वाइनिंग के समय घटी थी.
हुआ यूं कि कल्याण सिंह जब भाजपा की सदस्यता लेने कार्यालय पहुंचे तो तमाम पत्रकार उनसे भाजपा में ज्वाइनिंग को लेकर बात करना चाहते थे. ‘बड़े-छोटे’ सभी तरह के पत्रकार मौजूद थे, लेकिन मीडिया प्रभारी मनीष दीक्षित, जिनकी पहचान ही ‘बड़े’ और ‘छोटे’ पत्रकारों के वर्गीकरण विशेषज्ञ की है, धीरे से अपने चुनिंदा और बड़े बैनर-चैनल के पत्रकारों को एक सभागार बैठा दिया तथा कल्याण सिंह को लेने चले गये.
इस बीच, जब सह मीडिया प्रभारी आलोक अवस्थी को जब जानकारी हुई कि कल्याण सिंह पत्रकारों से बात करेंगे तो उन्होंने ‘छोटे’ पत्रकारों को भी इसकी जानकारी दे दी. कई ‘छोटे’ पत्रकार भी जुट गये, जो ‘बड़े’ पत्रकारों को नागवार लगा. इसको लेकर मनीष दीक्षित ने आलोक अवस्थी से जमकर बहस की, क्योंकि वह अपने ‘घराने’ के चुने हुए ‘बड़े’ पत्रकारों से ही कल्याण सिंह की बात कराना चाहते थे, लेकिन आलोक अवस्थी के चलते ‘छोटे’ पत्रकार भी पहुंच गये थे.
अब यह भी तय है कि ‘कांग्रेस सिंह’ ने ‘यूपी भाजपा’ की मीडिया टीम नहीं बदली तो उन्हें इसी ‘बड़े’ और ‘छोटे’ पत्रकारों के वर्गीकरण और भेदभाव के चलते आये दिन पत्रकारों से माफी मांगनी पड़ेगी और गिड़गिड़ाना पड़ेगा. पार्टी का नुकसान होगा वो अलग. खबर है कि वर्गीकरण विशेषज्ञ मीडिया प्रभारीजी कांग्रेस सिंह को ‘बड़े’ अखबारों और ‘बड़े’ चैनलों के कार्यालय ले जाकर मत्था टेकवा रहे हैं. इन्हें लग रहा है कि ‘बड़े’ संस्थानों और पत्रकारों के दरबार में माथा टेकने से पूरा संगठन मस्त चलेगा. वोट बरसने लगेंगे. चारो तरह खुशहाली पसर जायेगी.
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लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार अनिल सिंह की रिपोर्ट. संपर्क- 9451587800 / 9984920990