Connect with us

Hi, what are you looking for?

वेब-सिनेमा

‘मिर्जापुर-2’ फ्लॉप है!

-शुभंकर मिश्रा-

मिर्जापुर 2: निराश | Disappointed | 2/5

Advertisement. Scroll to continue reading.

मजे-मजे में सीज़न 1 देखना शुरू किए थे और अब मजबूरी में जैसे-तैसे सीज़न 2 ख़त्म किए हैं। ख़ैर सभी कलाकारों ने काम अच्छा किया पर कई कहानियां एक साथ चलने से ऐसा लगा कि ज्यादा अच्छा करने के चक्कर में ‘रायता’ बना दिया। सिरीज में बाहुबल के सामने सियासत ज्यादा हो गई। सबसे शानदार ‘मुन्ना त्रिपाठी’ और ‘छोटे-बड़े त्यागी’ लगे। Mirzapur2


-प्रकाश के रे-

Advertisement. Scroll to continue reading.

मिर्ज़ापुर -2
MirzapurAmazon
Amazon Prime Video
क्विक रिव्यू

  • एक्टिंग, डायलॉग और कैमरा (कलर समेत) पक्ष उम्दा
  • कहीं कहीं गॉडफ़ादर और कुछ सिसिलियन माफ़िया फ़िल्मों की बेकार नक़ल
  • लाइटिंग में गॉडफ़ादर की नक़ल से पहले गॉर्डन विलिस का इंटरव्यू तो पढ़ना था.
  • निर्देशकों/लेखकों को गैंगस्टर फ़िल्मों/ज़ॉनर के बारे में कुछ लेख आदि पढ़ना चाहिए ताकि किरदारों को बरतना ठीक से हो.
  • बैकग्राउंड म्यूज़िक औसत से भी नीचे है.
  • कहीं कहीं और कुछ किरदारों के मामले में बेमानी विस्तार है. यह नक़ल ठूँसने का असर लगता है.
  • ज़ुग्राफ़िया/लोकेशन का ध्यान ठीक से नहीं रखा गया है. ऐसे ज़ॉनर में यह पक्ष बेहद अहम होता है.
  • महिला किरदारों का बेहतर प्लेसमेंट करना था.
  • आख़िर में काहे इतना हड़बड़ा गए थे जी!

कुल मिलाकर औसत, पर मनोरंजक, लेकिन सीज़न-1 से कमतर
**1/2


-अतुल चौरसिया-

Advertisement. Scroll to continue reading.

मिर्ज़ापुर भाग दो की बहुत चर्चा है. इस बार लगभग पूरे पूर्वांचल और बिहार को समेट लिया है. भाग एक से पैदा हुई हिलोर और उससे आगे जाने का प्रेशर दूसरे हिस्से में साफ दिखाई देता है। पूर्वांचल में दो ज़िले कल्ट ज़िले हैं, एक बनारस जिसकी अपनी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और कर्मकांडी प्रतिष्ठा है। पूर्वांचल की गिरोहबंदी का एपिसेंटर भी बनारस है। कह सकते हैं, पूर्वांचल का प्रतिनिधि। दूसरा है आज़मगढ़ जिसकी मिर्ज़ापुर टाइप यानी जरायम की कहनियों में छवि और प्रतिष्ठा दुनिया भर में बहुत पहले से स्थापित है. मुंबई के अंडरवर्ल्ड में रंगरूटों, शार्प शूटरों से लेकर सरगनाओं तक की आपूर्ति इस जिले ने की है।

गॉडफादर का जो भारतीय संस्करण मुम्बई में विकसित हुआ उससे आज़मगढ़ का नाभिनाल संबंध रहा। जाहिरन मिर्जापुर का कल्ट रचने की कोशिश में इसे बनाने वालों ने सचेत तरीके से बनारस और आज़मगढ़ का जिक्र नहीं किया। यह उनकी मजबूरी भी थी कि जो वो रचना चाहते हैं उसमें कोई उससे ऊंचे पाए का गलती से भी दिख गया तो मकसद फेल हो जाएगा। लेकिन पूर्वांचल के नक्शे में माफिया गिरोहों कि कोई भी कहानी इन दो शहरों के बिना पूरी नहीं होती.

Advertisement. Scroll to continue reading.

10 की बजाय 8 एपिसोड में निपटने लायक ही मसाला था. गरज ये की तीसरे भाग का दरवाजा भी खोल दिया गया है। अगर आपको गॉडफादर की ही याद दिलाएं तो इसके भी 3 भाग आये। हर नया हिस्सा पिछले वाले से कमतर, दर्शकों में पहले जैसा चाव और आकर्षण पैदा कर पाने में नाकाम.


-विकास अग्रवाल-

Advertisement. Scroll to continue reading.

आप रोटी नमक के साथ खा सकते हैं, लेकिन खाली नमक के पानी के साथ गोलगप्पे नहीं खा सकते. और यही मिर्जापुर की समस्या है. कोई भी एपीसोड बीस मिनट का कहीं से भी काट दो, कोई फर्क नहीं पड़ेगा. मतलब कुछ है ही नहीं, सिवाय इसके कि पेट में जलन, आंतो में तूफान सा क्यों है. इस बकवास में हर आदमी परेशान सा क्यों है.

लेखक तो है ही नहीं, निर्देशक का ये हाल है कि आदमी इकट्ठा किए और कहा कि ये सीन है, कैमरा लगा दिया है, आदमी लोग गाली देंगे, लेडीज पंच मारेंगी, अपने से तैयारी कर लेना. ऐसा करना है कि दस मिनट का हिसाब बन जाए.

Advertisement. Scroll to continue reading.

एक कैमरा हैलीकॉप्टर में लगा कर लखनऊ, पटना, जौनपुर के शॉट ले लिए हैं और हर एपीसोड में चिपका देते हैं कि कि देखो कितना सानदार है. तुम्हारी चाची का उत्तर प्रदेश मारें.

और एक वो जो नवाचुद्दीन के बाद हिंदुस्तान के सबसे ओवर रेटेट एक्टर हैं पंकज फोटोस्टेट त्रिपाठी, वो हर रोल में एक ही जैसा अभिनय करते हैं, बाप का रोल है तो ये ही नहीं पता चलता कि बरेली की बरफी देख रहे हैं कि गुंजन सक्सेना देख रहे हैं कि मुन्ना तिरपाठी के बाप बने हैं, चूजापुर में. सब में एक जैसा फोटोस्टेट काम. गाली निकल रही है, मगर मम्मी ने भी आईडी बना ली है अब, तो कन्ट्रोल करना पड़ता है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

ब्राह्मण विरोधी वेब सीरीज है, ब्राह्मण युवकों को लगेगा कि उनका भोकाल टाइट हो रहा है, मगर चरित्र की हत्या की जा रही है. ऐसा ही चलता रहा तो इलेक्शन में कोई अन्य बिरादरी वोट नहीं देगी, चाहे मायावतीजी खुद आकर कहें. गुड्डू मुन्ना, हीरो विलेन दोनों ब्राह्मण हैं और दूनों लोग एम वाई समीकरण में सेंध लगाते दिखाए गए हैं. यादव जी मुख्यमंत्री की विधवा बेटी के साथ मुन्ना लग गया और मुसलिम लाला की बेटी गुड्डू को घुमा रही थी. आगे मुझसे देखा नहीं गया.

और एक वो जो आदमियों की दिव्या दत्ता हैं, दिव्येन्दु त्रिपाठी, जो अपने को अल पचीनो समझते हैं, जैसे दिव्या दत्ता खुद को मीना कुमारी समझती हैं, उनको चिठ्ठी भेजी जाए कि भैया एक्टिंग करो, एहसान न करो. पहले पार्ट में झिल गए थे, अबकी झिला दिए. आखिर में प्रोड्यूसर के तौर पर फरहान अख्तर और रीतेश सिधवानी का नाम आता है. वो लिखा देखकर मुझे इनके पति पत्नी जैसा होने का सा शक होता है. हालांकि ऐसा होना अब अपराध नहीं है, मगर ऐसा कहने से अगर फरहान और सिधवानी की आत्मा को चोट पहुँचती है तो मैं उनसे माफी चाहता हूँ.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement