जे सुशील-
मोदी नहीं तो कौन..
भाई इस समय तो मैं अजिंक्य रहाणे से भी काम चला सकता हूं या अनिल कपूर से भी.
पप्पू विल भी टू गुड.
बाय द वे अखबारों साइटों की मानें तो मोई जी कुछ कर रहे हैं चुपचाप.
भक्त सूत्रों से पता चला है कि मोइ जी कोरोना का कोई ऐसा इलाज खोज रहे हैं कि वो सिर्फ और सिर्फ सरकार के आलोचकों को हो और भक्तों को न हो.
थाली वाली हो गया है. अब भक्त चाहें तो गोबर का लेप कर के बाहर निकला करें ताकि कोरोना भी डरा रहे और पहचान भी उनकी हो जाए कि ये आ रहा सामने से भक्त. कोरोना भी डर ही जाएगा.
आप देखते जाइए. ये आदमी कुछ भयानक हरकत करने वाला है. मोई जी की चुप्पी तूफान से पहले की चुप्पी है.
राकेश कायस्थ-
इतिहास के अलग-अलग कालखंड में प्रधानमंत्री आये और गये।
कामयाबी के लिए उनकी तारीफ हुई, नाकामियों की आलोचना हुई।
प्रधानमंत्री सिद्धांतजीवी हुए, विश्वद्रष्टा हुए, स्वपनदर्शी हुए, अव्यवहारिक होने की हद तक नैतिकता के आग्रही हुए
प्रधानमंत्री शक्तिशाली हुए, निरंकुश हुए, डिक्टेटर हुए और बलिदानी भी हुए
प्रधानमंत्री लचीले, समझौपरस्त और पद लोलुप भी हुए
प्रधानमंत्री बला की हद तक स्वभामिनी, मध्यममार्गी और मितभाषी भी हुए
देश ने तरह-तरह के प्रधानमंत्री देखे
भारत को इस बात का यकीन था कि चाहे कुछ भी हो जाये
कोई नरभक्षी इस देश का प्रधानमंत्री नहीं हो सकता है।
अमीश राय-
तुम्हें आने वाली पीढियां एक संवेदनहीन आदमी से अधिक किसी भी रूप में याद नहीं रखेंगी।
तुम जीते जी अपने लिए ऐसी कालिख का निर्माण कर रहे हो जिसे सूर्य और चंद्रमा की रोशनी भी नहीं मिटा सकेगी।
आने वाला समाज बहुत प्यारा बनने वाला है और उस समाज में तुम्हारी हैसियत बस इतनी होगी कि लोग तुम्हारा नाम लेना भी गवारा नहीं समझेंगे।
अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-
इंग्लैंड- अमेरिका से भी तो कुछ सीखिए विश्व गुरु मोदी जी! इंग्लैंड ने दावा किया है कि अगस्त तक उसका देश कोरोना से मुक्त हो जाएगा. अभी कुछ दिनों पहले अमेरिका ने भी दावा किया था कि जुलाई तक उसके यहां भी कोरोना खत्म हो जाएगा. दोनों देशों ने ये दावे अपने- अपने यहां युद्धस्तर पर चल रहे वैक्सिनेशन ड्राइव के आधार पर किए हैं. अमेरिका, कनाडा जैसे देश तो अपने यहां 15 साल से कम उम्र के बच्चों को भी वैक्सिनेशन करवाने की मंजूरी दे चुके हैं.
जबकि दूसरी लहर से बुरी तरह तबाह हो चुके भारत में अभी यह कहा जा रहा है कि सितम्बर-अक्टूबर में कोरोना की तीसरी लहर भी आएगी. भारत का यह हाल इसलिए है क्योंकि यहां अभी नाममात्र के लिए वैक्सिनेशन हो पाया है. बड़ी तादाद में वयस्कों को पहली डोज तो किसी तरह लगा दी गई लेकिन दूसरी डोज कई जगहों पर न मिल पाने की खबरें आ रही हैं.
इसी तरह 18 बरस के ऊपर के लोगों के लिए वैक्सीन लगवाने का ऐलान तो कर दिया गया लेकिन वैक्सीन और उसका स्लॉट ढूंढ़ते रह जाओगे टाइप माहौल देश में पहले ही बन चुका है. रही बात बच्चों को लगने वाली वैक्सीन की तो एक्सपर्ट्स बार बार आगाह कर रहे हैं कि तीसरी लहर बच्चों के लिए खतरनाक होगी. मगर मोदी सरकार उसी तरह बेपरवाह बैठी है, जैसे दूसरी लहर की चेतावनी के वक्त बैठी थी.
बच्चों के वैक्सिनेशन प्रोग्राम पर सरकार की तरफ से किसी तैयारी या कार्यक्रम का अभी तक कोई ऐलान ही नहीं हुआ है. ऐसा लगता है कि मानों देश के नौनिहालों, 18 साल से ऊपर लोगों और वयस्कों के वैक्सिनेशन की क्षमता भारत सरकार के पास है ही नहीं.
अमेरिका, इंग्लैंड और कनाडा की तरह हम अभी जुलाई- अगस्त तक भले ही देश से कोरोना न भगा पाएं लेकिन अगले एक- डेढ़ साल का लक्ष्य बनाकर कोई कार्यक्रम तो हमें देश में लाना ही होगा. वरना तीसरी लहर हमारे देश को फिर एक बार नए और इससे भी गहरे संकट में डाल सकती है, इसके लिए भी सबको तैयार रहना चाहिए.
बोधिसत्व-
भंडुओं का भगवान!
पूरा मुल्क मसान हुआ है
चिता कब्र घमसान हुआ है
औघड़ का सामान हुआ है
जोकर कोई प्रधान हुआ है!
गलत कहूं तो रोको भाई।
हाथ उठा के टोको भाई।
अपने लिए विमान ले रहा
जनता को शमशान दे रहा
लोगों के दुख पर हंसता है
मालिक ये हैवान हुआ है
गलत कहूं तो रोको भाई।
हाथ उठा के टोको भाई।
अच्छे दिन का दे के छौंका
खोज रहा विपदा में मौका
मार रहा है बिना दवाई
मौन मूक है निपट कसाई
भंडुओं का भगवान हुआ है
गलत कहूं तो रोको भाई।
हाथ उठा के टोको भाई।
काज नहीं है काम नहीं है
हाहा है आराम नहीं है
अपने सुख का महल बनाए
जनता को पैदल चलवाए
कायर एक विधान हुआ है
गलत कहूं तो रोको भाई।
हाथ उठा के टोको भाई।
बोधिसत्व, मुंबई वाया वाराणसी