अरविंद कुमार सिंह-
क्योकि वे नेताजी जो ठहरे…. अपने राजनीतिक विरोधियों से भी वे अच्छे रिश्ते रखते थे। संघी नेता उनको मौलाना मुलायम कहते थे, पांचजन्य में यही नाम छपा भी था। लेकिन संघ प्रमुख एक बार उनसे मिलने भी गए थे। उनको सघ नेताओं के साथ मंच साझा करने में परहेज नहीं था। उनके प्रमुख सचिव रहे व्यक्ति को मोदीजी ने प्रधानमंत्री कार्यालय में बहुत अहम पद पर रखा। लेकिन राजनीति में उनकी अलग लाइन थी।
इन बातों से परे बात मीडिया की करें तो मैं गाहे बगाहे उन पर चोट करता रहता था तो उनकी नाराजगी होना स्वाभाविक ही थी। लेकिन कभी भी उनके साथ निजी रिश्तों में खटास आयी हो ऐसा आभास मैने नहीं किया।
अमर उजाला में 1995 में उन पर लिखा एक लेख साझा कर रहा हूं, जिसे पढ कर वे काफी व्यथित हुए थे। मुझसे भी नाराजगी व्यक्त की थी। लेकिन अगले ही साल जब रक्षा मंत्री बने तो इसे और ऐसे बहुत से लिखने को भूल गए।
जब वे 1996 में रक्षा मंत्री बने तो उनके साथ कितनी जगह कितनी यात्राएं मैने की होंगी, इसका मुझे भी अंदाज नहीं है। कई दर्जन होंगी। त्रिपुरा और रंगिया से लेकर बंगाल की खाड़ी और कश्मीर तक।
कोरोना के पहले वे एक दिन मुझे राज्य सभा में सभापति के कमरे के सामने मिले तो मेरा हाथ पकड़ कर कहा कि मैं भ्रमित हो गया हूं, मुझे बताओ कि अपने कमरे तक जाने के लिए किधर से जाऊं। वे दूसरे रास्ते से निकल कर गैलरी में आ गए थे और स्टाफ भीतर ही था। मैने उनका हाथ पकड़ कर गप शप करते ले जा रहा था कि उन्होंने कहा कि अब जाओ मुझे रास्ता समझ में आ गया है।
उनकी राजनीति कुछ अलग तरीके की थी। दोस्ती करते करते दुश्मन बन जाते थे और दुश्मनी करते करते दोस्त। लेकिन गांव गरीब और देहाती लोगों के हितैषी थे। मैने ऐसा मेहनती नेता नहीं देखा। बहुत सी यादें हैं, बहुत कुछ लिखा है।
फिलहाल ऊपर नेताजी पर एक रिपोर्ट को साझा कर रहा हूं, इस टिप्पणी के साथ कि आज ऐसी ही किसी सत्तादल के नेता पर लिखूं तो भविष्य में वह मुझसे कोई बात नहीं करेगा और मौका पाकर मेरा नुकसान ही कर देगा।