उत्तर प्रदेश में आयुर्वेद दवाओं के नाम पर जबर्दस्त खेल चल रहा है. यहां आयुर्वेदिक हाई पॉवर मूसली के नाम पर एलोपैथिक वियाग्रा बेचा जा रहा है. हाल ही में आयुर्वेद निदेशालय को 32 दवाओं में एलोपैथ कंपाउंड मिला है जिसके बाद कई दवाओं को बैन किया गया है.
आयुर्वेद निदेशालय की तरफ से इस सिलसिले में एक पत्र जारी किया गया है. जिसमें 22 दवाओं में एलोपैथ कंपाउंड तो 10 दवाएं पूरी तरह से नकली निकली हैं.
यानी आपको मर्ज कुछ, दर्द किसी और का और दवा सेक्स करने की खिला दी जा रही है. इससे सावधान रहिए. बाकी नीचे यह एनबीटी में प्रकाशित रिपोर्ट पढ़ें..
प्रदीप चौधरी-
ऐसी खबरें खूब आती रहतीं हैं, दस दिन बाद सब भुला दिया जाता है, और भारत में किसी नेगेटिव रिपोर्ट को पॉजिटिव करवा लेना बहुत ही आसान काम है।
खैर! एक बात समझिये आयुर्वेद में दो तरह की दवाएं आती हैं, पहला , जिसे हम क्लासिकल कहतें हैं, उसका रेफरेंस किसी ना किसी आयुर्वेद की ग्रंथ में मिल जायेगा। अधिकतर दवा वाले पैकेट पर रेफरेंस लिखते हैं। इसे कोई भी जानकर खुद भी बना सकता है, इनका पेटेंट नहीं होता है।
दूसरा आता है पेटेंट, इसे कंपनी वाले अपने हिसाब से डिजाइन करते हैं, पर खेल अधिकतर इसी में होता है, अब ऐसा कोई हर्ब है नहीं जो पेटेंट हो सकता हो, तो कोई भी फॉर्मूला कॉपी कर सकता है, इसलिए कुछ लिखती हैं और बहुत कुछ छिपा लेतीं हैं।
अब आती हैं अधिकतर नयी कंपनियां जिन्हे खुद को स्थापित करना है, और मॉडर्न के डायग्नोसिस के अनुसार दवा बनाना है, और तुरंत रिजल्ट देना है, अब शुरू होता है मिलावट का खेल। इसमें सबसे बड़ा ग्राहक दो है, दर्द और सेक्स। सेक्स की समस्या को नॉर्मल समस्या की तरह ही देखिये,डॉ से मिलिए, समय दीजिए आराम से ठीक होगा,जबरदस्ती मत खाइये कुछ भी।
आप ऊपर की दवाओं को देखेंगे तो इन्ही दोनों के लिए ही मिलेंगी। आदमी को लगता है, मॉडर्न की दवाएं नुकसान करतीं हैं, तो ये खा लेते हैं, उन्हे पता नहीं होता वो क्या खा रहे हैं।
दिन भर इस दर्द से दो – चार होना पड़ता है,पेटेंट बनाने वाली कंपनियों के MR आते हैं, बुरा लगता है उन बेचारों को भी नहीं पता होता,क्या बेच रहे हैं, पर रोजगार के लिए करते ही हैं, को रोज मना करना पड़ता है, नहीं लिखूँगा, मत मिलो मुझसे। डॉ तक नहीं जानते इसमें क्या मिला है।
अगर सच में आयुर्वेद खाना है, तो उस डॉ के पास जाइये, जो आयुर्वेद के अनुसार आपको देखे, उसी के अनुसार दवा दे, दर्द निवारक नामक बहुत कम चिड़ियाँ उड़ती हैं आयुर्वेद में।
एक जरूरी बात डॉ को टेस्टी दवा देने के लिए प्रेशर ना डाले। बीमार व्यक्ति को धैर्यवान होना ही चाहिए, नहीं तो नुकसान आपका ही है।