सूरत / अहमदाबाद : जाने माने गांधीवादी और गुजरात विद्यापीठ के पूर्व कुलाधिपति नारायण देसाई का सूरत में आज एक निजी अस्पताल में निधन हो गया। नब्बे वर्षीय देसाई महात्मा गांधी की डायरी लिखने वाले महादेव देसाई के पुत्र थे। उनके पीछे उनकी बेटी संघमित्रा और बेटे नचिकेता एवं अफलातून हैं।
75 से अधिक वर्षों के सामाजिक जीवन में उन्हें महात्मा गांधी, विनोबा भावे और लोकनायक जयप्रकाश नारायण का निकट साहचर्य मिला। राष्ट्रीय आंदोलन, भूदान आंदोलन, सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन में सक्रीय भूमिका अदा की। बड़ी मात्रा में भूदान प्राप्त करने, देश भर में शान्ति सेना का गठन और दंगा शमन का काम, सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन में सक्रिय भूमिका, गुजराती, हिन्दी और अंग्रेजी में साहित्य सेवा, भूदान-सर्वोदय-सम्पूर्ण क्रान्ति और आपातकाल में तानाशाही के खिलाफ पत्रिकाओं का संपादन के लिए याद किया जाएगा।
बिहार आंदोलन में सक्रियता के कारण तत्कालीन राज्य सरकार ने उन्हें बिहार – निकाला दिया था। युद्ध विरोधी अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन में अग्रणी भूमिका और कार्यकर्ता प्रशिक्षण के लिए सम्पूर्ण क्रान्ति आंदोलन विद्यालय की स्थापना तथा 2002 के गुजरात नरसंहार के प्रायश्चित के रूप में शुरू की गयी ‘गांधी कथा’ उनके जीवन की उल्लेखनीय गतिविधियां थीं। उन्हें केंद्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार, मूर्तिदेवी पुरस्कार समेत कई साहित्यिक पुरस्कार तथा यूनेस्को का शान्ति पुरस्कार दिए गए थे।
1942 के भारत छोडो आन्दोलन में महात्मा गांधी को आगा खां पैलेस में जेल भेज दिया गया था तब उनके साथ उनके सलाहकार और निजी सहायक श्री महादेव भाई देसाई जी भी जेल गये थे। वे महात्मा गांधी का साथ बहुत दिन तक नहीं दे सके और 15 अगस्त को वे शहीद हो गये थे। श्री महादेव भाई देसाई के सुपुत्र श्री नारायण भाई देसाई ने भी पिता के अनुरूप अपना समूचा जीवन गांधीवादी विचारधारा को समर्पित कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने निधन पर शोक प्रकट करते हुए कहा है कि नारायणभाई देसाई को विद्वान शख्सियत के तौर पर याद रखा जाएगा जो गांधीजी को जनता के करीब लाये। उनके निधन की खबर सुनकर दुख हुआ।