वाराणसी : नगर के विभिन्न सामाजिक राजनैतिक संगठनों ने सर्वोदय नेता नारायण देसाई के सामाजिक, साहित्यिक, राजनैतिक कार्यों का स्मरण किया। भदैनी स्थित तुलसी पुस्तकालय में आयोजित स्मृति सभा में वक्ताओं ने उनके गांधीजी से निकट सान्निध्य में बीते शैशव से तरुणाई तक के प्रसंग, गुजरात में अपनी समस्त पैतृक सम्पत्ति को दान में देकर भूदान अभियान की शुरुआत करने, बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में रचनात्मक भूमिका अदा करने, अरुणाचल प्रदेश में शान्ति केन्द्रों की स्थापना करने, देश भर में दंगा शमन के काम में शान्ति सेना के संगठन, सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन में अगली कतार की भूमिका का स्मरण किया।
आजादी के पहले ही एक स्पष्ट आदर्श समाज का सपना देख लेने के कारण उनका ७५ वर्ष लम्बा सामाजिक जीवन प्रभावी और सरल बन गया था। सर्वोदय आन्दोलन के दरमियान ही उन्होंने गुजराती, हिन्दी और अंग्रेजी में विपुल साहित्य का निर्माण किया। बापू की गोद में,विश्व की तरुणाई,यत्र विश्वं भवत्येकनीडम,सोनार बांग्ला,टैंक बनाम लोक,अग्निकुंड में खिला गुलाब तथा गुजराती में चार खण्डों में लिखी जीवनी’मारु जीवन एज मारी वाणी’ प्रमुख है।
दो दशक तक उनका मुख्यालय वाराणसी में था इस दौरान प्रो जगन्नाथ उपाध्याय,प्रो. कृष्णनाथ,प्रो. रिम्पोचे,रोहित मेहता,प्रो. एन राजम तथा शिवकुमार शास्त्री वैद्य जैसी विभूतियों से उनका निकट सामाजिक सरोकार रहा। सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन के दौर में ‘बिहार निकाला’ दिए जाने तथा सेन्सरशिप को धता बताते हुए बुनियादी यकीन नामक पत्रिका के संपादन की वक्ताओं ने चर्चा की। कई वक्ताओं ने गत वर्ष काशी विद्यापीठ में उनके द्वारा की गई ‘गांधी कथा’ से प्रभावित होने की बात कही तथा उसके विडियो का प्रदर्शन जारी रखने का सुझाव दिया।
सभा में मुख्यतः ‘सर्वोदय जगत’ के संपादक अशोक मोती,शिवविजय सिंह,अशोक भारत, पारमिता, सन्तोष कुमार, सुबेदार सिंह, अरविन्द कुमार शुक्ला, अशोक पान्डे, कुंवर सुरेश सिंह, संजय भट्टाचार्य, जागृति राही, फादर दिलराज, सलीम शिवालवी, डॉ. प्रदीप शर्मा, सतीश सिंह, रामजनम, चंचल मुखर्जी, प्रो. महेश विक्रम सिंह तथा अफलातून ने विचार व्यक्त किए। सभा के अन्त में डॉ स्वाति ने नारायण देसाई का प्रिय रवीन्द्र संगीत सुनाया।
सभा की अध्यक्षता सुरेश अवस्थी नी की तथा संचालन समाजवादी जनपरिषद की जिला महामन्त्री डॉ. नीता चौबे ने किया। सभा के पश्चात एक जुलूस के रूप में रीवा घाट के समक्ष गंगा में ‘साथी तेरे सपनों को, हम मन्जिल तक पहुंचायेंगे’ के नारों के साथ उनकी अस्थि- अवशेष गंगा में प्रवाहित कर दिए गए।
समाजवादी जनपरिषद के राष्ट्रीय सचिवअफलातून अपनी भावांजलि में लिखते हैं – एक उद्देश्यपरक जीवन बहुत सहज और सरल होता है। प्रसिद्ध गांधीवादी नारायण भाई देसाई की श्रद्धांजलि सभा मे बैठे हमलोगों ने इसको महसूस किया । किसी व्यक्तित्व की जीवतंता ऐसी होती है कि उसके साथ रहने पर जीवन को समझने की दृष्टि विकसित होती रहे और साथ छूटने पर ऐसा लगे कि वो आपके भीतर जज्ब हो गया है। वक्ताओं को सुनते, महसूस करते ऐसा लगा कि वर्तमान की चुनौतियों के मुकाबिल खड़े होने के लिए एक असीम उर्जा प्रवाहित हो रही है। नारायण भाई के बहाने गांधी, सुभाषचन्द्र बोस, भगत सिंह, साम्प्रदायिकता, लोकतंत्र, वैकल्पिक राजनीति और राजनीति का विकल्प सबकुछ जेरे बहस हो गए । नारायण भाई को समझने में समय ने जहां अपनी कृपणता दिखायी वहीं अध्यक्षीय सम्बोधन में टपकते आंसुओं के बीच कुछ न कह पाने की विवशता ने सभी को भिंगो दिया और लोग इतिहास के अस्थियों को लेकर गंगा की तरफ निकल पड़े। साम्प्रदायिकता के प्रतिरोध में गांधी कथा की विधा विकसित करके नारायण भाई ने सामाजिक कार्यकर्ताओं को एक उपहार दिया है, जिसमें वर्तमान की व्याख्या करने की अन्तर्दृष्टि को विकसित करने मे भावी पीढ़ियों को काफी मदद मिलने की सम्भावना है और शायद यही नारायण भाई को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।