Navin Kumar : इंडिया न्यूज की एंकर, एसोसिएट एडिटर और कश्मीर में उल्लेखनीय रिपोर्टिंग के लिए गोयनका पुरस्कार प्राप्त पत्रकार Chitra Tripathi ने वर्ण व्यवस्था पर सवाल उठाने के एवज में मुझे पागल कहा है। असल में शब्द है पागलपन की इंतिहा। इसके पीछे उन्होंने कोई तर्क नहीं दिया है। यह मेरी समझदारी, पत्रकारिता और मेरी पेशेवर निष्ठा पर निजी और फूहड़ हमला है। एक साथी पत्रकार होने के नाते मैंने उन्हें कुछ किताबें पढ़ने की सलाह दी है। लेकिन यह आक्षेप शालीनता की सीमाओं को पार कर गया है। ऐसा कोई पहली बार उन्होंने नहीं किया है।
अगर वो साधारण नागरिक होतीं तो इसपर एक पल भी सोचता तक नहीं। लेकिन वह एक बड़े न्यूज़ चैनल की बड़ी एंकर हैं। ऊंचे संपादकीय ओहदे पर बैठी हैं और अपनी क्षमताओं के लिए तमाम क़िस्म के पुरस्कारों से नवाजी जा चुकी हैं जिसकी घोषणा वह समय-समय पर सामाजिक माध्यमों में खुद ही करती रही हैं। अब यह जरूरी है कि देश के साधारण लोग स्टूडियो के नियंत्रित माहौल, नियंत्रित तापमान और प्रोड्यूसर के नियंत्रित सवालों से बाहर भी अपने पत्रकारों को परखें। इत्तेफाक से Chitra Tripathi ने ऐसी परिस्थितियां बना दी हैं।
मैं Chitra Tripathi को चुनौती देता हूं कि वो भारत की जातीय व्यवस्था पर सार्वजनिक तौर पर बहस करें। वेदों, पुराणों, अंबेडकर, एमएन श्रीनिवास, अरुंधति, गेल ऑम्वेट, दीपांकर गुप्ता, योगेंद्र सिंह, बारबारा मेटकाफ, मनु स्मृति, रामचरित मानस और क्रिस्टोफ जेफरलेट से लेकर जीएस घूरे और आधुनिक राजनैतिक-सामाजिक संदर्भों तक जातीय विभाजन के हर खांचे पर हम बहस करेंगे। भारत में जातीय व्यवस्था के उद्भव, विरोधाभासों और परिणति पर उनकी जानकारी और समझदारी दोनों को मैं खुली चुनौती देता हूं।
अगले शनिवार यानि 11 जून को शाम चार बजे मैं आईआईएमसी के मैदान में Chitra Tripathi से बहस करने के लिए मौजूद रहूंगा। आप सब भी इसमें भागीदार होने के लिए आमंत्रित हैं। Chitra Tripathi चाहें तो अपनी पसंद के जज चुन लें। जगह भी अपनी सहूलियत से चाहें तो बदल लें। लेकिन यह एक खुला मंच होगा और चीखने चिल्लाने की इजाज़त किसी को नहीं होगी। अब Chitra Tripathi के सामने दो ही विकल्प हैं। या तो वो बहस से भाग खड़ी हों या फिर इसमें शामिल हों।
अगर Chitra Tripathi बहस से भागती हैं तो उन्हें सार्वजनिक तौर पर मुझपर व्यक्तिगत हमला करने के लिए माफी मांगनी चाहिए और अपनी अज्ञानता, तर्कहीनता और विवेकहीनता को स्वीकार करना चाहिए। साधारण लोग तय करें कि स्टूडियो में चमकने वाले चेहरे जब बिना टीपी, रनडाउन या प्रोड्यूसर के दिए पोथड़े के खड़े होते हैं तो अंदर से कितने भरे हुए या खोखले होते हैं। खुद को ऊंचे दर्जे का पत्रकार मानने और मुझे छोटा पत्रकार समझकर बहस से बच निकलने की होशियारी नहीं चलेगी।
न्यूज24 में कार्यरत पत्रकार और एंकर नवीन कुमार के फेसबुक वॉल से.
Sanjeev
June 4, 2016 at 2:16 pm
Ye do Ulluon ki ladayi hai hum samany kalamkar kyun gadha bane ?
prakash
June 16, 2016 at 3:31 pm
sharm aani chahiye navin ji aapko…aap chitra ji bahas nahi balki apne gyan ke dambh me aisi chunauti de rahe hain …aapse aisi ummid na thi