लखनऊ 19 जून 2016 : सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी 2016 की नई नीति को लेकर खासकर लघु एवं मध्यम समाचार पत्र संचालको ने कड़ा विरोध जताया है. समाचार पत्र संचालकों ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला और केंद्र सरकार की तानाशाही करार दिया है. अखबार संपादकों ने केंद्र से इस नयी नीति को तत्काल समाप्त कर पुरानी नीति को प्रभावी किये जाने की मांग की है तथा चेतावनी दी है कि यदि अभिव्यक्ति की आजादी पर तानाशाही रवैया अपनाया गया और कारपोरेट घरानों से जुड़े शीर्ष अखबार संचालकों को लाभ पहुंचाने व लघु एवं मध्यम समाचार पत्र संचालकों को ख़त्म करने की कोशिश की गयी तो केंद्र सरकार के खिलाफ व्यापक आन्दोलन छेड़ा जाएगा.
ज्ञात हो कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के निर्देशन में द्रश्य प्रचार निदेशालय ‘डीएवीपी’ द्वारा 15 जून को एक पत्र जारी किया गया है जिसमें एबीसी और आरएनआई का प्रमाण पत्र 25 हजार प्रसार संख्या से अधिक वाले समाचार पत्रों के लिए अनिवार्य किया गया है। इसके लिए 25 अंक रखे गए हैं। इसी तरह कर्मचारियों के पीएफ अंशदान पर 20 अंक रखे गए हैं। समाचार पत्र की पृष्ठ संख्या के आधार पर 20 अंक निर्धारित किए गए हैं। स्वयं का प्रिंटिंग प्रेस होने पर 10 अंक और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की प्रसार संख्या के आधार पर फीस जमा करने पर 10 अंक दिए गए हैं। इस तरह 100 अंक का वर्गीकरण किया गया है जो वर्तमान में शीर्ष अखबार संचालकों को छोडकर अधिकाँश लघु एवं मध्यम समाचार पत्र संचालक पूरा ही नहीं कर सकते हैं।
15 जून को जारी की गई वर्ष 2016 की इस नई नीति से पत्र संचालकों में खासा आक्रोश है. लघु एवं मध्यम समाचार पत्र पत्रिकाओं व समाचार एजेंसियों के संचालको ने इसे सरकार का षडय़ंत्र करार दिया है तथा इसे अभिव्यक्ति की आजादी पर कुठारा घात बताया है. इस नयी नीति से आक्रोशित लघु एवं मध्यम समाचार पत्र संचालकों की आज एक आकस्मिक बैठक लखनऊ के विधानसभा रोड हुशैनगंज स्थित दिलकुशा प्लाजा में आहूत हुई.
इस अवसर पर जनजागरण मीडिया मंच के राष्ट्रीय महासचिव एवं रेड फाइल के संपादक श्री रिजवान चंचल ने कहा कि लघु एवं मध्यम समाचार पत्र पत्रिकाओं के संचालकों को एक जुट होकर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी 2016 की इस नीति का व्यापक विरोध किया जाना चाहिए, क्योंकि नई नीति जो जारी हुई है उसमें अंकों के आधार पर समाचार पत्र पत्रिकाओं को विज्ञापन सूची में वरीयता क्रम में विज्ञापन देने के लिए चयन करने की बात कही गयी है जो लघु एवं मध्यम समाचार पत्र के संचालको के साथ नियोजित साजिश का सूचक है. उन्होंने कहा कि इस नई विज्ञापन नीति के लागू होने के बाद बड़े राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक समाचार पत्रों को ही अब केंद्र एवं राज्य सरकारों के विज्ञापन जारी हो सकेंगे और लघु एवं मध्यम श्रेणी के समाचार पत्र डीएवीपी की विज्ञापन सूची से बाहर हो जाएंगे. श्री चंचल ने कहा की चूँकि डीएवीपी को ही देश की सभी राज्य सरकारें भी आधार मानती रही है और डीएवीपी के रेट को ही आधार मानकर समाचार पत्रों को विज्ञापन भी जारी करती रही हैं तथा डीएवीपी के रेट पर ही भुगतान भी होता रहा है ऐसी स्थिति में राज्य सरकारों के विज्ञापन से भी लघु एवं मध्यम समाचार पत्र के संचालक वंचित हो जाएंगे.
लिहाज़ा अब जरूरी हो गया है कि सभी लघु एवं माध्यम समाचार पत्र व पत्रिकाओं के संचालक संगठित होकर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के निर्देशन में डीएवीपी द्वारा जारी इस नीति का कड़ा विरोध करें. सिटी टाइम्स के संपादक रामानन्द शास्त्री ने कहा की डीएवीपी द्वारा जिस तरह की नई विज्ञापन नीति जारी की गयी है उससे स्पष्ट है कि मौजूदा केंद्र सरकार देश के 90 फ़ीसदी लघु एवं मध्यम श्रेणी के भाषाई समाचार पत्र पत्रिकाओं ख़त्म कर देना चाहती है। उन्होंने कहा कि डीएवीपी ने जो नई अंकीय व्यवस्था लागू की है उसके बाद लघु एवं मध्यम समाचार पत्र पत्रिकाओं को केंद्र एवं राज्य सरकारों के विज्ञापन भी मिलना संभव ही नहीं होगा।
यही नहीं 25 हजार से ऊपर प्रसार संख्या वाले समाचार पत्रों को 30 जून तक नई विज्ञापन नीति के अनुरूप ऑनलाइन जानकारी भरने को कहा गया है तथा यह भी कहा गया है कि जिन समाचार पत्र पत्रिकाओं को 45 अंक से कम प्राप्त होंगे, उन समाचार पत्र पत्रिकाओं को विज्ञापन सूची से पृथक किया जा सकता है। श्री शास्त्री ने अखबार संचालकों को एकजुट होने का आह्वान करते हुए इस नयी नीति को वापस लिए जाने व पुरानी नीति को प्रभावी करवाने हेतु शीघ्र ही निर्णायक कदम उठाये जाने पर जोर देते हुए कहा कि इस लड़ाई में विभिन्न पत्रकार संगठनों व समाचार पत्र संचालको का एक संयुक्त मोर्चा बनाकर धरना प्रदर्शन करने की जरूरत पड़ी तो वह भी किया जाएगा एक दो दिन में सर्वसम्मति से समय निर्धारण भी कर लिया जाएगा जिसकी सूचना आप सभी को दे दी जाएगी।
राज्य मान्यता संवाददाता समिति के सदस्य नवेद शिकोह ने कहा कि नयी डी ए वी पी की इस नयी नीति में मात्र तीन समाचार एजेंसी को मान्यता दी गयी है जबकि पिछले 10 वर्षों से भी ज्यादा समय से भाषाई न्यूज़ एजेंसियां बड़े पैमाने पर काम करती चली आ रही हैं तथा उनकी सेवाएं भी हजारों समाचार पत्र संचालक ले रहे हैं। लघु एवं मझोले समाचार पत्र संचालको की भांति भाषाई न्यूज़ एजेंसियों को भी इस नई नीति में अनदेखा किया गया है और तो और 6000 से 75000 की प्रसार संख्या वाले समाचार पत्रों के लिए अभी तक सीए (चार्टर्ड एकाउन्टेंट) का प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य था नई नीति में 25000 से 75000 तक के समाचार पत्रों को एबीसी अथवा आरएनआई से प्रसार संख्या प्रमाणित कराने की अनिवार्यता रखी गई है मात्र 15 दिनों के अंदर यह प्रमाण पत्र प्राप्त कर पाना किसी भी समाचार पत्र संचालक के लिए यह आसान नहीं है।
श्री शिकोह ने कहा कि एबीसी और आरएनआई के लिए भी हजारों समाचार पत्रों की प्रसार संख्या का ऑडिट कर पाना संभव भी नहीं है उन्होंने कहा कि नई व्यवस्था में जान-बूझकर इस तरीके के प्रावधान रखे गए हैं जो लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों द्वारा न तो पूरे किए जा सकते हैं ना ही उन पर लागू होते हैं ऐसी स्थिति में नए नियमों में 25000 से 75000 संख्या वाले समाचार पत्रों को 25 से 30 अंक मिलना भी संभव नहीं होगा जब कि डीएवीपी ने न्यूनतम 45 अंक अनिवार्य किया है. इस नयी नीति का लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों द्वारा व्यापक विरोध किया जाना चाहिए क्योंकि यह नीति अभिव्यक्ति की आजादी पर अब तक का सबसे बड़ा आघात है.
केंद्र सरकार द्वारा अब मीडिया जगत में भी कारपोरेट घरानों को लाभ देने का यह एक सुनियोजित षडयंत्र है. जिस तरह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर विज्ञापन देकर सरकारों ने अपना नियंत्रण कर लिया है उसी तरह सरकार अब प्रिंट मीडिया को भी नियंत्रित करने के लिए भाषाई अखबारों को समाप्त करने का षड्यंत्र रच रही है लेकिन सरकार के इस मंसूबे को समाचार पत्र संचालक पूरा नहीं होने देंगे क्योंकि समाचार पत्र संचालको के साथ साथ इस नीति के लागू होने से देश के लाखों पत्रकारों के के समक्ष भी बेरोगारी की स्थित उत्पन्न हो जायेगी। बैठक में प्रियंका के संपादक राम प्रकाश वरमा, माया अवध पत्रिका के संपादक खुर्शीद अहमद, संपादक दिलीप मिश्र, चन्द्रभान दुबे, कमाल मिर्ज़ा, जकी मोहम्मद, राजेंद्र सिंह सहित दर्जनों अख़बारों के संचालक व पत्रकार संगठनों के पत्रकार साथी उपस्थित रहे .