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नवभारत टाइम्स के संपादक रहे रामपाल सिंह जी की याद!

अकू श्रीवास्तव-

होना रामपाल सिंह जी का… आमतौर पर मैं पत्रों की संभाल ठीक से नहीं कर पाता हूं. लेकिन अभी दो-तीन दिन पहले अचानक एक पुरानी डायरी में एक ऐसी चिठ्ठी मिली कि पुरानी यादें ताजा हो गई. लगभग 30 साल पुरानी यह चिट्ठी लखनऊ, नवभारत टाइम्स में मेरे संपादक रहे आदरणीय रामपाल सिंह जी की थी. मेरा नवभारत टाइम्स में आगमन भी उनके कार्यकाल में हुआ था और उनकी स्पष्टवादिता, जीवंतता और हास्य विनोद का ढंग अलग ही था.

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समय के पाबंद वह इतना थे कि मैं आज भी कहता हूं रामपाल सिंह जी के दफ्तर में आने पर 10:00 बजे की सुईयां मिलाई जा सकती थीँ .10 से 12 बजे के बीच वह संपादकीय लिखा करते थे और फिर 1:00 बजे तक बाहर से आने वाले संवाददाताओं से मुलाकात होती थी. 1:00 बजे ठीक दोपहर भोज के लिए निकल जाना और 2:00 बजे ठीक वापस आना.

यह दैनिक दिनचर्या थी. 2:00 से 5:00 उनसे कोई भी आकर मिल सकता था और 5:00 बजे वापसी का क्रम शुरू हो जाता था. वह अक्सर अपने केबिन के बाहर आकर मेन डेस्क पर बैठ जाते और उस समय जो भी इंचार्ज या बाकी साथी होते, उनके साथ चाय पीने का क्रम होता.

कभी-कभी मस्ती में वह कहते कि चाय आज कौन पिला रहा है और उसके बाद हम लोग भी उस मामले में और आगे जाकर सभी साथियों जिनमें रामकृपालसिंह, कमरवहीदनकवी, प्रमोद जोशी, नवीन जोशी, अनिल सिन्हा, घनश्याम दुबे, मुदित माथुर आदि हुआ करते थे ,के नाम की पर्ची होने का दावा कर ,पर्चियां निकालते थे. लेकिन हर बार उसमें नाम रामपाल सिंह जी का ही होता था.

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दरअसल पर्ची चाहे कोई भी बनाए, वह सब पर्चियों में रामपाल जी का नाम लिख देता था और फिर अंततः वही चाय मंगाते थे. कुछ वर्षों बाद जब उनका विदाई समारोह हुआ तो हम लोगों ने परचियों का भी खुलासा किया और उनका जवाब था ,हां यह मुझे पता है.

आज जब उनके देहावसान के भी लगभग 25 वर्ष बीत चुके हैं, उनको याद करने का और श्रद्धांजलि देने का एक और मौका है .वैसे भी उनके मार्गदर्शन में मैंने काफी कुछ सीखा. गुरु पूर्णिमा के मौके पर उनको शत-शत प्रणाम.

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