उमाशंकर दुबे नामक एक शख्स ने आरटीआई के जरिए योगी सरकार से बड़े काम की जानकारी जुटाई है. योगी सरकार ने किन चैनलों को कितने रुपये विज्ञापन के रूप में प्रदान किए, इसका विस्तृत विवरण सामने आया है. इस लिस्ट में भारत समाचार चैनल नहीं है. मतलब साफ है. या तो सरकार के टुकड़े पर पलो, चुप रहो या फिर छापा झेलो, उत्पीड़न झेलो.
उमाशंकर दुबे ने आरटीआई में ढेरों सवाल पूछे थे लेकिन केवल एक सवाल का जवाब दिया गया है. वो सवाल था कि कितने चैनलों को कुल कितना पैसा दिया गया, विज्ञापन के मद में.
योगी सरकार ने सबसे ज्यादा पैसा News 18 group को दिया है. सबको पता है कि भाजपा सरकारें अंबानी जी पर खास मेहरबान रहती हैं. न्यूज18 ग्रुप मुकेश अंबानी का ही मीडिया हाउस है. इसके बाद सेकेंड नंबर पर है एबीपी ग्रुप के चैनल. एबीपी न्यूज और एबीपी गंगा. तीसरे नंबर पर है अरुण पुरी वाला इंडिय टुडे ग्रुप जहां काम करने वालों मीडियाकर्मियों के लिए भी मोदी-योगी सरकार के खिलाफ सोशल मीडिया पर बोलना लिखना प्रतिबंधित है. टीवी न्यूज चैनलों ने मिलकर एक साल में कुल 225 करोड़ रुपये से ज्यादा ले लिए हैं यूपी सरकार से. ये केवल एक साल की डिटेल है. सोचिए पांच साल में कुल कितना खर्च होगा.
नीचे पूरी आरटीआई और उसके जवाब को प्रकाशित किया गया है. ये जानकारियां आम आदमी को होनी चाहिए कि वे जिस मीडिया हाउसों, चैनलों को सच मान कर देखते हैं वो झूठ बोलने के कितने पैसे लेते हैं.
योगी सरकार ने जनता के पैसे को गोदी मीडिया चैनलों पर जिस तरह बहाया है, वह स्तब्धकारी है. दो अरब तीस करोड़ उन्नीस लाख दस हजार रुपये का कुल विज्ञापन न्यूज चैनलों को दिया गया है. इसमें छोटे बड़े सभी न्यूज चैनल हैं. कई ऐसे चैनल भी हैं जिनका दर्शन आप सबों ने न किया होगा लेकिन जब साहब मेहरबान तो गधा पहलवान.
सोचिए, अगर इस रकम से जाने कितने बड़े अस्पताल बन सकते थे. जाने कितनी जानें बचाई जा सकती थीं. पर मरने के लिए जनता को उसके हाल पर छोड़ने वाली योगी सरकार ने चेहरे के दाग धुलने के लिए न्यूज चैनलों पर भयंकर पैसा खर्च किया. झूठ को सच बताने के लिए लगातार मिथ्या प्रचार करना पड़ता है जिसे सुनते सुनते जनता सच मानने लगती है.
यही वजह है कि सारे न्यूज चैनल कोरोना काल में जमीनी सच्चाई छुपाने और सरकार को बचाने में जुटे हुए थे. पढ़े लिखे लोगों को अब सरकारों पर दबाव बनाना चाहिए कि वे मीडिया पर बेतहाशा पैसा खर्च करना बंद करें और उस पैसे का इस्तेमाल अस्पताल बनाने के लिए करें. मीडिया को पैसे देकर जब उसका मुंह बंद कराते हुए सरकार का गुणगान कराना ही मकसद है तो फिर तो जनता के पैसे का भयंकर दुरुपयोग है.
नीचे की लिस्ट में अखबारों, पत्रिकाओं का डिटेल नहीं है. सोचिए, उनकी भी राशि अगर जोड़ दी जाए तो कुल कितना एमाउंट बैठेगा, इसकी कल्पना कोई आम आदमी नहीं कर सकता.
देखें न्यूज चैनलों का नाम, मिलने वाले विज्ञापन का नाम और उसके लिए दी गई धनराशि का डिटेल…
अंकित बंसल
July 27, 2021 at 9:40 am
जिन भाई साहब ने आरटीआई लगाई बेहद अच्छी जानकारी मिली पर स्वराज एक्सप्रेस चैनल को 2021 तक विज्ञापन मिला जबकि वो चैनल एक तो कांग्रेसी था कोई विज्ञापन नही मिलता था सरकार से और दूसरा वो चैनल अगस्त 2020 में बंद हो गया था पर विज्ञापन के पैसे उसको 2021 तक मिले हैं । ये एक बहुत बड़ा घोटाला हैं सरकार को इस मामले में एक हस्तक्षेप करना चाहिए