पिछले कई दिनों से सरकारी सब्सिडी के अखबारी कागज पर क्रांति की चिंगारी सुलगाने का दावा करने वाले दैनिक जागरण की हेकड़ी गुरूवार को उस वक्त निकल गयी जब मेरठ में प्रोफेसर रामगोपाल पहुँचे थे। सरकार का मुँह टाप रहे जागरणी पत्रकारों को उम्मीद थी कि रामगोपाल यादव उनके कहने भर से डीएम बी0 चन्द्रकला को कालापानी दे देंगे। लेकिन कागज पुर्जे पर ज्ञापन रूपी चार लाइनें लिखकर ज्योंही पत्रकारों ने प्रोफेसर रामगोपाल के सामने पेश की, उन्होने झट से कहा निपटाते क्यों नही..बस छापे जा रहे हो।
दरअसल, मेरठ के जागरणी पत्रकारों ने कई दिनों पहले प्रोफेसर साहब का कार्यक्रम आते ही बुलंदशहर डीएम बी0 चन्द्रकला के सेल्फी प्रकरण पर उन्हें घेरने की योजना बनाई थी। किसी विशाल रैली के आयोजन की तरह कैम्पेन चल रहा था। जागरण ने पिछले दिनों इस मामले पर बुरी तरह मुँह की खाई है। प्रायोजित प्रदर्शनों के फर्जी फोटो छापते-छापते स्याही खत्म होने के कगार पर है। लाला गरिया रहा है और हिम्मत व हौसला लगातार टूट रहा है। उधर, जागरण की इम्पोर्टिड फर्जी खबरों का सत्य जान चुके पाठकों ने जागरण को मोर्निग-टी के वक्त विदा कर दिया है और जागरण की इस हार से नारी शक्ति और मजबूत हो रही है। शायद इसी वजह से मेरठ के सर्किट हाउस में पत्रकारों के जमावड़े में फूट दिखी। कोई जागरण को कोस रहा था..तो कोई बुलंदशहर के ब्यूरोचीफ सुमनलाल कर्ण को।
बड़ी मुश्किलों से प्रेस क्लब के पदाधिकारियों ने सामान्य रणनीति के तहत प्रोफेसर रामगोपाल से मिलने की कोशिश की। लेकिन जिलाध्यक्ष ने पत्रकारों के लिए कोई पहल नही की। नाकामी मिलने पर केवल 4 लोगो के मिलने का प्रस्ताव भेजा गया। हाँ हुई …तो कुहनियों तक हाथ जोड़े जागरणी क्राइमवीर प्रेस क्लब के पदाधिकारियों के साथ प्रो0 रामगोपाल से मिले। ज्ञापन पकड़ाने के बाद कुछ बोल पाते उससे पहले ही प्रोफेसर साहब बोल पड़े, “मिल-बैठकर मामले को खत्म क्यों नही करते। क्या मिल रहा है बेमतलब का अभियान चलाकर। अफसर है, काम करने दो और आप भी काम करो। जनता के लिए। गलत मामले पर किसी को घेरना गलत है।”
बेचारों ने इतना सुनकर जी सर…जी सर करते हुए प्रोफेसर साहब को धन्यवाद किया और बाहर चले आये। बाहर आकर किसी ने कोसा। क्यों मिट्टी पलीत कराने ले गये यार..किसने सलाह दी थी। साला मामला ऐसा है कि किसी से ठीक से कह भी नही पाते। क्राइमवीर बोले, “क्या करे भाई। मालिक का फरमान था, सो हर हाल में पूरा करना था। बड़े मुश्किल दिनों से गुजर रहे हैं। संपादक ने नौसिखिये को ब्यूरोचीफ बना दिया और उसने बवाल खड़ा करके अखबार का कबाड़ा कर डाला। सालों ने इज्जत मिट्टी में मिला दी। इतनी बेइज्जती पूरे कैरियर में कभी नहीं हुई। अब तो कोई अधिकारी सीधे बात तक नहीं करता। कोर्ट और प्रेस काउंसिंल में फँसेगे सो अलग।”
इतना कहकर सबने एक दूसरे से विदा ली और अपने-अपने गंतव्य को चले गये।
मेरठ से एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.
Naushad ali
February 16, 2016 at 11:06 pm
मुझे बड़ी ख़ुशी है कि इस तरह का कोई न्यूज़ प्लेट फार्म ऑनलाइन है जबकि प्रिंट मिडिया और सभी टीवी चैनल 100 पक्षपात करते आ रहे जिनकी वजह से कई संकट खड़े होते जा रहे है।