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सुख-दुख

चरखा की लेखिका निखत परवीन को लाडली मीडिया अवार्ड

नई दिल्ली : यूनाइटेड नेशन पॉपुलेशन फंड, इडिया (UNFPA) की ओर से मीडिया एवं जनसंचार में काम करने वाले पत्रकारों को औरतों और उनके अधिकारों से संबंधित समाज में जागरूकता लाने के लिए हर साल लाडली मीडिया अवार्ड दिया जाता है। तकरीबन हर साल चरखा के हिंदुस्तान में फैले ग्रामीण लेखक अपने कौशल और चरखा के मार्गदर्शन के बाद यह अवार्ड हासिल करते हैं। इस बार बिहार की राजधानी पटना से ताल्लुक रखने वाली निखत परवीन को यह अवार्ड उनके ज़रिए लिखे गए लेख ‘‘अगर शिक्षित होती तो हाथ में झाड़ू के बजाय कलम होती’’ की वजह से हासिल हुआ है।

<p>नई दिल्ली : यूनाइटेड नेशन पॉपुलेशन फंड, इडिया (UNFPA) की ओर से मीडिया एवं जनसंचार में काम करने वाले पत्रकारों को औरतों और उनके अधिकारों से संबंधित समाज में जागरूकता लाने के लिए हर साल लाडली मीडिया अवार्ड दिया जाता है। तकरीबन हर साल चरखा के हिंदुस्तान में फैले ग्रामीण लेखक अपने कौशल और चरखा के मार्गदर्शन के बाद यह अवार्ड हासिल करते हैं। इस बार बिहार की राजधानी पटना से ताल्लुक रखने वाली निखत परवीन को यह अवार्ड उनके ज़रिए लिखे गए लेख ‘‘अगर शिक्षित होती तो हाथ में झाड़ू के बजाय कलम होती’’ की वजह से हासिल हुआ है।</p>

नई दिल्ली : यूनाइटेड नेशन पॉपुलेशन फंड, इडिया (UNFPA) की ओर से मीडिया एवं जनसंचार में काम करने वाले पत्रकारों को औरतों और उनके अधिकारों से संबंधित समाज में जागरूकता लाने के लिए हर साल लाडली मीडिया अवार्ड दिया जाता है। तकरीबन हर साल चरखा के हिंदुस्तान में फैले ग्रामीण लेखक अपने कौशल और चरखा के मार्गदर्शन के बाद यह अवार्ड हासिल करते हैं। इस बार बिहार की राजधानी पटना से ताल्लुक रखने वाली निखत परवीन को यह अवार्ड उनके ज़रिए लिखे गए लेख ‘‘अगर शिक्षित होती तो हाथ में झाड़ू के बजाय कलम होती’’ की वजह से हासिल हुआ है।

लेखिका का यह लेख पटना की एक महिला की जिंदगी की कहानी बयां करता है, जो चरखा के माध्यम से देश के अलग-अलग अखबारों और पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुका है। इस पुरस्कार समारोह में प्लानिंग कमीशन की सेक्रेटरी श्रीमती सिंधु श्री खुल्लर ने मुख्य अतिथि के तौर पर शिरकत की। इसके अलावा खास मेहमानों में हिंदुस्तान में अमेरिका की राजदूत श्रीमती नैंसी जे. पावेल शामिल थीं। निखत परवीन ने अवार्ड हासिल करने के बाद मीडिया से बात करते हुए कहा कि मेरी इस कामयाबी का राज़ चरखा मेंउ र्दू के संपादक अनीस-उर-रहमान का मार्गदर्शन और मेरे माता पिता, भाई-बहन और अध्यापकों की दुआएं हैं।

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यह हकीकत है कि मैंने पत्रकारिता का तीन का कोर्स पटना के मौलाना मज़हरूल हक अरबी और फारसी यूनिवर्सिटी से किया है, लेकिन मेरी लेखन क्षमता में निखार पैदा करने का काम चरखा ने किया है। चरखा का शुक्रिया अदा करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। इसलिए मैं अपनी ओर से दूसरे भाई बहनों से अनुरोध करती हूं कि अगर उन्हें कभी चरखा से जुड़ने का मौका मिले तो बिना सोचे समझे चरखा का हिस्सा बनें। चरखा से जुड़ने से आपका लेखन कौशल तो विकसित होगा ही, साथ ही साथ आप लेखन के ज़रिए समाज को बदल सकते हैं। गौरतलब है कि तीन साल पहले चरखा भी अपनी हिंदी, उर्दू और अग्रेज़ी में चलने वाली चरखा फीचर्स सर्विस के लिए (UNFPA) की ओर से एक खास लाडली मीडिया अवार्ड हासिल कर चुका है।

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0 Comments

  1. SHANKAR JALAN

    December 26, 2014 at 11:41 am

    SUBH KAMNA

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