ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन के महासचिव और वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह ने कहा है कि मोदी की नीति रही है आलोचना करने वाले संस्थानों की विश्वसनीयता को चोट पहुंचाना. मीडिया अपना काम अच्छे से कर रहा है लेकिन मोदी का इस तरह की बात कहना ओछा लगता है।
एनके सिंह मोदी के मीडिया के बारे में की गई इस टिप्पणी पर प्रतिक्रिया दे रहे थे जिसमें मोदी ने कहा था कि लोकतंत्र में आलोचना बहुत जरूरी है इसलिए 2015 में हमें इस बात का संकल्प लेना चाहिए कि आलोचना के अधिकार को और पैना करेंगे. मुंबई में मोदी ने यह भी कहा था कि लोकतंत्र में आलोचना का महिमामंडन होना चाहिए. आलोचना से सत्य को अच्छी तरह परखने का अवसर मिलता है. आलोचना से गलत राह पर न भटकने से संभावना पैदा होती है. नई गलतियां करने से रोका जा सकता है. मीडिया के माध्यम से यह सेवा सर्वोत्तम हो सकती है. आलोचना नहीं होती इसलिए सत्ता में बैठे लोग बर्बाद हो रहे हैं.
मोदी के इस बयान पर ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन के महासचिव और वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा है कि अतीत गवाह रहा है कि जब जब जिसने जिसने मोदी की कटु आलोचना की, उसको लेकर मोदी ने अपने मन में पूर्वाग्रह पाला और मौका मिलने पर उसकी प्रतिष्ठा-विश्वसनीयता को चोट पहुंचाई.
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rajkumar
January 3, 2015 at 12:03 pm
N K SIGH NE KAHA MEDIA APNA KAM ACHHE SE KAR RAHA H SUNKAR DUKH HUVA, MEDIA ME ADHIKANS VAMPANTHI THAG DALAL BATHEN HUYE H JO DUSRI VICHAR DHARA KE LOGO KE SATH SANVAD TAK NAHI KARTE, SEKULARTA KE NAM PAR ISLAMI TUSTIKARAN KARNE KE LIYE KISI BHI ISTAR TAK GIR JATE H, MODI AGAR PURVAGRASIT HOTA TO N K SINGH AAJ TIHAR JEL ME HOTE, MEDIA 10 SAL TAK MODI KO JANBUJH KAR GALI DETI RAHI, CONGRESS KI CHATUKARUTA KARNE VALE DES K PRAVACHAN DENE CHALE
संजय कुमार सिंह
January 3, 2015 at 5:54 pm
मोदी की निन्दा करने के फेर में एनके सिंह मीडिया अपना काम ठीक से कर रहा है कह कर लालाओं की मदद कर रहे हैं। उन्हें कहना चाहिए था कि मीडिया स्वतंत्र है और अगर उसमें कुछ कमी है तो वह कुद देखेगा, सरकार को कोई हक नहीं है कि मीडिया के काम में हस्तक्षेप करे। इससे उनकी बात का वजन होता। अभी तो वे मीडिया का बचाव करते हुए ऐसा काम कर रहे हैं जिसकी जरूरत मीडिया को भी नहीं है।
mukesh singh
January 4, 2015 at 8:16 am
एनके उन पत्रकारों में से है, जो कंबल ओढ़कर घी पीते हैं। मोदी की आलोचना करने का उस व्यक्ति को अधिकार क्या है, जो एक दुकान के पद का मोह तक नहीं छोड पा रहा है, वावजूद इसके कि वह कहीं नौकरी पर नही है। ब्रॉडकास्टर्स एडिटर्स एसोसिएशन का महासचिव होने के पहले किसी संस्थान में एडिटर होना जरूरी है और यह कही नहीं है। और यह उन मोदी की आलोचना करा रहा है, जिसने कई प्रदेश (जिनमें कुछ समय बाद बिहार भी शरीक होगा, समझे एनके सिंह) बीजेपी की झोली में डाल दिए। इन्हें मोदी की बात ओछी लग रही है, स्वयं का ओछापन नहीं दिख रहा है। बात करने का सलीका नहीं है, कर्मचारियों से गालीगलौज करता है और यह मोदी को सलीका समझा रहा है। इसे उस समय एसोस्िएशन की दुकान याद नहीं आई, जब पी7 क कर्मचारी संघर्ष कर रहे थे, जब भास्कर न्यूज के कर्मचारी लड़ रहे थे। अब मोदी पर वार कर रहा है, क्या पिद्दी और क्या पिद्दी का शोरबा।
ashok shandilya
January 4, 2015 at 8:28 am
बिलकुल ठीक कहा मुकेश भाई। यह दोगला इसान है, जो कि मैने खुद देख है, जब मैं इसके साथ काम करता था। मोदी पर अंगुली उठाने के पहले खुद का कद तो देख लो। बस दुकान चला रहे हैं, नौकरी कही कर नहीं रहे है। इस्तीफा क्यों नहीं देता, वो कौन सा एडिटर्स का एसोसिएशन है, उससे।
mukund shahi
January 4, 2015 at 4:59 pm
मेरे दोस्तों किसी के विषय में आपत्तिजनक शब्द लिखने से पहले ज़रा सोचिए कि आप किस तरह की पत्रकारिता कर रहे हैं…और कमेंट में जिस मुकेश सिंह साहब का कमेंट है और पी-7 की वकालत कर रहे हैं उन्हें शायद बताने की जरूरत नहीं है कि पी-7 के आंदोलन में मेरी क्या भूमिका रही और किसने किस तरह से मदद की…भड़ास के एडिटर यशवंत जी से लेकर वरिष्ठ पत्रकार राम बाहादुर राय तक वहां पहुंचे…हमारा मनोबल बढाया….और मैं इस बात की पुष्टि करता हूं कि पूरे आंदोलन में एन के सिंह सर का जो मार्गदर्शन रहा….चिटफंडी मालिकों के खिलाफ उन्होंने जो आंदोलन कर रहे तमाम लोगों का जो मनोबल बढाया…उसके लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं… शायद आपको नहीं मालुम है मुकेश सिंह जी…और कम से कम सूरज की तरफ दीया दिखाने से पहले खुद की रोशनी को तो परख लें आप लोग…आपको शायद नहीं मालुम है कि आज एन के सिंह किसी चैनल के एडिटर क्यों नहीं हैं…वो मालिक अपने सगे संबंधियों की शादी का विडियो प्राइम टाइम में चलायें उसे बर्दाश्त नहीं कर सकते…या यूं कहें कि खबरों के बीच चैनल मालिक होने के नाते कुछ भी करें ये उन्हें बर्दाश्त नहीं है ये तो हालिया मसला बताया…ना जाने ऐसे कितने ही मसले जुडे हैं उनकी जिंदगी के साथ…थोड़ी सी जानकारी लेकर किसी को भला बुुरा कहना ये ठीक नहीं हैं…हमारी जितनी जिंदगी है उतने साल से वो पत्रकारिता कर रहे हैं…और अपनी काविलियत और आदर्शों के दम पर उन्होंने एक मुकाम हासिल किया है…काबिल बनिए मंजिल हासिल किजीए…यूं किसी मंजिल के पहले पायदान पर खड़े होकर मंजिल के मुंडेर पर थूकने की जुर्रत न करें…मुझे मालुम है कि मेरे इस कमेंट के बाद बहुत से लोग मुझे भी गाली देंगे…दीजिए खूब दीजिए…लेकिन हां खुद को सम्मानित कहलाने के लिए सम्मानित लोगों का अपमान न करें…और हां…जिस किसी को तकलीफ हो तो एन के सिंह सर ने तो मुझे नहीं सिखाया है लेकिन अपना काल्पनिक नहीं वास्तविक पता बता दीजिएगा…नाम और ठिकाने के साथ…शायद आप अगली बार किसी को गाली नहीं दे पायेंगे….
Mukesh Singh
January 7, 2015 at 5:26 pm
मुकुद शाही जी, हालांकि मैंं इस मुद्दे पर कुछ भी लिखना नहीं चाहता था, लेकिन अंतिम पंक्ति ने मजबूर किया है। मेरे पास भी दर्जनों उदाहरण हैं, जिनसे मेरी कही गई बातं को साबित कर सकता हूं। किसने कब-कब क्या क्या बर्दाश्त किया है, गहराई से जानता हूं। यह समझ लें कि आलोचना तो जारी रहेगी, इसी मंच से। अब भूमिहारी प्रथा रिपीट भूमिहारी प्रथा खत्म हो गई है। फिर मिलेंगे, इसी मंच पर बार-बार, लगातार। बने रहिए, हमारे साथ।