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सियासत

माकपा का पेज थ्री मार्क्सवाद : येचुरी के महासचिव बनते ही मीडिया में आशा का संचार

उन लोगों को संगठन में बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है जो माकपा के अपराधीकरण के खिलाफ बोल रहे थे। का. अच्युतानंदन उनमें से एक हैं। पहले यही गति स्व. नृपेन चक्रवर्ती की हुई और दोनों मौकों पर प्रकाश कारात की बड़ी भूमिका रही है। सीताराम येचुरी के माकपा महासचिव बनते ही मीडिया में आशा का संचार दिख रहा है। उनको कोई भिन्न खबर मिली है। हमने बहुत पहले लिखा था, फिर लिख रहे हैं, सीताराम के महासचिव बनने से माकपा सुधरने नहीं जा रही। लेकिन एक काम जरूर होगा मीडिया में माकपा जरुर नजर आएगी, क्योंकि सीता का मीडिया जनसंपर्क हमेशा से अच्छा रहा है। लेकिन माकपा को मीडिया में नहीं आम जनता में काम करना है।

<p>उन लोगों को संगठन में बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है जो माकपा के अपराधीकरण के खिलाफ बोल रहे थे। का. अच्युतानंदन उनमें से एक हैं। पहले यही गति स्व. नृपेन चक्रवर्ती की हुई और दोनों मौकों पर प्रकाश कारात की बड़ी भूमिका रही है। सीताराम येचुरी के माकपा महासचिव बनते ही मीडिया में आशा का संचार दिख रहा है। उनको कोई भिन्न खबर मिली है। हमने बहुत पहले लिखा था, फिर लिख रहे हैं, सीताराम के महासचिव बनने से माकपा सुधरने नहीं जा रही। लेकिन एक काम जरूर होगा मीडिया में माकपा जरुर नजर आएगी, क्योंकि सीता का मीडिया जनसंपर्क हमेशा से अच्छा रहा है। लेकिन माकपा को मीडिया में नहीं आम जनता में काम करना है।</p>

उन लोगों को संगठन में बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है जो माकपा के अपराधीकरण के खिलाफ बोल रहे थे। का. अच्युतानंदन उनमें से एक हैं। पहले यही गति स्व. नृपेन चक्रवर्ती की हुई और दोनों मौकों पर प्रकाश कारात की बड़ी भूमिका रही है। सीताराम येचुरी के माकपा महासचिव बनते ही मीडिया में आशा का संचार दिख रहा है। उनको कोई भिन्न खबर मिली है। हमने बहुत पहले लिखा था, फिर लिख रहे हैं, सीताराम के महासचिव बनने से माकपा सुधरने नहीं जा रही। लेकिन एक काम जरूर होगा मीडिया में माकपा जरुर नजर आएगी, क्योंकि सीता का मीडिया जनसंपर्क हमेशा से अच्छा रहा है। लेकिन माकपा को मीडिया में नहीं आम जनता में काम करना है।

माकपा की विशाखापत्तनम काँग्रेस में ऐसा कुछ भी नया नहीं घटा जिससे लगे कि माकपा में जल्द ही कोई बड़ा बदलाव आएगा। माकपा सबसे कंजरवेटिव किस्म की कम्युनिस्ट पार्टी है, अनुदारवादी भावबोध इसमें कूट-कूटकर भरा हुआ है। माकपा में अनुदारवादियों के अलावा एक बड़ा तबका असामाजिक तत्वों का भी दाखिल हुआ है जिसने माकपा की इमेज को क्षतिग्रस्त किया है। माकपा यदि आंतरिक अनुदारवाद और असामाजिक कार्यकर्ताओं के तंत्र को तोड़ने में सफल होती है तब तो कोई नई आशा की किरन फूट सकती है वरना विशाखापत्तनम कॉग्रेस मात्र रुटीन कॉग्रेस ही मानी जाएगी।

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हम तो चाहते हैं कि माकपा यह करे, वह करे, भारत की राजनीति के केन्द्र में आ जाए, लेकिन माकपा की भौतिक परिस्थितियां ऐसी हैं कि उसे न यह करने दे रही हैं न वह करने दे रही हैं। माकपा अपनी भौतिक परिस्थितिथियों की दास है, माकपा के हमारे मित्रों को माकपा की भौतिक अवस्था का हमसे भी बेहतर अंदाजा है। यही वजह है कि माकपा अपनी पार्टी काँग्रेस के बाद भी कोई नया नारा या कोई नया राजनीतिक कार्यक्रम आम जनता के लिए पेश नहीं करने जा रही है। यहाँ तक कि पार्टी के अंदर सामान्य पारदर्शिता भी अभी तक पैदा नहीं हुई है।

मसलन् आम जनता को यह जानने का हक है कि केरल के पूर्व मुख्यमंत्री अच्युतानंदन और पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य को किस कारण से पोलिट ब्यूरो से हटा दिया गया, आम जनता यह भी जानना चाहती है विमान बसु को किस गुण के कारण पोलिट ब्यूरो में बनाए रखा गया है, जबकि ये पश्चिम बंगाल में पार्टी को नष्ट करने में अग्रणी रहे हैं। तमाम किस्म के असामाजिक तत्वों और जनविरोघी कार्यों को अंजाम देने में विमान बसु के नेतृत्व की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, उनको कायदे से पार्टी से निकाल दिया जाना चाहिए लेकिन वह पार्टी में मौजूद हैं। इस तरह के हालात में पार्टी के हमदर्दों को भविष्य में कोई आशा की किरण नजर नहीं आती। माकपा जबतक पार्टी के नियमों को भंग करने वाले नेताओं को पोलिट ब्यूरो में बरकरार रखती है वह किसी भी तरह अपनी खोई साख हासिल नहीं कर सकती।

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माकपा के अनेक सदस्यों की स्थिति यह है कि वे फेसबुक पर पार्टी की समस्याओं पर खुलकर चर्चा कर नहीं करते, देश की समस्याओं पर उनको लिखने की फुर्सत नहीं है या फिर उनका मानना है फेसबुक आदि नॉनसेंस मीडियम है ! गंभीर काम तो जुलूस निकालना और पार्टी ऑफिस में बैठना है !  सोशल मीडिया कम्युनिकेशन को वे अपराध या पार्टी का अनुशासन भंग समझते हैं। फेसबुक को वे पापबुक समझते हैं। इसलिए दबी नजर से देखते हैं, दबे दबे से लिखते हैं, खुलकर बोलने और लिखने में उनको तकलीफ होती है, उनको लगता है फेसबुक लेखन तो मार्क्सवाद का विसर्जन है !

     यदि फेसबुक आदि जनमाध्यमों को लेकर स्पष्टवादिता और अभिव्यक्ति की आजादी का इस्तेमाल न कर पाने की अवस्था रहती है तो हम तो यही कहना चाहते हैं कि माकपा के मित्रगण अभी माकपा के चौखटे के बाहर निकले ही नहीं हैं उनको भारत के संविधान के आईने में अपने को नागरिक की तरह देखने की आदत और संस्कार डालने की जरुरत है, वे पार्टी मेम्बर पीछे हैं, नागरिक पहले हैं। उनके पार्टी के अधिकारों से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, नागरिक के अधिकार ।

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     माकपा के अधिकांश सदस्यों में नागरिक अधिकारचेतना अभी विकसित ही नहीं हो पायी है, वे हमेशा पार्टी के आतंक,प्रेम और श्रद्धा  में जीते हैं, पता नहीं उनके अंदर नागरिक चेतना, नागरिक श्रद्धा और नागरिक कम्युनिकेशन की भावना कब पैदा होगी ? कॉमरेड अच्छा पार्टी मेम्बर वही है जो अच्छा नागरिक भी है। कॉमरेडशिप से नागरिकता महान है, समझ लो वरना बाद में पछताओगे!

माकपा के संदर्भ में राजनीति के अपराधीकरण का सवाल सबसे प्रमुख सवाल है। विशाखापत्तनम काँग्रेस इस सवाल पर टो टूक फैसला लेने में असमर्थ रही है, बल्किमाकपा में राजनीति के अपराधीकरण के लिए जो जिम्मेदार हैं वे पोलिट ब्यूरो में रख लिए गए हैं। उन लोगों को संगठन में बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है जो माकपा के अपराधीकरण के खिलाफ बोल रहे थे। का. अच्युतानंदन उनमें से एक हैं। पहले यही गति स्व. नृपेन चक्रवर्ती की हुई और दोनों मौकों पर प्रकाश कारात की बड़ी भूमिका रही है।

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जगदीश्वर चतुर्वेदी के ब्लॉग ‘नया जमाना’ से साभार

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