Yashwant Singh : दरअसल हारी तो पूरी सभ्यता है, हारी तो पूरी मानवता है, हारी तो पूरी सियासत है, हारे तो सारे हुक्मरान हैं, लेकिन न जाने क्यों मुझे हमेशा ये मेरी निजी-व्यक्तिगत हार लगती है।
जब आपका जीवन एक्टिविज्म से भरा रहा हो, छात्र जीवन से ही खुद को अलग-थलग अकेले में नहीं बल्कि पूरे समय समाज प्रकृति ब्रम्हांड में पाते तलाशते हों तो सामूहिक जीवन की इस दुर्दशा, इस हार, इस वेदना की मार देर तक व दूर तक महसूस होती है।
सोचता हूँ शेष बचे जीवन का कुछ वक़्त पेड़-पानी को दिया जाए। वाटर लेवल बढ़ाने के प्राकृतिक तरीके क्या हो सकते हैं, जल संरक्षण कैसे किया जाता है, इस पर कोई मुझे ज्ञान दे, ट्रेनिंग दे, पढ़ाए सिखाए बताए तो आभारी रहूँगा। इस लर्निंग को उन जगहों पर लागू कराऊंगा जहां का मंजर इन तस्वीरों में दर्ज है।
भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह की एफबी वॉल से.
Shriprakash Dixit : आज भी दो बूँद पानी के लिए तरस रही है जनता… 15-15 साल का हिसाब दें शिवराज और दिग्विजय… शिवराजसिंह चौहान ने तेरह साल और पार्टी ने पंद्रह साल राज किया.दिग्विजयसिंह ने दस बरस और उनके गुरू अर्जुनसिंह ने पांच बरस राज किया.उनके कार्यकाल में दिग्गी लगातार मंत्री बने रहे.
अब दिग्विजय खुद चुनाव लड़ रहे हैं तो शिवराज औरों को लड़वा रहे हैं. इसलिए दोनों से प्रदेश की जनता हिसाब मांगती है की आज भी वह पानी जैसी बुनियादी जरूरत की मोहताज क्यों है.? गाँव हों या शहर सब तरफ पानी के लिए हाहाकार मचा है. खासकर गाँव के लोग, जिनमें ज्यादातर महिलाएँ और बच्चे होते हैं, दो बूँद पानी के लिए प्राणों की बाजी तक लगा रहे हैं.
खुद को जनता का प्रथम सेवक प्रोजेक्ट कंरने वाले ये हजरात लम्बे समय गद्दीनशीं रहे हैं,तब उन्होने पानी जैसी बुनियादी जरूरत सुलभ कराने के स्थायी इंतजाम क्यों नहीं किए.? लगता यही है की दिखावे तथा प्रचार के लिए जो रकम खर्च भी होती थी वह भ्रष्ट तंत्र की भेंट चढ़ जाती होगी.
वैसे शिवराजजी की प्राथमिकता स्कूळ-अस्पताल तथा पेयजल के बजाए शौर्य स्मारक, भारत माता का मंदिर, श्रीलंका मे सीता माता का मंदिर, गैस स्मारक तथा आनंद विभाग रहे हैं. दिग्गी राजा की नाकामियों का आलम यह की 15 साल सत्ता से बाहर रहने क़े बाद भी पार्टी बहुमत हासिल नहीं कर सकी. अलबत्ता सत्ता विरोधी लहर के बाद भाजपा 109 सीटों पर कामयाब रही.प्रदेश मे पहली बार है जब विरोधी दल को सौ से ज्यादा सीटें मिली हैं.
पानी के लिए जूझती महिलाओं/नौनिहालों की भास्कर, पत्रिका तथा नईदुनिया मे छपीं दर्जन से ज्यादा डरावनी तस्वीरें खबर सहित पोस्ट हैं. पहली सात फोटो/खबरें पिछले डेढ़ दो महीने मे छपीं हैं. विदिशा जिले की भी फोटो है जहाँ से शिवराज आधा दर्जन बार सांसद की तो एक बार विधायक की जंग जीते हैं.
भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार श्रीप्रकाश दीक्षित का विश्लेषण.