Krishan Bhanu : संघर्ष ‘देवतुल्य’ बना देता है। लंबे और निरंतर संघर्ष में बैल की भांति जुटा व्यक्ति एक समय देवताओं की श्रेणी में पहुँच जाता है। सक्रिय पत्रकारिता में निरंतर 30 वर्ष पूरे करने वाले सब पत्रकार मेरी दृष्टि में देवता तुल्य हो गए हैं। वर्तमान काल में पत्रकारिता के “मैदान-ए जंग” में लगातार 30 साल या इससे अधिक संघर्ष करने की बराबरी 300 वर्ष से की जा सकती है।
इस दृष्टि से अपना संघर्ष-काल 300 वर्ष से अधिक हो गया। मतलब, आप अन्य संग मुझे भी देवता तुल्य मान सकते हैं। 1980 में छोटी उम्र में ही पत्रकार हो गया। शुरुआत अपने गृह नगर मंडी से की। तब मंडी में कुल तीन ही पत्रकार थे। मुरारी लाल आर्य जी, किशोरी लाल सूद जी और हेमकांत कात्यायन जी! चौथा मैं था। अच्छी बात है कि आज इस छोटे से नगर में सौ से अधिक पत्रकार हैं। आर्य जी अब हमारे बीच नहीं हैं। किशोरी लाल सूद जी और हेमकांत जी आज भी सक्रिय हैं। दोनों पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने युग के सूर्य कहे जाते हैं। कभी कभार जब मिल जाते हैं तो अच्छा लगता है, सुकून मिलता है। इन तीनों में सबसे छोटा और नया मैं ही था, इसलिए सभी से कुछ न कुछ ग्रहण किया, सीखा।
इस चित्र में मेरे संग जो विराजमान हैं, ये हेमकांत कात्यायन जी हैं। मंडी जाना हुआ तो यह फोटू बन गया। अपने इर्दगिर्द निगाह करता हूँ तो लगता है कि पत्रकार का संघर्ष मृत्युपूर्व तक है—एक लंबा और कभी न थकने वाला कठिन, लेकिन रोमांचक संघर्ष! ‘खाली हाथ आये थे खाली हाथ रहेंगे / जायेंगे’ जैसी अनेक कहावतें हमारे ऊपर अक्षरशः चरितार्थ होती हैं। बावजूद, हमें गर्व है, हम पत्रकार हैं। हम अपनी तमाम पीड़ाओं का ढिंढोरा नहीं पीटते, सिर्फ आम जनमानस की पीड़ा को महसूसते हैं और ऐसी तमाम पीड़ाओं पर दिन रात काम कर गौरवान्वित महसूस करते हैं।
हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार कृष्ण भानु की एफबी वॉल से.